तब फील गुड के बाद भी चुनाव हार गए थे दुखा भगत
लोकसभा चुनाव में वर्ष 1999 से लेकर 2004 तक भारतीय जनता पार्टी काफी बेहतर स्थिति में थी। ऐसा लग रहा था मानो भाजपा फिर एक बार सफलता का परचम लहराएगी।
लोहरदगा : लोकसभा चुनाव में वर्ष 1999 से लेकर 2004 तक भारतीय जनता पार्टी काफी बेहतर स्थिति में थी। ऐसा लग रहा था मानो भाजपा फिर एक बार सफलता का परचम लहराएगी। भाजपा ने तब फील गुड का नारा भी दिया था। लोहरदगा लोकसभा क्षेत्र के सभी गांव में नुक्कड़ नाटक मंडली के माध्यम से फील गुड का नारा देते हुए आम लोगों के बीच भाजपा की उपलब्धियों को पहुंचाने का काम किया गया था। बावजूद इसके फील गुड का नारा भी भाजपा को हार से नहीं बचा पाई थी। वर्ष 1999 के लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर प्रोफेसर दुखा भगत ने इंद्रनाथ भगत को महज 3823 मतों से पराजित कर सांसद की सीट छीनकर लोकसभा तक पहुंचे थे। वर्ष 1999 के लोकसभा चुनाव में प्रोफेसर दुखा भगत को 1 लाख 63 हजार 658 वोट मिले थे। जबकि इंद्रनाथ भगत को 1 लाख 59 हजार 835 वोट मिले थे। इस चुनाव के बाद वर्ष 2004 में जब लोकसभा का चुनाव हुआ तो ऐसा लग रहा था कि प्रोफेसर दुखा भगत एक बार फिर से सांसद चुन लिए जाएंगे। तब विपक्षी दलों ने अपने चुनाव प्रचार के दौरान कहां थे दुखा भगत साढे 4 साल का नारा देते हुए भाजपा और दुखा भगत के खिलाफ अभियान छेड़ दिया था। बावजूद इसके भाजपा को भरोसा था कि फील गुड के नारे के बीच भाजपा उम्मीदवार प्रोफेसर दुखा उभगत यह चुनाव जरूर जीतेगी। लोकसभा चुनाव हुआ तो प्रोफेसर दुखा भगत काफी बड़े अंतर से भारतीय पुलिस सेवा की नौकरी से ऐच्छिक सेवानिवृति लेकर चुनाव मैदान में आए कांग्रेस के उम्मीदवार डा. रामेश्वर उरांव के हाथों चुनाव हार गए। इस चुनाव में डॉ. रामेश्वर उरांव को दो लाख 23 हजार 920 वोट मिले थे। जबकि दुखा भगत को मात्र 1 लाख 33 हजार 665 वोट से संतोष करना पड़ा था। इस चुनाव में डा. रामेश्वर उरांव के जीत का अंतराल 90255 वोट का रहा था। भारतीय जनता पार्टी के लिए यह करारी हार थी। साल 2004 के चुनाव में मिली इस हार को भाजपा भूला नहीं पा रही थी। हालांकि वर्ष 2009 के चुनाव में संघ से जुड़े सुदर्शन भगत ने भाजपा के टिकट पर चुनाव जीतकर एक बार फिर लोहरदगा लोकसभा सीट भारतीय जनता पार्टी की झोली में डाल दिया था, परंतु वर्ष 2004 के चुनाव में मिली हार ने भाजपा को एक सबक दे दिया था। लोहरदगा लोकसभा सीट के मतदाताओं ने यह बता दिया था कि केंद्र की राजनीति से उन्हें कोई सरोकार नहीं है। उन्हें तो बस एक ऐसा प्रतिनिधि चाहिए जो उनके बीच समय देकर उनकी समस्याओं का समाधान कर सके। वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में सुदर्शन भगत ने मोदी लहर में जीत का परचम लहराया और इस बार हैट्रिक लगाने के फिराक में लगे हैं।