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रेलीगढ़ा में मासस ने मनाया हूल दिवस

संवाद सूत्र गिद्दी (रामगढ़) मा‌र्क्सवादी समन्वय समिति डाड़ी प्रखंड ने रेलीगढ़ा में रविवार को हूल दिवस धूमधाम से मनाया। इस दौरान मासस नेता मिथिलेश सिंह धनेश्वर तुरी लोदो मुंडा सुंदरलाल बेदिया व आरडी मांझी ने सिद्धू-कान्हू के प्रतिमा पर माल्याप्रण किया। इसके बाद उपस्थित लोगों ने बारी-बारी से माल्यार्पण कर श्रद्धासुमन अर्पित किया। मौके पर मिथिलेश सिंह ने कहा कि झारखंड राज्य के आदिवासियों ने 30 जून 1

By JagranEdited By: Published: Sun, 30 Jun 2019 10:11 PM (IST)Updated: Mon, 01 Jul 2019 06:50 AM (IST)
रेलीगढ़ा में मासस ने मनाया हूल दिवस
रेलीगढ़ा में मासस ने मनाया हूल दिवस

गिद्दी (रामगढ़): मा‌र्क्सवादी समन्वय समिति डाड़ी प्रखंड ने रेलीगढ़ा में रविवार को हूल दिवस धूमधाम से मनाया। इस दौरान मासस नेता मिथिलेश सिंह, धनेश्वर तुरी, लोदो मुंडा, सुंदरलाल बेदिया व आरडी मांझी ने सिद्धो-कान्हो की प्रतिमा पर माल्यार्पण किया। इसके बाद उपस्थित लोगों ने बारी-बारी से माल्यार्पण कर श्रद्धासुमन अर्पित किया। मौके पर मिथिलेश सिंह ने कहा कि झारखंड राज्य के आदिवासियों ने 30 जून 1855 को अंग्रेजों के विरूद्ध किए गए विद्रोह को हूल क्रांति दिवस के रूप में मनाते हैं। इस लड़ाई में करीब 20 हजार आदिवासियों ने अपनी जान दी। हूल दिवस अन्याय के खिलाफ संघर्ष की प्रेरणा देता है। उन्होंने कहा कि जल, जंगल व जमीन की रक्षा के लिए झारखंड के बलिदान दिया था। वर्तमान सरकार आदिवासियों व मूलवासियों की जमीन लूटकर पूंजीपतियों के हाथों में सौंपना चाह रही है। ऐसे समय में एक बार पुन: जल, जंगल व जमीन को बचाने के लिए लड़ाई जरूरी हो गई है। वर्तमान समय में जन-क्रांति हूल आज भी प्रासंगिक है। इनके अलावे धनेश्वर तुरी, आरडी मांझी, लोदो मुंडा, रामु सिंह, दशरथ करमाली, पतिलाल मरांडी, अमृत राणा, कैलाश महतो आदि ने भी अपनी-अपनी विचार को रखा। इसके पूर्व आयोजित तीर-धनुष प्रतियोगिता में प्रथम गोविद सोरेन (खपिया), द्वितीय बासुदेव सोरेन (खपिया) व तृतीय बबलू टुडू (अस्नागढ़ा पुलहर) को पुरस्कृत किया गया। इस दौरान आदिवासी सांस्कृति कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रखंड अध्यक्ष सुंदरलाल बेदिया व संचालन तालो सोरेन ने किया गया। मौके पर कार्तिक मांझी, प्रदीप रवानी, तुलसीदास मांझी, कसराई मांझी, नंदकिशोर सिंह, रामकिशुन यादव, श्जि्ञवनारायण मांझी, रवि मांझी, सुलेंद्र सोरेन, छोटेलाल मांझी, बहाराम मांझी, महेश मांझी, मेको देवी, जगदीश महतो, गणेश महतो, प्रभाकर मांझी, मंगरा मांझी, राजेंद्र टुडू, किशुन मांझी, विशाल टुडू, तालो मांझी, नंदलाल मांझी, विश्वनाथ सोरेन, चारो मांझी, तापेश्वर कामली, महाबीर मांझी, रामकिसुन मुर्मू, किसुन मांझी, बेनीराम बेसरा, बबलू मांझी, रामनवमी मांझी, रस्का मांझी, मिथलेश मांझी, नंदलाल मांझी समेत दर्जनों महिला-पुरूष उपस्थित थे।

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