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फादर्स डे: पिता ने चाय बेचकर बेटी को बनाया टॉपर

नरेश ने चाय बेचकर अपनी बेटी को झारखंड मैट्रिक की परीक्षा में टॉपर बनाया।

By Edited By: Published: Sun, 17 Jun 2018 12:15 PM (IST)Updated: Sun, 17 Jun 2018 12:58 PM (IST)
फादर्स डे: पिता ने चाय बेचकर बेटी को बनाया टॉपर

जासं, रांची। कहते हैं पिता और बेटी का रिश्ता दुनिया में सबसे प्यारा रिश्ता है। दुनिया की हर बेटी को अपने पिता से प्यारा कोई नहीं होता। समाज में पिता की कुर्बानियों के कई उदाहरण मिल जाते हैं। आज भी समाज में लड़कियों की अपेक्षा लड़कों को प्राथमिकता दी जाती है। ये कहानी ऐसे व्यक्ति की है जिसने अपनी बेटी में अपने सपने देखे। अनगड़ा के नरेश प्रसाद साहू ऐसे पिता हैं जिनकी पहचान आज उनकी बेटी के कारण है, और ऐसा हो सका इस पिता के त्याग की वजह से। नरेश ने चाय बेचकर अपनी बेटी को झारखंड मैट्रिक की परीक्षा में टॉपर बनाया। काफी गरीबी में जीवन यापन करने वाले नरेश प्रसाद साहू ने उन लोगों के लिए मिसाल कायम की जो बेटी की शिक्षा को प्राथमिकता में नहीं रखते।

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नरेश ने अपनी हर जरूरतों से समझौता करते हुए, अपनी बेटी को इस लायक बनाया कि आज हर कोई उसकी प्रशंसा कर रहा है। इनकी बेटी अंजली मॉडल स्कूल अनगड़ा की छात्रा हैं। अंजली 88 प्रतिशत अंकों के साथ प्रखंड की टॉपर रही हैं। नरेश चाहते हैं कि अंजली डॉक्टर बने और गरीब वर्ग की सेवा करे। इनको ये पता है कि अभी तो सिर्फ शुरूआत हुई है। डॉक्टर बनाने के लिए बहुत पैसे की जरूरत होगी, लेकिन विश्वास है कि मंजिल जरूर मिलेगी। इन्हें अपनी बेटी पर गर्व है, और बेटी भी कहती है कि हर जन्म में मुझे ऐसे ही पिता मिले। नरेश कहते हैं कि समाज को बेटे और बेटियों में अब फर्क करना बंद करना चाहिए। बेटी भी पिता का नाम रोशन करती है। अब वक्त आ गया है कि बेटियों को आगे बढ़ाएं।

भूखे रहकर पिता ने बेटे को बनाया टॉपर
माता-पिता का दूसरा नाम त्याग है। हर सफल बेटे के पीछे उसके पिता का त्याग छिपा होता है। समाज में ऐसे कई लोग हैं जिन्होंने अपनी छोटी-छोटी जरूरतों से समझौता करके अपने बच्चों को बुलंदियों तक पहुंचाया। पिता कैसा होता है, इसका अंदाजा चंडी चरण प्रसाद को देखकर लगाया जा सकता है। पूरा जीवन तंगी में गुजारने वाले चंडी ने अपनी तीन बेटियों और बेटे को पूरी शिक्षा दी। ऑटो चलाकर अपने बेटे को झारखंड की मैट्रिक परीक्षा में राजधानी का दूसरा टॉपर बना दिया, बेटे गौरव को झारखंड में दसवां स्थान प्राप्त हुआ। चंडी को ज्यादा शिक्षा नहीं मिल सकी, लेकिन उसने अपने बेटे को न सिर्फ शिक्षित करने की ठानी, बल्कि समाज के बीच एक मिसाल कायम की । लोगों को बताया कि बच्चे का सही पालन पोषण करने के लिए पैसे से कहीं ज्यादा हौसलों की जरूरत होती है। चंडी ने अपने बच्चों को कभी गरीबी का एहसास तक नहीं होने दिया।

पिस्का मोड़ में रहने वाले चंडी ने अपनी तीनों बेटियों को उच्च शिक्षा दी, उनकी एक बेटी अध्यापक है, तो दूसरी बेटी कॉमर्स में स्नातक कर रही है, वहीं तीसरी बेटी पालीटेक्निक कर रही है। आसपास के लोग बताते हैं कि चंडी ने अपने बच्चों की परवरिश में किसी प्रकार की कोताही नहीं बरती। बेटा गौरव बताता है कि पिता ने कभी भी हमें गरीबी का एहसास नहीं होने दिया। खुद तंगी में जीवन में बिताकर हम चारों भाई-बहनों को हर सुविधा मुहैया कराई। पिता चंडी कहते हैं कि बेटा समाज के लिए कुछ करे। पिता को पूरा यकीन है कि एक दिन बेटा उसका नाम रोशन करेगा।


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