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Jharkhand: जामताड़ा में अनोखे तरीके से होती है धर्मराज की पूजा, भक्तों के कंधे पर पैर रख मंदिर जाते हैं पुजारी

Jharkhand जितने भी भोक्ता इस पूजन कार्य में शामिल होते हैं सभी जनेऊ धारण करते हैं। जबकि महुआ पानी दलित रविदास परिवार के घर लाकर चढ़ाया जाता है। यहां आयोजित इस पूजन परंपरा व विधान में समाज के सभी वर्गों की बगैर किसी भेदभाव के बराबर की भागीदारी रहती है।

By Jagran NewsEdited By: Jagran News NetworkPublished: Fri, 05 May 2023 08:45 PM (IST)Updated: Fri, 05 May 2023 08:45 PM (IST)
Jharkhand: जामताड़ा में श्रद्धालु अनोखे तरीके से करते हैं धर्मराज की पूजा।

हिरेन सिंह, बिंदापाथर (जामताड़ा): बिंदापाथर के जलाई गांव में धर्मराज की पूजा की अनोखी परंपरा सदियों से जारी है। पूजा के लिए पुजारी को तकरीबन आधे किमी. तक श्रद्धालु अपने कंधे पर पांव रखवाकर मंदिर परिसर में प्रवेश करवाते हैं।

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तीन दिनों तक गांव भक्त पूरी श्रद्धा से उपवास करते हैं और कतारबद्ध होकर खड़े रहते हैं। यहां से मुख्य पुरोहित इनके कंधों पर बारी-बारी कर पांव रखते हुए मंदिर परिसर में दाखिल होते हैं। जिसके बाद बाबा धर्मराज की पूजा व वैदिक मंत्रोच्चार के साथ अन्य अनुष्ठान संपन्न करवाया जाता है।

बिंदापाथर के जलाई गांव में बाबा धर्मराज की पूजा सह गाजनोत्सव का यह अनुष्ठान तीन दिनों तक आयोजित किया जाता है और पिछले 250 वर्षों से यह परंपरा लगातार जारी है।

मिट्टी के बने घोड़े व महुए का पानी होता है अर्पित

तकरीबन पच्चीस दशक से ऐसी मान्यता है कि बाबा धर्मराज के दरबार में मिट्टी से बने घोड़े का अर्पण करने से संतान बलशाली व निरोगी रहता है। पूजा के उपरांत व्रती अपनी-अपनी मन्नतें लेकर दिनभर बाबा की उपासना करते हैं। मंदिर के निकटस्थ जलाशय से महिला व पुरुष श्रद्धालु दंड प्रणाम के साथ मंदिर की परिक्रमा करते हुए पूजा-अर्चना करते हैं।

यहां महुए का पानी चढ़ाने का विशेष महत्व है। वर्षों पुरानी परंपरा व आस्था के अनुरूप स्वस्थ रहने, सुखी रहने, संतान प्राप्ति आदि की मुरादें पूरी होने के लिए जलाई गांव के ही रविदास परिवार के घर स्थित मंदिर से भोक्ता व महिला श्रद्धालु माथे पर तीन से पांच छोटे कलश में महुआ का पानी भरकर कलश यात्रा निकालती हैं।

इसे मंदिर परिसर में पहुंचाकर चढ़ावे के रूप में बाबा धर्मराज को समर्पित किया जाता है।

सामाजिक समरसता की अनोखी परंपरा

यहां दशकों पुरानी बाबा धर्मराज के पूजन की परंपरा गांव के सिंह परिवार की ओर से शुरू की गई थी। दुमका स्थित हवाई अड्डा के समीप आसनसोल गांव के धर्मराज मंदिर से बाबा धर्मराज की मूर्ति लाकर यहां जलाई गांव में स्थापित की गई।

पुजारी रविंद्रनाथ झा

पूरे पूजन परंपरा की खास बात यह है कि जितने भी भोक्ता इस पूजन कार्य में शामिल होते हैं, सभी जनेऊ धारण करते हैं। जबकि, महुआ पानी दलित रविदास परिवार के घर लाकर चढ़ाया जाता है। यहां आयोजित इस पूजन परंपरा व विधान में समाज के सभी वर्गों की बगैर किसी भेदभाव के बराबर की भागीदारी रहती है।

सही मायनों में कहें तो यहां हर वर्ष आयोजित होने वाली बाबा धर्मराज की पूजा सनातन धर्म की सामाजिक समरसता और सामंजस्य का अद्भुत उद्धरण प्रस्तुत करता है।

यहां पुराने समय से मिट्टी का घोड़ा, कलश, दीप, घी और महुए का पानी श्रद्धालुओं की ओर से चढ़ाने की परंपरा रही है। यहां सबसे अहम यह है कि बाबा धर्मराज की पूजा में सभी वर्ग के लोगों की भागीदारी रहती है। बेहतर सामाजिक सामंजस्य के साथ तीन दिनों की यह संपूर्ण पूजन परंपरा निभाई जाती है।

अंगारों पर कूदते हैं भक्त

परंपरा के अनुसार भोक्ता नुकीले तारों से अंग छेद कर मंदिर की परिक्रमा करते हैं और देर रात को फूलखेला यानि जलते अंगारों व कांटों पर कूद-कूदकर हैरतअंगेज कारनामे दिखाते हैं।


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