मुद्दा नहीं, यहां हावी है मुंडा
खूंटी लोकसभा क्षेत्र में मुद्दे यूं ही पड़े हैं। लेकिन इस पर बात नहीं हो रही। मुद्दों से अधिक यहां जातीय एवं धार्मिक संगठन हावी हैं। सर्वाधिक चर्चा मुंडा जाति को लेकर छिड़ी है। खूंटी लोकसभा क्षेत्र मुंडाओं का गढ़ है। यहां से जीतने वाले ज्यादातर सांसद इसी जाति से रहे हैं। इसलिए सारे प्रत्याशी इस बहुसंख्यक वोट बैंक पर नजर गड़ाए हैं।
खूंटी : लोकसभा क्षेत्र में मुद्दे यूं ही पड़े हैं, लेकिन इस पर बात नहीं हो रही। मुद्दों से अधिक यहां जातीय एवं धार्मिक संगठन हावी हैं। सर्वाधिक चर्चा मुंडा जाति को लेकर छिड़ी है। खूंटी लोकसभा क्षेत्र मुंडाओं का गढ़ है। यहां से जीतने वाले ज्यादातर सांसद इसी जाति से रहे हैं, इसलिए सारे प्रत्याशी इस बहुसंख्यक वोट बैंक पर नजर गड़ाए हैं।
लोकसभा क्षेत्र में कुल मतदाताओं की संख्या 1199492 है। लगभग 55-60 फीसद वोट जनजातियों का है। इनमें मुंडा ही अधिक हैं, लेकिन ईसाई एवं सरना के नाम इस वोट बैंक में विभाजन हो गया है। दूसरे स्थान पर ओबीसी मतदाता हैं। इनमें कई जातियां हैं। मुस्लिम एवं सामान्य वोटरों की संख्या लगभग 50-50 हजार बताई जा रही है। लगभग सभी राजनीतिक दलों के विश्लेषक इन वोटों को अपने अनुकूल घटाने-बढ़ाने में लगे हैं। खूंटी से 11 प्रत्याशी चुनाव मैदान में हैं। इनमें पांच प्रत्याशियों के नाम में मुंडा या फिर मुंडु जुड़ा है। मान्यताप्राप्त तीनों दलों भाजपा से अर्जुन मुंडा, कांग्रेस के कालीचरण मुंडा एवं बसपा प्रत्याशी इंदुमती मुंडु मुंडा जाति से ही हैं। इसके अलावा मिनाक्षी मुंडा एवं अबिनाशी मुंडु भी मैदान में हैं। फिलवक्त टक्कर भाजपा व कांग्रेस में आमने-सामने दिख रही है, इसलिए दोनों ही दल मुंडा वोटरों को अपने-अपने पक्ष में गोलबंद करने में जुटे हैं।
क्षेत्र में उच्च शिक्षा की पर्याप्त व्यवस्था नहीं, सिचाई के साधनों का अभाव, चौपट हो रहे उद्योग धंधे, बिजली की लचर व्यवस्था, रोजगार के साधनों का अभाव, पलायन, मानव तस्करी जैसे ज्वलंत मुद्दे गौण पड़ गए हैं। इसकी जगह असली मुंडा, नकली मुंडा, बाहरी मुंडा, भीतरी मुंडा जैसी संकीर्णताओं को फैलाया जा रहा है। और तो और, वोट के लिए संविधान की पांचवी अनुसूची पर भी तर्क-वितर्क दिए जा रहे हैं। इस क्रम में वोट के लिए पत्थलगड़ी को भी नेता सही-गलत बताकर अपने-अपने ढंग से इसकी व्याख्या कर रहे हैं, क्योंकि पत्थलगड़ी इस चुनाव में बड़ा फैक्टर बनने जा रही है।
शहरी क्षेत्र के मतदाता अपेक्षाकृत समझदार होते हैं। उन्हें बरगलाना बहुत आसान नहीं, लेकिन सुदूरवर्ती क्षेत्र के मतदाताओं के मन में ऐसी संकीर्ण बातें डालकर उनके मत बटोरने की कोशिश जारी है।
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ग्रामसभा निर्णायक की भूमिका में
सुदूरवर्ती ग्रामीण क्षेत्रों में ग्रामसभा निर्णायक की भूमिका में है। किस व्यक्ति एवं पार्टी को मत देना है, ग्रामीणों को इसकी जानकारी देने का काम ग्रामसभा ही करती है। उलिहातू, जिलिगा एवं कई गांवों में ग्रामीणों से बात करने पर पता चला कि ग्रामीण क्षेत्रों में ग्रामसभा सशक्त भूमिका में है। भोले-भाले ग्रामीण उनके फरमान के अनुसार ही मतदान करते हैं। उन्हें मुद्दों से कोई लेना-देना नहीं है।