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गो पालन से हजरत ने गरीबी को दी मात

गफ्फार अंसारी सेन्हा (लोहरदगा) लोहरदगा जिले के सेन्हा प्रखंड के सेरेंगहातु गांव निवासी

By JagranEdited By: Published: Wed, 15 Sep 2021 09:21 PM (IST)Updated: Wed, 15 Sep 2021 09:21 PM (IST)
गो पालन से हजरत ने गरीबी को दी मात

गफ्फार अंसारी, सेन्हा (लोहरदगा) : लोहरदगा जिले के सेन्हा प्रखंड के सेरेंगहातु गांव निवासी हजरत अंसारी ने गो पालन को रोजगार का माध्यम बनाया है। महज मैट्रिक पास हजरत के कभी रोजगार के लिए इधर-उधर ठोकरें खा रहा था। इसके बाद उनके पिता ने हौसला दिए। हजरत ने दो गायें रखकर गो-पालन शुरू किया। आज हजरत अंसारी के पास आठ गायें एवं तीन भैंस हैं। वह इससे प्रति दिन 200 लीटर दूध की बिक्री करते हैं। अब वे गो-पालन से होने वाली कमाई से प्रति वर्ष एक गाय खरीदते हैं। बाजार की समस्या नहीं, रोजगार को मिली नई दिशा : लोहरदगा जिले के सेन्हा प्रखंड की पहचान गव्य पालन और दूध की बिक्री के लिए है। यूं तो प्रखंड के ज्यादातर क्षेत्रों में गव्य पालन किया जाता है, परंतु सेन्हा प्रखंड मुख्यालय और सेन्हा के ग्रामीण इलाकों में गो-पालन ने लोगों को रोजगार की एक नई दिशा दी है। दूध की बिक्री के लिए बाजार की समस्या नहीं है। गाय पालने में बहुत ज्यादा परेशानी नहीं है। जिसकी वजह से ग्रामीण क्षेत्रों में आर्थिक स्थिति में बदलाव आ रहा है। सेन्हा के रहने वाले हजरत अंसारी की किस्मत गव्य पालन से बदल गई। हर साल वह डेढ़ से दो लाख रुपये की आमदनी दूध की बिक्री कर करते हैं। गाय-भैंस के अलावे बकरी और मुर्गी पालन भी करते हैं हजरत

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: लोहरदगा जिले के सेन्हा प्रखंड के तोड़ार पंचायत के सेरेंगहातु गांव के रहने वाले कयूम अंसारी के पुत्र हजरत अंसारी ने गो-पालन को रोजगार का माध्यम बनाया। महज मैट्रिक पास हजरत अंसारी के पास कभी रोजगार का कोई साधन नहीं था। इसके बाद उन्होंने अपने पिता के हौसले से प्रभावित होकर दो गाय से गौ-पालन शुरू किया है। आज हजरत के पास आठ गाय, चार भैंस, सात बकरी और 150 देसी मुर्गी है। हजरत हर दिन 200 लीटर दूध की बिक्री करते हैं। जिससे उन्हें साल में डेढ़ से दो लाख रुपए की आमदनी हो जाती है। अब तो वह गो-पालन से होने वाली कमाई से हर साल एक गाय जरूर खरीदते हैं। इससे उनके घर परिवार की रोजी-रोटी आराम से चल रही है। बाजार में दूध की कीमत भी अच्छी मिल जाती है। बाजार में आराम से 42-44 रुपये प्रति लीटर दूध की बिक्री होती है। इसके अलावे हर साल घी और गोबर की बिक्री भी करते हैं। बाजार के लिए भटकना नहीं पड़ता। होटल संचालक और घरों में लोग आराम से दूध खरीद लेते हैं। कमाई से बहनों का किया विवाह

: हजरत 15 वर्ष से घर के लोगों का गो-पालन से ही भरण-पोषण कर रहे हैं। गाय से दूध निकालने के लिए एक व्यक्ति को रोजगार भी दे रहे हैं। दूध की कमाई से ही बहनों की शादी की। इनसे प्रेरणा लेकर गांव के नजमुदीन अंसारी, नेसार अंसारी, छैना, सलामत, राजेश प्रजापति, केवल साहू ने गाय पालन को चुना है। पिछले 15 साल से हजरत इसी रोजगार के माध्यम से अपने परिवार का भरण पोषण कर रहे हैं। उनसे प्रभावित होकर गांव के दूसरे लोग भी अब गौ-पालन जैसे रोजगार से जुड़ने लगे हैं।

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स्वरोजगार से बेहतर कुछ भी नहीं है। दूसरों को भी इसके लिए प्रेरित करते हैं। अपनी मर्जी का काम है। कमाई भी बेहतर है। कहीं भटकने की स्थिति का सामना नहीं करना पड़ता है। काम में मन और धन दोनों मिलता है।

क्या कहते हैं हजरत

हजरत अंसारी, सेन्हा।

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गो-पालन एक बेहतर रोजगार है। समय-समय पर गाय पालकों को प्रशिक्षण दिया जाता है। गाय पालन से जुड़े लोगों को पशु शेड योजना का लाभ दिया जा रहा है। जो इस योजना से जुड़ना चाहते हैं, उन्हें विभाग की ओर से सहयोग किया जाएगा।

क्या कहते हैं अधिकारी

अशोक कुमार चोपड़ा, बीडीओ, सेन्हा।


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