परंपरा को नहीं तोड़ पा रही झालर की रोशनी
खूंटी : दीपावली को दीपों का पर्व कहा जाता है लेकिन आधुनिक युग में बिजली की झालर ने दीयों का चलन बहुत कम कर दिया है। अब लोग अपने घरों को रंगीन चाइनीज झालर से चकाचौंध कर दे रहे हैं। बावजूद इसके युगों से चली आ रही दीप जलाने की परंपरा आज भी बरकरार है। पूरे घर को बिजली की झालर से सजाने के बावजूद कुछ दीयों का प्रकाश अवश्य किया जाता है। दीयों को जलाए बिना दीपावली का पर्व अधूरा ही रह जाता है।
दिवाकर श्रीवास्तव, खूंटी : दीपावली को दीपों का पर्व कहा जाता है लेकिन आधुनिक युग में बिजली की झालर ने दीयों का चलन बहुत कम कर दिया है। अब लोग अपने घरों को रंगीन चाइनीज झालर से चकाचौंध कर दे रहे हैं। बावजूद इसके युगों से चली आ रही दीप जलाने की परंपरा आज भी बरकरार है। पूरे घर को बिजली की झालर से सजाने के बावजूद कुछ दीयों का प्रकाश अवश्य किया जाता है। दीयों को जलाए बिना दीपावली का पर्व अधूरा ही रह जाता है।
इस परंपरा को बचाए रखने में सबसे बड़ा हाथ कुम्हार समाज का है। लागत बढ़ने के कारण मुनाफे में हो रही निरंतर कमी के बावजूद वे अपने इस पुश्तैनी कार्य में लगे हुए हैं। दीए बनाने के कार्य में उन्हें महीनों पहले से जुट जाना होता है।
परंपरा बचाने को करते हैं कड़ी मेहनत : युगों से चली आ रही परंपरा को बचाने के लिए कुम्हार समाज के लोग कड़ी मेहनत करते हैं। महीनों पहले से पूरा परिवार दीयों, व मिट्टी के खिलौनों व कलश आदि को बनाने में जुट जाते हैं।
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बॉक्स : अब नहीं होती पहले जैसी कमाई : विमला देवी
मिट्टी के दीए व खिलौने बनाने वाली विमला देवी कहती हैं कि इस काम में अब पहले जैसी कमाई नहीं रह गई है। एक जमाना था जब दीपावली में हम इतना कमा लेते थे कि सालभर खाने को हो जाता था। लेकिन, महंगाई बढ़ने के कारण अब ऐसा नहीं है। इसीलिए अब हमारे बच्चे इस काम को करना नहीं चाहते हैं। अपने इस पुश्तैनी काम को जारी रखने के पीछे हमारा यही उद्देश्य है कि धार्मिक आस्था से जुड़ी इस परंपरा को जीवित रखा जाए।
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बॉक्स.. दीयों आदि का बाजार मूल्य
दीया 80 रुपये सैकड़ा
बड़ा दीया 05 रुपये पीस
बड़ी ग्वालिन 40 रुपये पीस
छोटी ग्वालिन 25 रुपये पीस
घोड़ा हाथी 10 रुपये पीस
मिट्टी के खिलौने 05 रुपये पीस
छोटा कलश 10 रुपये पीस
बड़ा कलश 25 रुपये पीस