सोना उगलने वाली स्वर्णरेखा ढो रही कचरा
अतिक्रमित कर जगह-जगह बनी चावल मिल व अन्य औद्योगिक इकाइयों के कचरे से दूषित है जल।
जागरण संवाददाता, रांची : स्वर्णरेखा नदी रांची जिले की लाइफलाइन है। इसका उद्गम स्थल पिस्का मोड़ के पास स्थित रानी चुआ है। 100 साल पहले तक यह जल कुंड लकड़ी के पीपे से बहता था। लेकिन आज नदी का उद्गम स्थल ही अतिक्रमण के कारण खतरे में है।
जिले के कई जल प्रपातों का स्त्रोत मानी जाने वाली यह नदी इन दिनों ताजे पानी की जगह अपने बहाव स्थल को अतिक्रमित कर जगह-जगह बनी चावल मिल व अन्य औद्योगिक इकाइयों के कचरे और गंदे जल को ही लेकर आगे बढ़ती है। नदी का जल कभी राची समेत कई शहरों के लिए वरदान माना जाता था। लेकिन आज इसका पानी राची में ही जहरीला हो चुका है।
नगड़ी से निकलती स्वर्णरेखा :
कभी सोना उगलने वाली स्वर्णरेखा राची के नगड़ी गाव से निकलकर पिस्का गाव की उत्तरी सीमा तथा टिकराटोली की दक्षिणी सीमा बनाती हुई दक्षिण-पूर्व की ओर अपनी यात्रा आरंभ करती है। फिर यह कुदलुम, बालालौंग और नचियातु गावों की दक्षिणी सीमा बनाती हुई रातू को छोड़ कर नामकुम प्रखंड पार कर राची और हजारीबाग की सीमा बनाती है तथा दक्षिणी ओर मुड़कर सिल्ली, सोनहातू की सीमा बंगाल से अलग करती हुई पूर्वी सिंहभूम जिले में प्रवेश करती है।
पश्चिमी सिंहभूम जिले में घाटशिला के बाद इसकी घाटी काफी चौड़ी एवं निम्न हो जाती है। यहा के बाद यह समुद्र तल से मात्र 100 से 75 मीटर ऊंची रह जाती है। सिंहभूम में बहती हुई यह उत्तर पश्चिम से मिदनापुर जिले में प्रविष्ट होती है। इस जिले के पश्चिमी भूभाग के जंगलों में बहती हुई बालेश्वर जिले में पहुंचती है और फिर बंगाल की खाड़ी में गिरती है। इस नदी की कुल लंबाई 474 किलोमीटर है।
हुंडरू जलप्रपात से है रिश्ता :
स्वर्णरेखा हुंडरू जलप्रपात का निर्माण करती है, जबकि इसकी सहायक राढ़ू नदी में जोन्हा और काची नदी में दशम जलप्रपात का निर्माण होता है। ये सभी जलप्रपात एक ही भ्रंश रेखा पर स्थित हैं। राढू होरहाप से निकल कर सिल्ली से दक्षिण तोराग रेलवे स्टेशन से दक्षिण-पश्चिम में मिलती है।
स्वर्ण रेखा और उसकी सहायक नदी करकरी की रेत में सोने के कण पाए जाते हैं। लेकिन इसकी मात्रा अधिक नहीं होने के कारण व्यवसायी उपयोग नहीं किया जाता है। स्वर्णरेखा नदी की चौड़ाई सरकारी दस्तावेज में 24.46 मीटर है, लेकिन यह नदी हटिया और नामकुम में पाच मीटर से भी कम रह गई है।
नदी को कर रहे प्रदूषित :
तुपुदाना औद्योगिक क्षेत्र से काफी कचरा स्वर्णरेखा नदी में गिरता है। वहीं, अतिक्रमण और प्रदूषण के कारण नदी विलुप्त होने के कगार पर पहुंच गई है। अतिक्रमण के कारण कई स्थानों पर नदी की स्थिति नाले जैसी हो गई है। तुपुदाना औद्योगिक क्षेत्र में संचालित फैक्ट्रियों से निकलने वाला कचरा और गंदा पानी भी नदी में गिरता है।
इससे नदी का पानी काला और जहरीला हो गया है। शहर की दर्जनों नालियों और हरमू नदी का गंदा पानी भी स्वर्णरेखा नदी में ही गिर रहा है। सावन के महीने में नामकुम स्वर्णरेखा घाट पर शिव भक्त उसी गंदे पानी में स्नान कर जल चढ़ाने जाते हैं। छठ पर्व में भी इसी गंदे जल में महिलाएं खड़ी होकर सूर्य को अर्घ्य देती हैं।