भगवान दीनबंधु हैं और अकिंचन भक्तों के आश्रय
जागरण संवाददाता, रांची : राणी सती लेन स्थित सत्संग भवन में श्रीलक्ष्मी वेंकटेश्वर मंदिर, राची द्वार
रांची : राणी सती लेन स्थित सत्संग भवन में श्रीलक्ष्मी वेंकटेश्वर मंदिर, राची द्वारा आयोजित श्रीमद्भागवत कथा के अंतिम दिन कृष्ण-सुदामा प्रसंग की कथा अनिरुद्धाचार्य महाराज ने सुनाई। काफी संख्या में भक्त उपस्थित थे। कथा का अंतिम दिन होने के कारण भीड़ बहुत थी। महाराज ने भौमासुर वध, जरासंध वध, युधिष्ठिर का राजसूय यज्ञ, शिशुपाल का उद्धार, सुदामा चरित और परीक्षित मोक्ष की कथा सुनाई। महाराज ने कहा कि राजा भौमासुर का वध करके श्रीकृष्ण ने राजा की कैद से 16100 राजकुमारियों को मुक्त कराया। राजा भौमासुर की कैद में लंबे समय तक रहने के कारण परिवार और समाज द्वारा नहीं अपनाने के भय के कारण सभी 16100 राजकुमारियों ने भगवान की शरण ली थी और श्रीकृष्ण ने एक ही मुहूर्त में 16100 रूप बनाकर सभी राजकुमारियों से विवाह कर लिया और इस तरह शरणागतों की रक्षा की। सुदामा चरित के माध्यम से श्रीस्वामीजी ने बताया कि भगवान दीनबंधु हैं और अकिंचन भक्तों के आश्रय है। सुदामा के पास भौतिक पदार्थ नहीं है, परन्तु वे भगवान के नाम-धन के धनी हैं और हमेशा भगवान के चिंतन-मनन में डूबे रहते हैं। पत्िन सुशीला के बारबार आग्रह करने पर सुदामा अपने मित्र श्रीकृष्ण से मिलने के लिए द्वारिका जाते हैं और गरीबी के कारण बचपन के मित्र के लिए एक मुट्ठी टूटा हुआ चावल लेकर जाते है। भगवान श्रीकृष्ण ने उपहार का मूल्य नहीं देखा, बल्कि मित्र सुदामा को प्रपत्ति-भाव और अनाशक्ति देखी और सुदामा के बिना मांगे ही एक मुट्ठी टूटा चावल के बदले ऐश्वर्य दे दिया। स्वामीजी ने कहा कि संतोष और भगवान के ऊपर दृढ़ विश्वास ही शरणागति का मूलमंत्र है। महाराज ने परिक्षित मोक्ष की कथा भी सुनाई। कहा, परीक्षित भले ही सासारिक दृष्टि से मोक्ष को प्राप्त हो गए, परन्तु आज भी हर भागवत कथा में अमर हैं, क्योंकि मुख्य श्रोता, मुख्य यजमान को परीक्षित ही कहा जाता है। अंत में श्रीस्वामी अनिरूद्धाचार्यजी ने कथा-स्थल पर उपस्थित सभी भक्तों के जीवन में सुख, शान्ति और समृद्धि की कामना की और सभी भक्तों को प्रेरित किया कि भक्तों के अभीष्ट फलदाता भगवान श्रीलक्ष्मी वेंकटेश्वर के श्रीचरणों की शरणागति करने से इस लोक में यश, ऐश्वर्य और धन की प्राप्ति तो होती ही है, परलोक भी सुधरता है और मनुष्य को दुर्लभ मोक्ष की प्राप्ति सहज ही हो जाती है।
अंतिम दिन कथा शुभारंभ के पहले मुख्य यजमान अशोक कुमार राजदेवी राजगड़िया और दैनिक यजमान अरविंद नूतन कटारूका ने श्रीमद्भागवत महापुराण और व्यासपीठ पर विराजमान जगदगुरू रामानुजाचार्य श्रीस्वामी अनिरुद्धाचार्यजी महाराज का विधिवत पूजन किया, पुष्प-माला चढ़ाई और आरती उतारी। कथा समाप्ति के बाद व्यास पूजन का कार्यक्रम शुरू हुआ। मुख्य यजमान के अलावा अश्रि्वनी राजगड़िया, अरविन्द राजगड़िया, अरुण राजगड़िया, श्रीलक्ष्मी वेंकटेश्वर मन्दिर संचालन समिति के रामअवतार नारसरिया, गोपाल लाल चौधरी, नारायण जलाल, ज्ञान प्रकाश बुधिया, घनश्याम दास शर्मा, प्रदीप नारसरिया, रामवृक्ष साहु, सुशील लोहिया, अनुप अग्रवाल, उदय राठौर, जगमोहन नारसरिया, बिनु ठक्कर, एन. रामास्वामी, रमेश धरनीधरका, विनय धनीधरका, कन्हैया लोहिया, अनीश अग्रवाल, सहित सैकड़ों भक्तों ने व्यास पूजन किया और आरती उतारी।
आज से अब एकादश महोत्सव
रांची : दिव्य श्रीमद्भागवत कथा भक्ति महोत्सव के बाद 22 जून से 24 जून तक श्रीलक्ष्मी वेंकटेश्वर मंदिर का एकादश वार्षिकोत्सव सह कल्याणोत्सव का आयोजन होगा। 22 जून शुक्रवार को सायं चार बजे से कलश स्थापना एवं यजमान संकल्पम। 23 जून शनिवार को प्रात: 8:00 बजे से श्रीसुदर्शन होमम और दो बजे से जगतनियंता भगवान श्रीलक्ष्मी वेंकटेश्वर जगत जननी महालक्ष्मी के साथ नगर भ्रमण के लिए निकलेंगे। 24 जून रविवार को प्रात: आठ बजे से सर्वशक्तिमान भगवान श्रीतिरूपति बालाजी का सौभाग्यदायिनि जगतजननी महालक्ष्मी और श्रीभूदेवीजी के साथ शुभ कल्याणोत्सव (शास्त्रोक्त विधि से मंगल-विवाह) संपन्न होगा। श्रीसुदर्शन होमम और कल्याणोत्सव के कार्यक्रमों को संपन्न कराने के लिए काचीपुरम से विद्वानों का दल वरदराज भगवान मंदिर के मुख्य अर्चक वत्स भट्टर के नेतृत्व में राची आएगा। भगवान जगतजननी के साथ पालकी पर विराजमान होकर नगर भ्रमण के लिए निकलेंगे। पालकी उठाने के लिए विशेषज्ञों का दल काचीपुरम से आ रहा है।