सरोवरों की कब्र पर इमारतों का उद्यान
जासं पाकुड़ जल को जीवन इसलिए कहा जाता है कि इसके बिना धरती पर सजीव जगत की कल्पना नहीं की
जासं, पाकुड़ : जल को जीवन इसलिए कहा जाता है कि इसके बिना धरती पर सजीव जगत की कल्पना नहीं की जा सकती है। मगर, प्रकृति की इन अमूल्य देन के संरक्षण की दिशा में यथोचित पहल नहीं हो रही है। जागरूकता की कमी और विकास की अंधी दौड़ का उदाहरण पाकुड़ में देखा जा सकता है। यहां के 90 फीसद तालाब गगनचुंबी इमारतों के नीचे दब चुके हैं। देखा जाए तो हम भूजल का लगातार दोहन कर रहें हैं, मगर संचय का सबसे बड़ा साधन तालाब-नदियों के अस्तित्व को बचाने के लिए जागरूक नहीं हो रहे हैं। वर्षा जल संचय सही तरीके से नहीं होने के कारण यहां सालभर लोगों को पेयजल संकट से दो-चार होना पड़ता है।
पाकुड़ जिला कभी तालाबों की नगरी के रूप में प्रचलित था। अंग्रेज के शासनकाल में शहर का नाम पुकुर रखा गया था। हालांकि कालांतर में पुकुर अपभ्रंश होकर पाकुड़ हो गया। करीब 10 से 15 वर्ष पूर्व शहर के विभिन्न मुहल्लों में 60-70 तालाब हुए करते थे। इनमें कुछ ऐसे थे जिनमें सालभर पानी रहता था। कुआं, बोरिग आदि की व्यवस्था कम रहने के कारण शहर के लोग तालाब का पानी पीते थे। बारिश का पानी इन्हीं तालाबों में संचय होता था। लेकिन धीरे-धीरे समय बदलता गया। माफिया तालाबों के अस्तित्व को मिटाने में जुट गए। तालाबों के तट पर बड़े-बड़े आशियाने बन गए। अधिकतर ऐतिहासिक तालाबों के अस्तित्व समाप्त हो गए। दो-चार महत्वपूर्ण तालाब अभी भी बचे हैं। माफियाओं की नजर उन तालाबों की ओर है। बचे तालाबों में जलकुंभी और गाद भर गए हैं। बारिश का पानी जमा होते ही तालाब से दुर्गंध निकलने लगता है।
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शहर में तालाबों की स्थिति
शहर के हरिणडांगा उच्च विद्यालय के पीछे नलपोखर को समतल कर मकान बना लिए गए हैं। सिधीपाड़ा के 2584 नंबर प्लाट पर स्थित तालाब के 90 फीसद पटाल पर लोगों ने मकान बना लिए हैं। बेलपोखर तालाब अतिक्रमण का शिकार है। मालगोदाम के निकट मां मनसा तालाब का भी अस्तित्व समाप्त होने के कगार पर पहुंच चुकी है। काली भसान तालाब का भी आधे से अधिक हिस्सा को समतल कर दिया गया है। इस तालाब में कभी धूमधाम से छठ पर्व होता था। इस तालाब तट इमारतें खड़ी है।
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निजी तालाबों को भी कर दिया समतल
निजी तालाबों की स्थिति भी बेहद ही चिताजनक है। भू-माफिया निजी तालाब मालिक को बड़े-बड़े सब्जबाग दिखाते हैं। रुपये का लालच देकर तालाब को बेचने की बात करते हैं। पैसे के लालच में फंसकर निजी तालाब मालिक धड़ल्ले से तालाबों को भरने का काम किया। निजी तालाबों को भरकर उसपर आशियाने बना लिए गए। इस समय शहर में काफी कम ही निजी तालाब दिखाई देते हैं।
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वर्ष जल संचयन का सबसे बड़ा साधन तालाब है। तालाब को बचाने के लिए जागरुकता जरुरी है। हालांकि शहर में अधिकतर तालाबों का अस्तित्व समाप्त हो चुका है।
डॉ. प्रसन्नजीत मुखर्जी, पर्यावरणविद केकेएम कॉलेज, पाकुड़