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होमी जहांगीर भाभा ने किया था इप्टा का नामकरण

रांची : भारतीय जननाट्य संघ (इंडियन पीपुल्स थिएटर एसोसिएशन : इप्टा) की स्थापना 25 मई 1943 क

By JagranEdited By: Published: Fri, 25 May 2018 07:56 PM (IST)Updated: Fri, 25 May 2018 07:56 PM (IST)
होमी जहांगीर भाभा ने किया था इप्टा का नामकरण
होमी जहांगीर भाभा ने किया था इप्टा का नामकरण

रांची : भारतीय जननाट्य संघ (इंडियन पीपुल्स थिएटर एसोसिएशन : इप्टा) की स्थापना 25 मई 1943 को मुंबई के मारवाड़ी हाल में प्रो. हीरेन मुखर्जी ने की थी। अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में उन्होंने आह्वान किया था-लेखक और कलाकार आओ, अभिनेता और नाटककार आओ, हाथ से और दिमाग से काम करने वाले आओ और स्वयं को आजादी और सामाजिक न्याय की नई दुनिया के निर्माण के लिए समर्पित कर दो।' इस आह्वान के साथ यह संस्था आगे बढ़ी। इसका नामकरण भी प्रसिद्ध वैज्ञानिक होमी जहागीर भाभा ने किया था।

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नाम के अनुरूप इप्टा ने काम शुरू किया और रंगमंच के माध्यम से एक आंदोलन का रूप ले लिया। कला, सिर्फ मनोरंजन का साधन नहीं, आंदोलन की जमीन भी तैयार कर सकती है। इप्टा ने यही साबित किया। नाटक के साथ-साथ नुक्कड़ नाटक ने इस काम को तेजी से आगे बढ़ाया। इसने लोककला के रूपों को पुनर्जीवित और पुनस्र्थापित करने का काम किया। इस क्रम में उसने संपूर्ण रंग-संस्कार को लोकधर्मिता से जोड़ा। इप्टा से लोक कलाकार भी जुड़े और अपने-अपने प्रदेशों की लोक शैली में नाटक लिखे और उसका मंचन किया। जात्रा, नौटंकी, तमाशा, पवाड़ा, तेरुकुत्तू, बुर्राकथा, माच, नाचा, ख्याल एवं भवाई आदि लोक नाट्य शैलियां स्थापित होने लगीं।

राची इप्टा की गतिविधियों की शुरुआत 68-69 के आसपास हुई थी, जब प्रभास मल्लिक और दूसरे रंगकर्मियों ने राची में आम जन के प्रश्नों को रंगमंच के जरिए उठाया। लेकिन राची इप्टा का स्वर्णिम काल 84 के आसपास आरंभ हुआ माना जा सकता है, जब नसीम खान के नेतृत्व में महबूब खान, श्यामल मल्लिक, इबरार अहमद, आजाद गनी आदि रंगकर्मियों ने राची के रंग परिदृश्य में एक नई ऊर्जा फूंक दी थी। राची के अधिकतर अभिनेता कभी न कभी इप्टा से जुड़े रहे थे। उसी दौरान बस्ती विकास मंच के लिए पूरे जिले के पचास जगहों पर एक साथ नाट्य प्रस्तुति देने का रिकार्ड राची इप्टा ने कायम किया। कथाकार और इप्टा रांची के अध्यक्ष पंकज मित्र कहते हैं कि प्रख्यात निर्देशक कर्ण सेन के निर्देशन में सास से अहसास तक की नाट्य प्रस्तुति को लोग आज भी याद करते हैं। संप्रदायवाद, गरीबी, अशिक्षा, जल जंगल जमीन लूट आदि समस्याओं को नुक्कड़ नाटकों के माध्यम से इप्टा प्रस्तुत करती रही है। रांची में इप्टा आज भी सक्रिय है और नुक्कड़ नाटकों के माध्यम से अलख जगा रहा है।


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