रोजगार को रोइए, आराम बड़ी चीज है मुंह ढंक के सोइए!
पिछले एक वर्षों से अधिक समय में विभिन्न विभागों ने 11 हजार से अधिक नियुक्तियों के लिए आयोग से पत्राचार किया है, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला।
आशीष झा, रांची। आराम बड़ी चीज है, मुंह ढंक के सोइए! कवि ने भले ही किसी और संदर्भ में यह पंक्तियां लिखी हों, लेकिन झारखंड में कुछ विभागों की कार्यप्रणाली पर यह पूरी तरह से सटीक बैठती है। कर्मचारी चयन आयोग का मामला ही लीजिए। पिछले एक वर्षों से अधिक समय में विभिन्न विभागों ने 11 हजार से अधिक नियुक्तियों के लिए आयोग से पत्राचार किया है, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला। न कोई परीक्षा ली गई और न ही कोई सुझाव।
ऐसा तब है जब केंद्र और राज्य सरकार की प्राथमिकताओं में नियोजन शामिल है। मुख्यमंत्री तक कह चुके हैं कि युवाओं को नौकरी देने के लिए सरकार प्रतिबद्ध है। दरअसल, तमाम विभागों में फाइलें लटकी हुई हैं। इसके पीछे का बड़ा कारण है कर्मियों की कमी होना और नियमित तौर पर बहाली प्रक्रिया का बाधित रहना। एक बार फिर कर्मियों का प्रमोशन व्यापक पैमाने पर होगा और इसके साथ ही निचले पायदान पर कर्मचारियों की कमी खलेगी। ऐसे में सीनियर लोगों से ही जूनियर का काम लेना होगा और कहीं-कहीं तो लिया ही जा रहा है।
तमाम समस्याओं के बावजूद कर्मचारी चयन आयोग की गतिविधियां शून्य है। पिछले वर्ष अप्रैल से दिसंबर तक विभागों ने अधियाचनाएं भेजी हैं लेकिन इसपर कार्रवाई होती नहीं दिख रही। हालात ऐसे ही रहे तो वह दिन दूर नहीं कि विभिन्न विभागों से लेकर सचिवालय तक में काम ठप पड़ जाए।
सवाल उनका भी जिनकी उम्र ढलती जा रही
कर्मचारी चयन आयोग नियमित तौर पर परीक्षाएं नहीं ले रहा है और इसका बड़ा नुकसान उन लोगों को है जिनकी उम्र ढलती जा रही है। जिनके पास प्रतियोगी परीक्षाओं में बैठने के लिए अब एक-दो वर्ष ही बचे हैं। ऐसे युवाओं की तैयारियां तो धरी ही रह जाएंगी, ताउम्र बेरोजगारी का दंश झेलेंगे। फिर दूसरे राज्यों में जाकर वहां नौकरी तलाशेंगे।
चार हजार से अधिक पीजीटी शिक्षकों की जरूरत
राज्य में इंटर की परीक्षा का परिणाम सामने आया है और इसके साथ ही शिक्षकों की कमी भी उभरकर सामने आई है। इसके बावजूद अगर शिक्षक बहाल नहीं हुए तो सरकार और समाज के लिए इससे दुखद कुछ नहीं हो सकता। प्रदेश में चार हजार पीजीटी शिक्षकों की जरूरत है।
स्थानीय नियोजन नीति के बाद उम्मीदें जगीं
सरकार ने स्थानीय नियोजन नीति को स्वीकृति प्रदान कर दी है और इसके बाद लोगों की उम्मीदें जगी हैं। नियोजन की बाधाएं दूर हुई हैं। स्थानीय लोगों को नौकरी देने का मार्ग भी प्रशस्त हुआ है। अब उम्मीद की जानी चाहिए कि कुछ कमियां दूर होंगी।
जानें, किस विभाग में कितने कर्मचारियों की है जरूरत