समेकित खेती से बदल रहा खेतों और किसानों का भाग्य
तोरपा और तपकरा के इलाके में किसान इंटीग्रेटेड फार्मिंग यानी समेकित खेती के जरिये अपनी आमदनी बढ़ा रहे हैं। अपने जीवन में रंग भर रहे हैं।
खूंटी। पत्थलगड़ी, उग्रवाद और अफीम की खेती को लेकर बदनाम खूंटी के खेतों का रंग बदल रहा है। तोरपा और तपकरा के इलाके में किसान इंटीग्रेटेड फार्मिंग यानी समेकित खेती के जरिये अपनी आमदनी बढ़ा रहे हैं। अपने जीवन में रंग भर रहे हैं। आम के बगीचे में टमाटर, मिर्च, मूंगफली, बैगन और इसी तरह के और फसल उपजाए जा रहे हैं। एक ही खेत में सीमित परिश्रम, खाद, कीटनाशक से ज्यादा उपज पैदाकर लाभ की खेती कर रहे हैं। यहां पर मनरेगा के तहत किसानों ने मजदूरी करते हुए समेकित खेती का बेहतर नमूना पेश किया है। सरकारी और गैर सरकारी संस्थाओं के सहयोग से खूंटी के इलाके में यह नया प्रयोग है।
महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार योजना के सहयोग से आम बागवानी के बीच साग-सब्जियों की खेती से किसानों के जीवन मे बड़ा बदलाव आया है। साग-सब्जी के साथ अब आम, अमरूद के फलों का स्वाद भी किसान ले रहे हैं। किसानों के इस मिशन को केंद्र और राज्य सरकार इसमें भरपूर सहयोग कर रही है। देश के उत्तर पूर्वी इलाकों में की जाने वाली समेकित खेती यहां के किसानों के लिए वरदान साबित हो रही है।
जानिए, क्या कहा किसानों ने
किसान निकोलस तोपनो, कुलदीप तोपनो, आकाश भेंगरा ने बताया कि यह बहुत ही सहज और सरल तरीके की खेती है। एक ही जमीन पर कई तरह के फसल की उपज होती है। एकसाथ खाद भी पड़ जाता है। प्रशासन से भी मदद मिल जाती है। इस तरह की खेती से आमदनी अधिक होती है।
जानें, क्या कहा कृषि पदाधिकारी ने
जिला कृषि पदाधिकारी अशोक सम्राट ने कहा कि इंटीग्रेटेड फार्मिंग पहले यहां पर नहीं होती थी। अलग-अलग प्रखंड क्षेत्र के किसानों को इसके लिए प्रशिक्षण दिया गया। इसके बाद तोरपा-तपकरा में कुछ किसानों ने इंटीग्रेटेड फार्मिंग शुरू की है। इस विधि से खेती करने से किसान खुश हैं। उनकी जिंदगी बदल रही है।