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सहेजा तो कल्पवृक्ष बनेगा बदलाव का अंकुर

संवाद सहयोगी पाकुड़ आकांक्षी जिला घोषित होने के बाद जिले में शिक्षा के क्षेत्र में बदलाव औ

By JagranEdited By: Published: Tue, 29 Sep 2020 07:05 PM (IST)Updated: Wed, 30 Sep 2020 05:14 AM (IST)
सहेजा तो कल्पवृक्ष बनेगा बदलाव का अंकुर

संवाद सहयोगी, पाकुड़ : आकांक्षी जिला घोषित होने के बाद जिले में शिक्षा के क्षेत्र में बदलाव और विकास का अंकुर अब दिखने लगा है। लेकिन, यह अंकुर तभी पौधा के रूप में फलीभूत होगा जब सुधार के प्रयास निरंतर किए जाएंगे। आकांक्षी जिले की कार्ययोजना के बाद अब विद्यालय बच्चों को अपनी ओर आकर्षित कर रहे हैं। लेकिन मार्च से लगे लॉकडाउन ने फिर से बच्चों और स्कूल की दूरी बढ़ा दी है।

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जिला मुख्यालय से 10 किलोमीटर दूरी पर स्थित है कालिदासपुर पंचायत का कालीदासपुर गांव। यह पंचायत पाकुड़ प्रखंड में पड़ता है। कालीदासपुर गांव में प्रवेश करते ही गांव के मदन तुरी से मुलाकात होती है। शिक्षा के हाल पर चर्चा करते ही उन्होंने कहा कि लॉकडाउन की वजह से छह-सात महीने से स्कूल बंद है। जिसके कारण अभी बच्चे घरों पर ही रहते हैं। यहां से कुछ दूर आगे बढ़ने के बाद गांव के कुछ बच्चे खेल रहे थे। इस दौरान गांव के उत्क्रमित उच्च विद्यालय कालीदासपुर के कक्षा आठ की छात्रा ललिता कुमारी लॉकडाउन के पहले रोज स्कूल जाती थी। स्कूल बंद होने के बाद से किताब नहीं खोला है। खेल में समय बीत जाता है। पढ़ाई के बारे में कुछ बताना नहीं चाहती है। वह कहती है पहले से अब स्कूल अच्छा लगता है। स्कूल में बहुत कुछ बदल गया है। लेकिन शिक्षक कम हैं। हाईस्कूल तक में महज पांच शिक्षक हैं। इसी विद्यालय में कक्षा चार व पांच में नामांकित छात्र-छात्रा क्रमश: शिवम कुमार भंडारी, पिकी कुमारी पढ़ाई में काफी कमजोर दिखी। कहा काफी दिन से स्कूल नहीं गए हैं इसलिए कुछ याद नहीं। इसी गांव के उत्क्रमित उच्च विद्यालय में ही वर्ग छह में पढ़ रहे छात्र विभीषण तुरी ने छह तक पहाड़ा सुनाया। बच्चों ने बताया कि वे लोग रोज स्कूल जाते थे।

गरीबी बन रही बाधक

कालीदासपुर पंचायत प्रखंड के पिछड़े पंचायतों में शामिल है। गरीबी व अशिक्षा के कारण कालीदासपुर पंचायत के कई बच्चों ने पांचवीं कक्षा के बाद पढ़ाई छोड़ दी है। प्रेम तुरी ने बताया कि गरीबी के कारण कक्षा पांच के बाद पढ़ाई छोड़ दिया। पढ़ाई छोड़कर हाइवा में खलासी का काम करते हैं। प्रेम हाइवा में खलासी की नौकरी कर पूरे परिवार का खर्च वहन करता है । वहीं इसी गांव के सूरज कुमार भंडारी ने गरीबी के कारण वर्ग छह की पढ़ाई छोड़कर अपना व्यवसाय शुरू किया है। उसने गांव में ही एक दुकान खोल लिया है।


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