दीपावली पर्व दीये से करें घर-आंगन को रौशन
दीयों की रोशनी के बिना दीपावली अधूरी है। आधुनिक चकाचौंध में मिट्टी के दीये जलाने की परंपरा बरकरार है। पूजा-पाठ से लेकर लोग घरों को सजाने में मिट्टी के दीये का इस्तेमाल करते हैं। ऐसे में कुम्हारों की व्यवस्तता बढ़ गई है। जोरशोर से दीये बनाये जा रहे हैं। झुमरीतिलैया के शिवपुरी मुहल्ला में इन दिनों कुम्हारों की चाक काफी तेजी से घुम रहा है।
संवाद सहयोगी, झुमरीतिलैया (कोडरमा): दीयों की रोशनी के बिना दीपावली अधूरी है। आधुनिक चकाचौंध में मिट्टी के दीये जलाने की परंपरा बरकरार है। पूजा-पाठ से लेकर लोग घरों को सजाने में मिट्टी के दीये का इस्तेमाल करते हैं। ऐसे में कुम्हारों की व्यवस्तता बढ़ गई है। जोरशोर से दीये बनाये जा रहे हैं। झुमरीतिलैया के शिवपुरी मुहल्ला में इन दिनों कुम्हारों की चाक काफी तेजी से घूम रहा है। कुम्हार सुनील पंडित, हरि पंडित ने बताया कि लगभग 60 वर्षों से यह पुस्तैनी व्यवसाय किया जा रहा है। सुनील पंडित ने बताया कि लगभग 35 वर्षों से इस व्यवसाय से जुड़े हैं। उन्होंने कहा कि दीपावली के मौके पर दीये की अलग महत्व है। मान्यता है कि मिट्टी के दीपक जलाने से शौर्य व पराक्रम में वृद्धि होती है। इतना ही नहीं परिवार में सुख-समृद्धि भी आती है। दीया भले मिट्टी का हो, लेकिन वह हमारे जीने का आदर्श है। इसके बावजूद बदलाव की बयार प्राचीन रीतिरिवाजों को मिटाने पर चाइनिज दीया एवं लाइटिग भारी पड़ रही थी, लेकिन गत तीन वर्षों से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मिट्टी के दीये के प्रयोग की अपील की तभी से यह व्यवसाय जो संकट में वह उबरा है। लोग घरों व आंगनों को रौशन करने के लिए दीयों की खरीदारी करते हैं। अब यह व्यवसाय दीयों के साथ-साथ चाय के लिए कुल्हड़ की बिक्री बढ़ी है। पिछले कुछ वर्षों से कुम्हार परिवार पारंपरिक दीयों को उत्साह से बनाने में लगे हैं। कुम्हारों का मानना है कि मिट्टी के दीये बनाने में चाक का प्रयोग किया जाता है। अगर सरकार कुम्हार समाज को मोटर चाक देती है तो वे एक दिन में 5 से 6 हजार दीये तैयार कर सकते है, साथ ही कम मेहनत के साथ समय की बचत होगी। सरकार से इस संबंध में जल्द से जल्द मोटर चाक देने की मांग की है।
मिट्टी महंगी होने से बढ़ी मुश्किलें
शिवपुरी मुहल्ला के कुम्हार सुनील पंडित, हरी पंडित ने बताया कि शहर में मिट्टी नहीं मिलने की वजह से ग्रामीण क्षेत्रों से चिकनी मिट्टी मंगाई जाती है। गत दो वर्षों से मिट्टी के मूल्य में उछाल आई है। कीमत के उछाल की वजह से लागत बढ़ गई है। पूर्व में 1200 रुपया ट्रैक्टर में मिट्टी उपलब्ध होती थी जो अब 1500 रुपया प्रति ट्रैक्टर हो गया है। दीये के निर्माण के बाद उसे लकड़ी से कच्चे दीया समेत अन्य सामानों को पकाया जाता है। इसमें लकड़ी का बोझा में 80 रुपया के बजाए अब 100 रुपया, किरासन तेल 50 के बजाए 60 रुपया हो गया है। इन प्रक्रियाओं को पूरा के के बाद दीये तैयार होते हैं, लेकिन जब पक कर तैयार होते हैं तो उसकी कीमत अधिक होती है। बाजार में लागत के अनुरूप मूल्य नहीं मिलते। उन्होंने बताया 250 से 400 रुपये प्रति हजार व 50 रुपये सैकड़े में दीये की बिक्री होती है। उन्होंने बताया कि इस वर्ष मिट्टी के खिलौने बनाना इस वर्ष से बंद कर दिये हैं। इसकी वजह लागत मूल्य का नहीं मिलना है। शौकीन लोगों के कारण बचा है व्यवसाय :::::::
पूजा व दीपावली में दीया की खोज होती है। यह मौसमी कारोबार है जो कुछ दिनों तक चलता है। यह कारोबार शौकीन लोगों के कारण बचा हुआ है। दीपवली, धनतेरस एवं छठ पर्व के मौके पर मिट्टी दीये अपने-अपने घरों एवं तालाबों में पूजा के दौरान जलाते हैं। यह शुद्धता का प्रतीक है। इसलिए इसे प्राथमिकता देने का कार्य लोग अभी भी कर रहे हैं। इस वर्ष दीपावली में शहर में लगभग 4 से 5 लाख दीये की बिक्री होने की संभावना है। एक दिन में लगभग 20 हजार दीये बनाये जा रहे हैं।