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हर जिले की होगी अपनी भाषा, पास करने पर ही नौकरी

यह नीति यदि राज्य में लागू हुई तो हर जिले के लिए एक अलग भाषा अथवा एक से अधिक भाषा अधिसूचित होगी जो जिले की अपनी भाषा होगी।

By BabitaEdited By: Published: Fri, 13 Apr 2018 09:59 AM (IST)Updated: Fri, 13 Apr 2018 12:47 PM (IST)
हर जिले की होगी अपनी भाषा, पास करने पर ही नौकरी
हर जिले की होगी अपनी भाषा, पास करने पर ही नौकरी

रांची, आशीष झा। झारखंड में नियोजन नीति को अंतिम रूप दे दिया है। इस नीति से स्थानीय लोगों को लाभ पहुंचाने की कोशिश की गई है। हालांकि अभी इसे 17 अप्रैल को सरकार के पास अनुशंसा के लिए भेजा जाएगा उसके बाद ही यह अंतिम रूप ले सकेगी। यह नीति यदि राज्य में लागू हुई तो हर जिले के लिए एक अलग भाषा अथवा एक से अधिक भाषा अधिसूचित होगी जो जिले की अपनी भाषा होगी। युवाओं को तृतीय और चतुर्थ श्रेणी में नियोजन के पूर्व इस भाषा में पास करना अनिवार्य होगा। 

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जिले की भाषा की सौ अंकों की परीक्षा होगी जिसमें कम से कम 30 अंक लाने होंगे। सवाल झारखंड से ही जुड़े होंगे। उन्हीं अभ्यर्थियों को योग्य माना जाएगा जो जिले के राजनीतिक, भौगोलिक, आर्थिक  इतिहास आदि की जानकारी रखते हुए परीक्षा में पास कर सकेंगे।

'झारखंड का इतिहास एवं संस्कृति' विषय में पास होने के बाद ही दूसरे विषयों की परीक्षा में शामिल होने की पात्रता होगी। स्थानीय उम्मीदवारों के लिए आवश्यक होगा कि उन्हें उस जिले की भाषा, रहन-सहन, पहनावा, रीति-रिवाज आदि की जानकारी हो। इस प्रकार हर जिले की अपनी जनजातीय अथवा क्षेत्रीय भाषा घोषित होगी और इसी भाषा में लिखित परीक्षा आयोजित होगी। कमेटी जिला स्तरीय नियुक्तियों के अलावा झारखंड लोक सेवा आयोग एवं कर्मचारी चयन आयोग द्वारा आयोजित इन्हीं पदों के समकक्ष परीक्षाओं में भी स्थानीय भाषा की पात्रता की अनुशंसा करने जा रही है।

जिला स्तरीय अन्य प्रतिष्ठानों में भी होगा आरक्षण 

कमेटी की सिफारिशें मान ली जाती हैं तो जिलास्तरीय अन्य प्रतिष्ठानों जैसे क्षेत्र में स्थित केंद्र सरकार के उद्यम, राज्य सरकार के उद्यम, संयुक्त उद्यम, निजी उद्यमों आदि में भी तृतीय और चतुर्थ वर्गीय पदों पर स्थानीय लोगों को ही नियोजन मिलेगा। इसके लिए राज्य सरकार के केंद्र और संबंधित कंपनियों से समन्वय बनाकर यह व्यवस्था करनी होगी। प्रमंडल स्तर की नौकरियों में भी यही व्यवस्था लागू होगी और इनमें उन्हें ही रोजगार का अवसर मिलेगा जो कि प्रमंडल के रहनेवाले हों। 

यहां स्थानीय होने के साथ दूसरे राज्यों के मूलवासी हैं तो दावेदारी खत्म नियोजन के लिए स्थानीयता को स्पष्ट तौर पर परिभाषित कर दिया गया है। इससे उन लोगों को फायदा नहीं मिलेगा जो दोहरी नागरिकता रखते हों। लोग भले ही 1985 के पूर्व से झारखंड में रह रहे हैं लेकिन कहीं न कहीं दूसरे राज्यों में उनकी नागरिकता प्रमाणित होती है तो पात्रता गई। माना जा रहा है कि इस नियम का प्रभाव उन लोगों पर अधिक पड़ेगा जो झारखंड के साथ-साथ बिहार की भी नागरिकता रखते हैं।  

ये हैं झारखंड की स्थानीय भाषाएं

झारखंड में बोले जाने वाली स्थानीय और क्षेत्रीय भाषाएं एक दर्जन से अधिक हैं। इनमें से कुछ खास इस प्रकार हैं : खोरठा, खडिय़ा, कुडुख, कुरमाली, नागपुरी, पंचपरगनिया, संथाली, मुंडारी, हो, अंगिका, मैथिली, भोजपुरी आदि। 


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