170 ने किया था आत्मसमर्पण, 12 नक्सलियों को ही ओपेन जेल
दिलीप कुमार, रांची : राज्य से नक्सलियों को खत्म करने के लिए बनाई गई आत्मसमर्पण नीति का बंटाध्
दिलीप कुमार, रांची : राज्य से नक्सलियों को खत्म करने के लिए बनाई गई आत्मसमर्पण नीति का बंटाधार राज्य की पुलिस-प्रशासन के अधिकारी ही कर रहे हैं। आत्मसमर्पण के बाद मिलने वाली सुविधाएं नक्सलियों तक पूरी तरह नहीं पहुंच रही है, यह बात सामने आई है। आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों के लिए ओपेन जेल में भेजने का प्रावधान भी है, लेकिन अब तक आत्मसमर्पण करने वाले 170 नक्सलियों में सिर्फ 12 नक्सलियों को ही ओपेन जेल नसीब हो पाया। वर्तमान में 90 नक्सली जमानत पर बाहर हैं और 60 ऐसे नक्सली हैं, जो राज्य की विभिन्न जेलों में सामान्य कैदियों की तरह कैद हैं।
ओपेन जेल में भेजने का निर्णय संबंधित जिले के डीसी-एसपी की सुरक्षा ऑडिट के आधार पर होता है। आत्मसमर्पण नीति में ही यह निहित है कि समाज की मुख्य धारा से जुड़ने के लिए ही ऐसे नक्सली आत्मसमर्पण करते हैं, इसलिए उन्हें ओपेन जेल में उनके परिवार के साथ रहने की व्यवस्था की जाए। अभी हाल ही में लातेहार के एक कुख्यात नक्सली बड़ा विकास ने भी आत्मसमर्पण नीति का हवाला देते हुए लातेहार के एसपी व पलामू के डीआइजी को पत्र लिखकर अनुमति मांगी है कि उसे उसके परिवार के साथ ओपेन जेल में रहने दिया जाए। उसे एक 13 साल की बेटी है, जिसकी गर्मियों की छुट्टियां होनी है। हालांकि, उसके आवेदन पर अभी प्रशासन ने कोई निर्णय नहीं लिया है।
नक्सलियों का ब्योरा
-आत्मसमर्पण नीति के तहत झारखंड में अब तक जो सरेंडर किए : 170
-जो जमानत पर जेल से बाहर हैं : 90
-जिन्हें ओपेन जेल में भेजा गया : 12
-जो राज्य की अन्य जेलों में हैं : 60
-जिनकी मौत हो गई : आठ
सरकार की इस नीति का कितना हुआ पालन
-आत्मसमर्पण के वक्त तत्काल 50 हजार रुपये मिलते हैं।
-एक साल बाद पहली किश्त के रूप में एक लाख रुपये व दो साल बाद दूसरी किश्त के रूप में एक लाख रुपये मिलती है, जो बहुत कम को ही मिली है। कारण केस का पेंडिंग होना है।
-चार डिसमिल जमीन देने का प्रावधान है। नक्सली रांची व जिला मुख्यालय में जमीन चाहते हैं। जहां उनका घर है, वहां नहीं रहना चाहते हैं। इसमें अधिकतर नक्सलियों को जमीन दे दी गई है।
-गृह निर्माण के लिए 50 हजार रुपये देने का प्रावधान है। इसमें भी 50 फीसद राशि ही नक्सलियों को मिली।
-नक्सलियों पर इनाम की राशि उन्हें ही देने का प्रावधान है, जिसे पूरा किया जाता है।
-हथियार के साथ आत्मसमर्पण वाले मामले में जो राशि दी जानी है, उसे दी जाती है।
-आत्मसमर्पण के एक साल तक घर का किराया देने का प्रावधान है। जिसका लाभ कुछ हो ही मिल पाया।
-ऐसे नक्सलियों के बच्चों के स्कूल का फी देने का प्रावधान है, लेकिन जिलों के एसपी-डीसी अब तक किसी भी नक्सली के बच्चों के लिए अनुशंसा नहीं किए, जिससे उन्हें इसका लाभ नहीं मिला।
-वोकेशनल ट्रेनिंग के नाम पर एक साल तक 5000 रुपये मासिक देने का प्रावधान है, किसी भी नक्सली को नहीं मिला।
-प्रशासन से कोर्ट फीस भी नहीं मिला।
-सरकार नौकरी वैसे नक्सलियों को देने का प्रावधान है, जिसपर कोई केस नहीं है। कुछ को ही इसका लाभ मिला है।