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Lok Sabha Polls 2019: तब फील गुड के बाद भी चुनाव हार गए थे दुखा भगत

Lok Sabha Polls 2019. 1999 से लेकर साल 2004 तक भाजपा काफी बेहतर स्थिति में थी। तब फील गुड का नारा दिया था। बावजूद इसके भाजपा अपनी हार नहीं बचा पाई थी।

By Sujeet Kumar SumanEdited By: Published: Tue, 26 Mar 2019 12:00 PM (IST)Updated: Tue, 26 Mar 2019 12:00 PM (IST)
Lok Sabha Polls 2019: तब फील गुड के बाद भी चुनाव हार गए थे दुखा भगत
Lok Sabha Polls 2019: तब फील गुड के बाद भी चुनाव हार गए थे दुखा भगत

लोहरदगा, [राकेश कुमार सिन्हा]। 1999 से लेकर साल 2004 तक भारतीय जनता पार्टी काफी बेहतर स्थिति में थी। ऐसा लग रहा था, मानो भाजपा एक बार फिर सफलता का परचम लहराएगी। भाजपा ने तब फील गुड का नारा दिया था। लोहरदगा लोकसभा क्षेत्र के सभी गांव में नुक्कड़ नाटक मंडली के माध्यम से फील गुड का नारा देते हुए आम लोगों के बीच भाजपा की उपलब्धियों को पहुंचाने का काम किया गया था।

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बावजूद इसके भाजपा अपनी हार नहीं बचा पाई थी। वर्ष 1999 के लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर दुखा भगत ने इंद्रनाथ भगत को हराकर सांसद की सीट छीन ली थी। इस चुनाव में दुखा भगत को एक लाख 63 हजार 658 वोट प्राप्त हुए थे। जबकि इंद्रनाथ भगत को एक लाख 59 हजार 835 वोट मिले थे।

इस चुनाव के बाद साल 2004 में जब लोकसभा का चुनाव हुआ तो ऐसा लग रहा था कि दुखा भगत फिर एक बार सांसद चुने जाएंगे। तब विपक्षी दलों ने अपने चुनाव प्रचार के दौरान कहां थे दुखा साढ़े चार साल का नारा देते हुए भाजपा और दुखा भगत के खिलाफ अभियान छेड़ दिया। बावजूद इसके भाजपा को भरोसा था कि फील गुड के नारे के बीच भाजपा यह चुनाव जरूर जीत लेगी।

साल 2004 में जब चुनाव हुआ तो दुखा भगत बड़े अंतर से कांग्रेस के रामेश्वर उरांव के हाथों हार गए। इस चुनाव में डॉ. रामेश्वर उरांव को दो लाख 23 हजार 920 वोट मिले थे। जबकि दुखा भगत को मात्र एक लाख 33 हजार 665 वोट से संतोष करना पड़ा था। भारतीय जनता पार्टी के लिए यह करारी हार थी। साल 2004 के चुनाव में मिली इस हार को भाजपा भुला नहीं पा रही थी।

हालांकि साल 2009 के चुनाव में सुदर्शन भगत ने भाजपा के टिकट पर चुनाव जीतकर फिर एक बार लोहरदगा लोकसभा सीट भारतीय जनता पार्टी की झोली में डाल दिया था, परंतु साल 2004 के चुनाव में मिली हार ने भाजपा को एक सबक दे दिया था। लोहरदगा लोकसभा सीट के मतदाताओं ने यह बता दिया था कि केंद्र की राजनीति से उन्हें कोई सरोकार नहीं है। उन्हें तो बस एक ऐसा प्रतिनिधि चाहिए जो उनके बीच समय देकर उनकी समस्याओं का समाधान कर सके।


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