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ककून से जिंदगी 'रेशमी'

संवाद सूत्र,लिट्टीपाड़ा (पाकुड़): आर्थिक और शैक्षणिक दृष्टि से पाकुड़ के सबसे पिछड़े प्र

By JagranEdited By: Published: Sun, 04 Nov 2018 12:47 PM (IST)Updated: Sun, 04 Nov 2018 12:47 PM (IST)
ककून से जिंदगी 'रेशमी'

संवाद सूत्र,लिट्टीपाड़ा (पाकुड़): आर्थिक और शैक्षणिक दृष्टि से पाकुड़ के सबसे पिछड़े प्रखंड में शुमार है लिंट्टीपाड़ा। मगर, इन दिनों यहां के किसान मेहनत के दम पर तकदीर संवारने में लगे हैं। ये ककून उत्पादन करते हैं और इससे यहां की स्वयं सहायता समूह से जुड़ी महिलाएं रेशम निकालती हैं। इससे किसान ही नहीं समूह की महिलाएं भी आर्थिक रूप से समृद्ध हो रही हैं। इस कार्य में अग्र परियोजना से किसानों को मदद मिलती है। उन्हें प्रशिक्षण दिया जाता है और ककून उत्पादन के लिए कीट भी।

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अग्र परियोजना के जरिए सितंबर में प्रखंड के 100 किसानों के बीच ककून कीट वितरित किए गए। इससे कुटलो, दारीकुड़िया, केतोकुड़िया, बड़ा चटकम व छोटा चटकम और अमड़ापाड़ा अंचल के चिलगो व विशनपुर के किसान लाभान्वित हुए। किसानों ने अर्जुन व आसन के पेड़ पर इन कीटों को छोड़ा। बता दें कि ककून कीटों का भोजन अर्जुन व आसन की हरी पत्तियां होती हैं। 20 से 25 दिनों में पत्तियों के बीच अंडे देते हैं जिनसे महज 45 दिन के भीतर ककून तैयार हो जाता है।

लिट्टीपाड़ा में ककून का करीब 75 फीसद हिस्सा स्वयं सहायता समूह से जुड़ी महिलाएं खरीद लेती हैं। 25 फीसद फिर से कीट के लिए सुरक्षित रखा जाता है। इससे रिल्ड, घिचा और कटिया धागा तैयार कर उच्च कोटि का वस्त्र बनाया जाता है। इसकी बिक्री से समूह की महिलाओं को अच्छी कमाई होती है। धागा निकालने के लिए महिलाओं को तसर केंद्र में 90 दिनों का प्रशिक्षण दिया जाता है। --------------------

ककून का उत्पादन किसानों के साथ महिला समूहों की आय का बेहतर साधन है। कम समय में इससे अधिक लाभ अर्जित किया जा सकता है। सरकार की ओर से इसमें हर संभव मदद दी जाती है।

प्रेम कुमार गुप्ता, अग्र परियोजना पदाधिकारी, पाकुड़


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