विदेशी बाजारों पर लाह की निर्भरता समाप्त होनी चाहिए
लाह की खेती के लिए विख्यात रहा खूंटी जिले के लाह उत्पादकों का समृद्ध न हो पाने के पीछे सबसे बड़ा कारण है विदेशी बाजारों पर निर्भरता। विदेशों में यदि लाह की मांग बढ़ जाती है तो लाह की कीमतों में अप्रत्याशित उछाल आ जाता है।
खूंटी : लाह की खेती के लिए विख्यात रहा खूंटी जिले के लाह उत्पादकों का समृद्ध न हो पाने के पीछे सबसे बड़ा कारण है विदेशी बाजारों पर निर्भरता। विदेशों में यदि लाह की मांग बढ़ जाती है तो लाह की कीमतों में अप्रत्याशित उछाल आ जाता है। इसी प्रकार यदि विदेशों में लाह की मांग घट जाती है, तो इसकी कीमत जमीन पर आ जाती है। लाह की कीमतों के व्यापक उतार-चढ़ाव के कारण ही लाह उत्पादकों को वैसा लाभ नहीं मिल पाता है जैसी कि इसकी उपयोगिता है। इस मामले की पड़ताल करने पर पता चला कि क्षेत्र से 90 प्रतिशत लाह विदेशों में भेजा जाता है। जर्मनी, अमेरिका व जापान सहित अन्य कई देशों में लाह से पॉलिश, परफ्यूम व पेंट सहित विभिन्न प्रकार के उत्पाद तैयार किए जाते हैं। इसके बाद वही उत्पाद हमारे देश में आयात किए जाते हैं। फलस्वरूप उन उत्पादों की कीमत अत्यधिक हो जाती है। यदि वहीं उत्पाद अपने देश में ही तैयार किए जाएं तो उनके आयात का खर्च बचेगा और लागत भी कम आएगी। इससे एक ओर जहां उपभोक्ताओं को कम कीमत पर देशी उत्पाद मिलेंगे वहीं लाह उत्पादकों का मुनाफा भी बढ़ जाएगा। इन सबके बीच जहां रोजगार में वृद्धि होगी वहीं लाह की कीमतों में भी एकरूपता बनी रहेगी।
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झारखंड में भाजपा सरकार के कार्यकाल में लाह उत्पादकों के लिए कई काम शुरू किए गए थे, लेकिन दुर्भाग्य से सरकार चली जाने से आगे कुछ नहीं हो सका। मैंने अपने व्यक्तिगत प्रयास से कालामाटी में एक लाह प्रोसेसिग प्लांट शुरू कराया था। जिसे सखी मंडल की बहनें संचालित कर रही थीं। लाह के कारोबार में सखी मंडल की बहनों को जोड़ने के लिए अन्य कई सार्थक प्रयास किए गए। लाह की खेती से जुड़े किसानों को बीच-बीच में प्रशिक्षण भी दिलाया जाता था। अभी भी क्षेत्र के किसानों को व्यापक प्रशिक्षण की जरूरत है। यदि किसानों को प्रशिक्षित कर वैज्ञानिक तरीके से खेती की जाती है तो निश्चित तौर पर उत्पादन बढ़ेगा लेकिन मौसम भी अनुकूल होना चाहिए। कई बार देखा गया है कि खराब मौसम के कारण भी लाह की खेती अपेक्षा के अनुरूप नहीं हो पाती है।
-नीलकंठ सिंह मुंडा, विधायक, खूंटी विधानसभा।
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मैं जब 1977 में पहली बार लोकसभा का सदस्य बना तो उस दौरान लाह की कीमत 75 पैसे प्रति किलो हो गई थी। इस पर मैंने जनजातीय मामले का प्रभार देख रहे गृह मंत्री से मिलकर लाह उत्पादकों की समस्या उनके समक्ष रखी और लाह का समर्थन मूल्य घोषित कराया। घोषित समर्थन मूल्य के अनुसार खूंटी जिले के लाह की कीमत सवा दो रुपये कर दी गयी। इससे किसानों को काफी राहत मिली। बाद में लाह की कीमतों ने गति पकड़ ली। लाह के क्षेत्र में सबसे बड़ी समस्या है कि इसकी कीमतों में अप्रत्याशित रूप से उतार-चढ़ाव होना। लाह की कीमतों में एकरूपता लाने के लिए विदेशी बाजारों में लाह की निर्भरता को समाप्त करना होगा। हमारे यहां कच्चे लाह का उत्पादन होता है, लेकिन दुर्भाग्य से हम लाह का व्यापक उत्पाद तैयार नहीं करते हैं। लाह की अधिकतर खपत विदेशों में है। वहां इससे पॉलिश व पेंट आदि कई उत्पाद तैयार किए जाते हैं। फिर वही उत्पाद हमारे देश के बाजारों में आते हैं। यदि हम लाह की व्यापक उत्पादों को तैयार करने के लिए यहीं छोटे-मोटे कल-कारखाने लगाएं तो कच्चे माल की उपलब्धता से हमारे यहां ही विभिन्न उत्पाद तैयार होने लगेंगे और हम विदेशी बाजार पर निर्भर नहीं रहेंगे। ऐसा होने से रोजगार में भी वृद्धि होगी। सस्ता उत्पाद भी हमें मिलेगा और लाह उत्पादकों व इससे जुड़े कारोबारियों को भी अच्छा लाभ होगा। सबसे बड़ी बात होगी कि लाह की कीमतों में एकरूपता आ जाएगी, जिससे किसान नुकसान होने की आशंका से मुक्त होकर खेती कर सकेंगे।
-पद्मभूषण कड़िया मुंडा, पूर्व सांसद, खूंटी।
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अगर अपने यहां काम मिलता तो मैं घर-परिवार को छोड़कर बाहर काम करने क्यों जाती। सरकार को ऐसी व्यवस्था करनी चाहिए कि लोगों को अपने जिले में ही काम मिल जाए। परिवार के भरण-पोषण की जिम्मेदारी का निर्वहन करने के लिए मैं मजबूरी में काम करने दिल्ली गयी थी। लॉकडाउन के दौरान वहां काम समाप्त हो गया और मुझे वापस अपने घर लौटना पड़ा।
-मार्शा धान, होचोर, कर्रा
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मैं बड़ी उम्मीदें लेकर घर से इतनी दूर काम करने गया था, लेकिन वहां जाने के बाद अहसास हुआ कि सबसे बढि़या हमारा अपना प्रदेश है। यदि हमें झारखंड में ही रोजगार मिले तो हम कभी भी दूसरे राज्य का रुख नहीं करेंगे। लॉकडाउन के दौरान वहां जो परेशानी हुई उसे याद भी नहीं करना चाहता हूं।
-अनमोल होरो, होचोर पहाड़टोली, कर्रा
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लोग कहते थे कि जब तक घर से बाहर कदम नहीं रखोगे तब तक तरक्की नहीं कर सकोगे। यही सोचकर मैं रोजगार की तलाश में दिल्ली गया था। वहां काम भी मिला, लेकिन लॉकडाउन होने से काम बंद हो गया। इसके बाद वहां काफी परेशानी का सामना करना पड़ा। आज जब मैं वापस अपने घर आ गया हूं तो एक ही बात सोचता हूं कि दोबारा बाहर काम करने न जाना पड़े। यदि सरकार हमें यहीं रोजगार उपलब्ध करा दे तो बड़ी मेहरबानी होगी।
-अमृत सुरीन, सिमटिमड़ा, कर्रा
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कोई नहीं चाहता है कि घर-परिवार छोड़कर हजारों मील दूर अकेले रहें। लेकिन मजबूरी ऐसी थी कि मुझे रोजगार की तलाश में घर छोड़ना पड़ा। अब मैं दोबारा परदेश नहीं जाना चाहता हूं। सरकार यदि यहां ऋण की व्यवस्था कर दे तो कोई छोटा-मोटा काम कर यहीं परिवार वालों के साथ रहूंगा।
-रोबिन होरो, होचोर गिरजाटोली, कर्रा