सिंदूर के लिए सदियों से संघर्ष
सदियां गुजरीं, युग बदला मगर पहाड़ों पर निवास करने वाली पहाडिय़ा जनजाति की परंपरा नहीं बदली। शादी के बाद सिंदूर लगाने के लिए सामाजिक नियमों के सामने झुकना पड़ता है।
गणेश पांडेय, पाकुड़। सदियां गुजरीं, युग बदला मगर पहाड़ों पर निवास करने वाली पहाडिय़ा जनजाति की परंपरा नहीं बदली। हिंदू सभ्यता-संस्कृति में शादी के सात फेरे के साथ ही महिलाएं सिंदूर लगाना शुरू कर देती हैं, लेकिन इसी संस्कृति में रची-बसी पहाडिय़ा जनजाति की अधिसंख्य लड़कियों को शादी के बाद सिंदूर लगाने के लिए उनके सामाजिक नियमों के सामने झुकना पड़ता है। पहाडिय़ा समाज में परंपरा है कि शादी का भोज दिए बिना नवविवाहिता सिंदूर नहीं लगा सकती। कई ऐसे मामले हैं जब विवाह के बाद महिलाओं को संतान सुख तो मिल गया लेकिन उनकी मांग को दो चुटकी सिंदूर नसीब नहीं हुआ। इसे मर्यादा कहें या फिर समाज का खौफ लेकिन ऐसी महिलाएं अब भी अपने अधिकार के लिए मुंह नहीं खोलतीं। हालांकि समाजसेवियों ने इस ओर पहल शुरू कर दी है। महिलाओं को अधिकार दिलाने की कवायद शुरू हो चुकी है।
पाकुड़ जिले के लिट्टीपाड़ा व अमड़ापाड़ा प्रखंड पहाडिय़ा बहुल है। लिट्टीपाड़ा प्रखंड में सबसे अधिक करीब 32 हजार और आमड़ापाड़ा प्रखंड के पहाड़ी इलाके में करीब 20 हजार की आबादी निवास करती है। बुजुर्ग जबरा पहाडिय़ा, बासे पहाडिय़ा, सूरजी पहाडिऩ आदि का कहना है कि यह परंपरा वर्षों से चली आ रही है। गरीबी से जूझते पहाडिय़ा अन्य जाति-समुदाय की तरह धूमधाम से भोज नहीं दे पाते हैं।
हाट-बाजार में तय होती शादी :
वैसे पहाडिय़ा जनजाति के लोग कम ही मौकों पर पहाड़ से नीचे उतरते हैं। कभी-कभार हाट-बाजार में पहाडिय़ा युवक-युवतियां खरीदारी के लिए आते हैं। दोनों के बीच आपसी सहमति के बाद युवक अपने साथ युवती को घर ले जाते हैं। इस तरह शादी तय हो जाती है। परंपरा का निवर्हन करने के लिए दोनों परिवार को राजी होना पड़ता है। किसी प्रकार का कोई विवाद नहीं होता। सुखी-संपन्न परिवार तो तुरंत भोज दे देते हैं लेकिन गरीब तबके के पहाडिय़ा महीनों बाद इस परंपरा का निर्वहन करते हैं। तब तक महिलाएं ङ्क्षसदूर का इंतजार करती रहती हैं।
परंपरा तोड़ रही समिति :
आदिम जनजाति पहाडिय़ा समिति के संताल परगना संयोजक विश्वनाथ भगत ने अब तक लिट्टीपाड़ा व अमड़ापाड़ा प्रखंड के करीब 500 पहाडिय़ा युवतियों की शादी कराई है। वह परंपरा तोड़ रहे हैं। विश्वनाथ भगत ने बताया कि पहाडिय़ा समाज में अभी भी भोज देने की परंपरा है। उसके बाद ही नवविवाहिता मांग में ङ्क्षसदूर भरती है। इस परंपरा को तोड़ कर 500 जोडिय़ों को मंदिर में विवाह कराया। आनेवाले समय में 108 युवतियों की शादी कराने की योजना है।
पहाडिय़ा समुदाय में अब भी परंपरा ही कायम है। लड़का पक्ष की ओर से ग्रामीणों को भोज देने के बाद ही महिलाएं मांग में ङ्क्षसदूर भर सकती है।
विवेक मालतो, पूर्व मुखिया सह समाजसेवी, लिट्टीपाड़ा।