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पांच साल की बेटी ने दी शहीद को मुखाग्नि, पार्थिव शरीर पंचतत्व में विलीन

जम्मू-कश्मीर में आतंकियों से लोहा लेते शहीद हुए कमांडेंट प्रमोद कुमार को मुखाग्नि उनकी मासूम पांच वर्षीय पुत्री आरना शर्मा ने दी।

By Bhupendra SinghEdited By: Published: Wed, 17 Aug 2016 06:08 AM (IST)Updated: Wed, 17 Aug 2016 06:12 AM (IST)
पांच साल की बेटी ने दी शहीद को मुखाग्नि, पार्थिव शरीर पंचतत्व में विलीन

जागरण संवाददाता, जामताड़ा। सोमवार को जम्मू-कश्मीर में आतंकियों से लोहा लेते शहीद हुए कमांडेंट प्रमोद कुमार को मुखाग्नि उनकी मासूम पांच वर्षीय पुत्री आरना शर्मा ने दी। पश्चिम बंगाल के चित्तरंजन स्थित अजय नदी के घाट पर बिटिया ने अपने मौसा की गोद से फेरे लेते हुए मंगलवार की दोपहर सवा दो बजे पिता का अंतिम संस्कार किया। इसके पूर्व शहीद प्रमोद का पार्थिव शरीर सीआरपीएफ की कड़ी सुरक्षा के बीच झारखंड के जामताड़ा जिले के मिहिजाम स्थित उनके आवास पर मंगलवार सुबह सवा दस बजे लाया गया था। सबसे पहले शहीद कमांडेंट के पार्थिव शरीर को गार्ड ऑफ ऑनर दिया गया। परिवार के सदस्यों ने शहीद को श्रद्धांजलि दी, इसके बाद 11: 30 बजे हजारों की संख्या में भीड़ के साथ अंतिम यात्रा श्मशान के लिए निकल पड़ी।

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गमगीन माहौल के बीच प्रमोद के साहसिक कारनामों को लेकर अंतिम यात्रा में शहीद प्रमोद अमर रहे, पाकिस्तान होश में आओ, पाकिस्तान मुर्दाबाद के नारे झारखंड से पश्चिम बंगाल की सीमा तक लगते रहे। अंतिम यात्रा में दिल्ली से सीआरपीएफ के डीजी दुर्गा प्रसाद, डीआइजी नीतीश कुमार, कोलकाता के कमांडेंट विनय तिवारी, एसडीजी संदीप, डीआइजी दुर्गापुर आरएनओ भड़, डीआइजी सीआरपीएफ धनबाद सुरेश शर्मा, दुमका डीआइजी देव बिहारी शर्मा, जामताड़ा उपायुक्त रमेश कुमार दूबे, एसपी मनोज सिंह, जामताड़ा विधायक इरफान अंसारी, राज्य के कृषि मंत्री रणधीर सिंह समेत सैकड़ों लोग शामिल हुए। अंतिम यात्रा में जामताड़ा के मिहिजाम से लेकर पश्चिम बंगाल के चित्तरंजन तक के लोग उमड़ पड़े थे।

एक मारा है, दस मारेंगे : कमांडेंट विनय

अपने सहपाठी कमांडेंट प्रमोद कुमार की शहादत को गौरवपूर्ण सलामी देने के बाद कोलकाता सीआरपीएफ के कमांडेंट विनय तिवारी ने बताया कि वे एक दिलेर, साहसिक व दुश्मन के सामने कभी पीछे मुड़ कर देखने वाले शख्स नहीें थे। प्रमोद की शहादत का बदला अब एक के बदले दस की जान लेकर लिया जाएगा।

प्रमोद की शहादत बेकार नहीं जाएगी : सीएम

रांची। सीआरपीएफ के कमांडेंट प्रमोद कुमार की शहादत पर मुख्यमंत्री रघुवर दास ने गहरा शोक व्यक्त किया है। जामताड़ा निवासी प्रमोद सोमवार को जम्मू-कश्मीर के नौहट्टा में झंडोत्तोलन के तुरंत बाद आतंकियों के अचानक हुए हमले में शहीद हो गए थे। शहादत के पहले उन्होंने दो आतंकियों को मार गिराया था।

मुख्यमंत्री ने प्रमोद की इस जांबाजी का विशेष उल्लेख करते हुए कहा कि उनकी शहादत बेकार नहीं जाएगी, बल्कि कायरता का उदाहरण पेश करने वाले आतंकियों से मुठभेड़ में अद्र्ध सैनिक बलों के लिए मील का पत्थर साबित होगी।

कमांडेंट प्रमोद के बलिदान पर झारखंड को गर्व है। मैं उनको श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए ईश्वर से प्रार्थना कर रहा हूं कि उनके परिवार को यह पहाड़ सा दुख सहने की शक्ति प्रदान करे।

बिहार के मूल निवासी थे प्रमोद

जामताड़ा। प्रमोद कुमार ने इंटरनल सिक्यूरिटी एकेडमी सीआरपीएफ माउंट आबू से प्रशिक्षण प्राप्त किया था। उनकी पहली पदस्थापना असिस्टेंट कमांडेंट के पद पर बिहार के मुजफ्फरपुर में वर्ष 1998 मे हुई थी। बाद में बोकारो, रांची, मोकामा व कोलकाता में भी पदस्थापित रहे। शहीद प्रमोद अपने पीछे माता, पिता, पत्नी व पांच वर्षीय पुत्री आरना शर्मा व चार बहन को छोड़ गए हैं। इनके पिता चिरेका से 12 वर्ष पूर्व सेवानिवृत्त हो चुके हैं, जो इस समय बीमार चल रहे हैं। उनका पैतृक गांव बिहार के पटना जिला अंतर्गत बख्तियारपुर में है।

बहनों ने भेजी थी राखी, भाई हो गया शहीद

मिहिजाम (जामताड़ा)। कमांडेंट प्रमोद कुमार ने यह सोचा भी नहीं होगा कि तीन बाद बाद वे उस राखी को अपनी कलाई में नहीं बांध पाएंगे जो उनकी बहनों ने जीवन भर की रक्षा के संकल्प के साथ भेजी थी। रक्षाबंधन के दो दिन पूर्व शहीद का पार्थिव शरीर जब आवास पहुंचा तो बहनों ने अश्रुपूरित नेत्रों से भाई की कलाई में राखी बांधी।

शंकर के पुजारी थे, करते थे सोमवारी

जामताड़ा। शहीद की बहनों ने बताया कि प्रमोद भोले शंकर के बड़े भक्त थे। वे प्रति सप्ताह सोमवारी में उपवास करते थे और मंदिर में दर्शन कर जल अर्पित करते थे। पर यह प्रमोद के जीवन के लिए विडंबना रही कि दुश्मनों के साथ उनका सामना भी सोमवार को हुआ।

छुट्टी मिली तो सितंबर में आऊंगा

जामताड़ा। शहीद कमांडेंट प्रमोद की बहन मनोरमा ने बताया कि श्रीनगर के हालात पर उनकी बात अपने भाई से पिछले हफ्ते ही हुई थी। कब आओगे? इस पर भाई ने आत्मीयता से कहा था कि छुट्टी मिली तो सितंबर में आऊंगा। भाई जब यहां मिहिजाम घर आते थे तो महीने भर रुकते थे। अभी दो माह पूर्व ही आए थे। वे बहुत केयङ्क्षरग थे। हम सभी चार बहन उनसे छोटी हैं पर सभी का बराबर ख्याल रखते थे। वे मौका निकालकर अपने पैतृक घर पटना के बख्तियापुर भी पहुंच जाते थे। उनकी पल-पल की यादों को हम कभी भुला नहीं सकते।

रेलवे की नौकरी छोड़ रक्षा क्षेत्र से जुड़े

जामताड़ा। प्रमोद कुमार का जुड़ाव रक्षा क्षेत्र में सेवा देने का पहले से ही रहा था। प्रमोद ने रेलवे की परीक्षा भी दी थी जिसमें उनका चयन हो गया था। वे रेलवे की नौकरी की ट्रेनिंग भी कर रहे थे, इसी बीच सीआरपीएफ में भी सफलता अर्जित कर ली तो रेलवे की नौकरी से तौबा कर लिया। उनके परिजनों ने बताया कि उनका मन रक्षा क्षेत्र में जाने का पहले से था। वह भी अधिकारी के रूप में।


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