Lok Sabha Polls 2019: ...तब बुलेट का जवाब बैलेट से देते थे मतदाता
Lok Sabha Polls 2019. मतदान यूं तो जनता के लिए लोकतंत्र का सबसे बड़ा पर्व है। लेकिन अतीत में नक्सल प्रभावित क्षेत्र में जनता के लिए यह पर्व मनाना चुनौती से कम नहीं होता था।
सिमडेगा, जासं। मतदान यूं तो जनता के लिए लोकतंत्र का सबसे बड़ा पर्व है। लेकिन अतीत में झांकने से पता चलता है कि नक्सल प्रभावित क्षेत्र में जनता के लिए यह पर्व मनाना चुनौती से कम नहीं होता था। तब नक्सली इलाकों में पुलिस की पहुंच कम व नक्सलियों की धमक अधिक होती है। स्थिति ये होती थी कि इन इलाकों में मतदान कर्मी भी अपनी जान हथेली पर रखकर मतदान करवाने जाते थे।
तब मतदाताओं से आह्वान किया जाता था कि वे बुलेट का जवाब बैलेट से दें। बैलेट अर्थात मतपत्र, चूंकि तब ईवीएम एवं वीवीपैट की जगह मतपत्र एवं मतपेटी होते थे। मतपत्र पर छपे प्रत्याशियों के चुनाव चिह्न पर जनता मुहर लगाती थी। उस वक्त प्रचार-प्रसार का साधन भी कम होता था। ग्रामीण इलाकों में प्रशासन की पहुंच भी सीमित होती थी। लंबे कालखंड तक पंचायत चुनाव भी नहीं हुए।
इस कारण शहर व गांवों के बीच एक तरह से संपर्क कटा रहा। क्षेत्र में तब नक्सलियों व अपराधियों का बोलबाला रहता था। सिमडेगा क्षेत्र में खासकर बानो, बोलबा, जलडेगा समेत अन्य सुदूरवर्ती प्रखंडों में माओवादी के साथ-साथ पीएलएफआइ जैसे उग्रवादी संगठन और पहाड़ी चीता व अन्य छोटे अपराधिक संगठन हावी रहते थे। तब रात तो क्या, कुछ क्षेत्रों में लोग दिन में भी निकलने से डरते थे।
ऐसे डर भरे माहौल में निष्पक्ष एवं निर्भीक होकर मतदान कराना एक चुनौतीपूर्ण कार्य होता था। उस दौर में नक्सली संगठन वोट बहिष्कार का फरमान जारी करते थे। फिर भी लोग वोट देने जाते थे। हालांकि उन्हें हमेशा किसी अनहोनी का डर सताता था। धीरे-धीरे समय बदला। उग्रवादी-अपराधी या तो मारे गए या जेल की दीवारों के बीच कैद हो गए।
कई उग्रवादियों ने कार्रवाई के डर से आत्मसमर्पण कर दिया। जिले में माओवादी-पीएलएफआइ का प्रभाव भी लगभग समाप्ति की ओर है। ऐसे में सिमडेगा की फिजां बदलने से यहां के मतदाताओं में खुशी व हर्ष का माहौल है। अब वे बिना किसी डर-भय के मतदान में हिस्सा लेते हैं। यह बात और है कि अब उन्हें चुनाव में बैलेट की बजाय बटन का इस्तेमाल करना पड़ता है।