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16saal16sawal: खेतों को पानी नहीं, फाइलों को सींच रहा विभाग

16saal16sawal. झारखंड में वर्षों से लटकी सिंचाई योजनाओं की लागत बढ़ती जा रही है। 129 करोड़ की स्वर्णरेखा बहुउद्देश्यीय सिंचाई परियोजना की लागत बढ़कर 15 हजार करोड़ पहुंच गई।

By Alok ShahiEdited By: Published: Wed, 20 Feb 2019 11:40 AM (IST)Updated: Wed, 20 Feb 2019 11:40 AM (IST)
16saal16sawal: खेतों को पानी नहीं, फाइलों को सींच रहा विभाग

रांची, राज्य ब्यूरो। झारखंड में किसानों के खेत अब भी सूखे हैं। खरीफ की खेती बारिश बूते है और रबी की फसल की यहां महज औपचारिकता ही पूरी होती है। वजह साफ है, सिंचाई सुविधाओं का अभाव। खेतों को पानी नहीं मिल रहा है और जल संसाधन विभाग फाइलों को सींचने में लगा है। सिंचाई परियोजनाएं पूरी नहीं हो रहीं हैं लेकिन लागत बढ़ती जा रही है। 129 करोड़ की स्वर्णरेखा बहुउद्देश्यीय सिंचाई परियोजना की लागत बढ़कर करीब 15 हजार करोड़ रुपये पहुंच गई है। 40 साल बीत गए अब तक 5691.68 करोड़ व्यय हो गए लेकिन योजना अब भी अधूरी है।

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पलामू का नार्थ कोयल प्रोजेक्ट, जिसे मंडल डैम के नाम से अधिक जाना जाता है कई उतार-चढ़ाव से गुजरी है। 1970 में संयुक्त बिहार में शुरू इस प्रोजेक्ट की लागत महज 30 करोड़ रुपये आंकी गई थी जो अब बढ़कर 2391 करोड़ हो गई है। प्रोजेक्ट पर अब तक 769.09 करोड़ रुपये व्यय भी हो चुके हैं योजना अब भी अधूरी है। प्रधानमंत्री ने हाल ही में इस योजना के अधूरे कार्य को पूरा करने की आधारशिला रखी है। स्वर्णरेखा और मंडल डैम तो बानगी मात्र हैं।

झारखंड की तमाम वृहद परियोजनाएं दशकों बाद भी अपने लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर सकी हैं। राज्य की सात वृहद और 17 मध्यम सिंचाई योजनाएं गर पूरी हो जाएं तो झारखंड भी सिंचाई के राष्ट्रीय औसत तक पहुंच जाएगा। सिंचाई योजनाओं को लेकर बजट की कमी कभी नहीं रही। जल संसाधन विभाग झारखंड गठन के बाद से सर्वाधिक आवंटन वाला विभाग रहा लेकिन सिंचाई योजनाओं को मुकाम नहीं मिल रहा है।

हालांकि योजनाओं को पूरा करने में कुछ व्यवहारिक दिक्कतें भी हैं। भूमि अधिग्रहण, विस्थापन और फारेस्ट क्लीयरेंस एक बड़ी बाधा है लेकिन इस बाधा के साथ-साथ विभागीय कार्यशैली में इच्छाशक्ति का अभाव भी साफ देखने को मिलता है। कई सिंचाई योजनाएं तो स्थानीय विरोध के कारण बंद कर दी गईं।

पिछले चार सालों में मिली कुछ गति : हाल के वर्षों में सिंचाई योजनाओं ने कुछ गति पकड़ी है। मार्च 2015 तक झारखंड में मात्र 91,323 हेक्टेयर क्षेत्र में ही पटवन होता था। जो अब बढ़कर 2.10 लाख हेक्टेयर हो गया है। हालांकि अभी भी वास्तविक सिंचाई क्षमता इसकी आधी ही है। 

इन योजनाओं को करना पड़ा बंद : झरझरा जलाशय योजना, कंश जलाशय योजना, कांटी जलाशय योजना, सुआली जलाशय योजना, तजना जलाशय योजना।

सिंचाई योजनाओं का कैसे बढ़ता रहा बजट (वृहद सिंचाई योजनाएं)

स्वर्णरेखा बहुउद्देश्यीय परियोजना

- 1978 में 128.99 करोड़ से शुरू हुई योजना।

- 2011 में बजट बढ़कर 6613.74 करोड़ पहुंचा।

- वर्तमान लागत 14949.78 करोड़ आंकी गई।

- अब तक 5691.68 करोड़ व्यय।

- योजना को पूरा करने का लक्ष्य : 2019-20

अजय बराज

- देवघर की अजय बराज सिंचाई परियोजना 1975 में हुई शुरू।

- महज 10.34 करोड़ आंकी गई योजना की लागत।

- योजना पर अब तक 412.40 करोड़ व्यय।

- योजना पूरी करने का लक्ष्य : 2019।

गुमानी बराज परियोजना

- साहिबगंज के बरहेट प्रखंड की यह परियोजना 1976 में हुई शुरू।

- महज 3.83 करोड़ से शुरू हुई थी योजना।

- योजना का बजट बढ़कर पहुंचा 321.19 करोड़।

- विभाग का दावा 98 प्रतिशत कार्य पूरा। शेष कार्य 2019 में होगा पूरा।

पुनासी जलाशय परियोजना

- देवघर की पुनासी जलाशय योजना 1982 में हुई शुरू।

- शुरुआती लागत 26.90 करोड़ आंकी गई।

- लागत बढ़कर 797.82 करोड़ हुई। अब तक 356.33 करोड़ व्यय।

- प्रगति पचास प्रतिशत कार्य पूर्ण।

कोनार सिंचाई परियोजना

- हजारीबाग की कोनार सिंचाई परियोजना 1975 में हुई शुरू।

- शुरुआती लागत : 11.43 करोड़ रुपये

- अब लागत बढ़कर 2176 करोड़ पहुंची। अब तक व्यय 453.34 करोड़।

- 2019 में योजना को पूरा करने का लक्ष्य।

अमानत बराज परियोजना

- पलामू जिले के पांकी प्रखंड की अमानत बराज परियोजना 1983 में शुरू हुई थी।

- अब तक 279.15 करोड़ रुपये व्यय।

- अगले वित्तीय वर्ष भी योजना के पूर्ण होने के आसार नहीं।

उत्तर कोयल जलाशय परियोजना

-लातेहार जिले के मंडल ग्राम के पास उत्तर कोयल नदी पर डैम बनाने की योजना 1970 में हुई थी शुरू।

- योजना की लागत बढ़कर 2391.36 करोड़ हुई।

- प्रधानमंत्री ने पांच जनवरी को अधूरे कार्य को पूर्ण करने का किया था शिलान्यास।

फैक्ट फाइल

- 79.70 लाख हेक्टेयर : झारखंड का कुल भौगोलिक क्षेत्र

- 27.03 लाख हेक्टेयर : कृषि योग्य भूमि

- 24.25 लाख हेक्टेयर : सिंचाई क्षमता के सृजन का लक्ष्य

- 10.00 लाख हेक्टेयर : अब तक सिंचाई क्षमता का सृजन


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