मकर संक्रांति व सोहराय खत्म, मजदूरों का पलायन शुरू
मुरलीपहाड़ी (जामताड़ा) सोहराय व मकर संक्रांति समाप्ति के साथ ही नारायणपुर प्रखंड की विभिन्न पंचायत के ग्रामीण रोजगार की तलाश में यहां बाहर जाने को कूच करने लगे। उद्योग की कमी व मनरेगा में काम नहीं मिलने के कारण रोजी-रोटी के लिए दूसरे राज्यों में वे पलायन कर रहे हैं।
मुरलीपहाड़ी (जामताड़ा) : सोहराय व मकर संक्रांति समाप्ति के साथ ही नारायणपुर प्रखंड की विभिन्न पंचायत के ग्रामीण रोजगार की तलाश में यहां बाहर जाने को कूच करने लगे। उद्योग की कमी व मनरेगा में काम नहीं मिलने के कारण रोजी-रोटी के लिए दूसरे राज्यों में वे पलायन कर रहे हैं। ताकि अपने परिवार का पेट भर सके। बैग सहित विभिन्न सामग्री लिए कई लोग सोमवार को पश्चिम बंगाल जाते दिखे। यहां काम नहीं होने के कारण ये लोग भी मजबूर हैं। रोजी-रोटी के लिए राज्य के बाहर कमाने-खाने जा रहे हैं। रोजाना कई दर्जन लोग प्रखंड से पलायन कर रहे हैं। यहां कई स्थानों पर मनरेगा के तहत कार्य तो चल रहे हैं। उसके बाद भी लोगों को काम नहीं मिल पा रहा है।
मजदूरों को काम ही नहीं मिलता : ऐसा नहीं है कि लोग स्वयं के प्रखंड में काम नहीं करना चाहते हैं। लेकिन यहां पर रोजगार के लिए काम की कमी काफी है। यहां खेती-किसानी मुख्य कार्य है। खरीफ मौसम के बाद 10 फीसदी किसान ही रवि फसल बोते हैं। इसी वजह से ग्रामीणों को कृषि कार्य का भी लाभ नहीं मिलता। मनरेगा में काम की कोई गारंटी नहीं है। काम मिलता भी है तो भुगतान के लिए भटकना पड़ता है। मजदूरी मिलने का समय तय नहीं है। अभी तो पंद्रह दिनों से यहां मजदूरी मद में फंड का अभाव है। जो लोग काम किए हैं उन्हें भी मजदूरी नहीं मिल पाया है।
क्या कहते हैं श्रमिक : पलायन करनेवाले मजदूर सत्य मरांडी, जीवन मरांडी, प्रदीप मरांडी, सगन मुर्मू, आलम अंसारी, फुरकान अंसारी ने बताया कि अन्य स्थानों पर कोई अतिरिक्त आमदनी नहीं होती। जितनी आमदनी होती है, उतना खर्च होता है। राशन से लेकर किराए के मकान तक सबकुछ खुद ही वहन करना पड़ता है। पलायन के चक्कर में परिवार से अलग हो जाते हैं। बाहर जाकर केवल पेट भरने और जीने का सहारा मिल पाता है। यदि यहां हमलोगों को वर्ष भर काम मिलता रहता तो अन्य प्रदेश जाने की आवश्यकता ही नहीं पड़ती। अब इन्हें राज्य की नई सरकार पर आस है कि इस क्षेत्र में उद्योग धंधे लगे ताकि पलायन करने की आवश्यकता नहीं पड़े।