70 के दशक में महाजनी प्रथा बना था चुनावी मुद्दा
जीवेत शरद शतम् नारायणपुर के 67 वर्षीय रंजीत वैद्य ने दैनिक जागरण से साझा किया पहले और
नारायणपुर (जामताड़ा) : दुमका लोकसभा क्षेत्र में 1977 में महाजनी प्रथा के खिलाफ आंदोलन चरम पर था। इसका खासा प्रभाव चुनाव पर भी पड़ा था। एक बड़ा वर्ग इससे प्रभावित हुआ था। इसका नतीजा यह हुआ कि इस मुद्दे ने 1977 के बाद के चुनावों की दशा ही बदलकर रख दी थी। ये कहना है नारायणपुर के 67 वर्षीय रंजीत वैद्य का, जो शुक्रवार को दैनिक जागरण से पहले और अब के चुनाव में आए बदलाव पर अपनी बातें साझा कर रहे थे। रंजीत बताते हैं कि उन्होंने 1977 के आम चुनाव में पहली बार मतदान किया था। उस चुनाव में कांग्रेस के सत्यचरण बेसरा दुमका से जीते थे। उस समय सोशल मीडिया नहीं था। क्षेत्र में अखबार भी पढ़ने को नहीं मिलता था। मतदान के बाद रेडियो पर समाचार के माध्यम से परिणाम पता चलता था। तब हर घर में रेडियो सुना जाता था। उस समय चुनाव में पैसे का इतना खेल नहीं था, जितना आज है। मतगणना चार-पांच दिनों तक चलती थी। आज इवीएम से मतदान हो रहा है और परिणाम भी जल्द आ जा रहे हैं। उन्होंने बताया कि अब नई व्यवस्था के तहत बीएलओ मतदाताओं को वोट से पूर्व ही मतदान की पर्ची दे रहे हैं, जिसमें बूथ संख्या, मतदाता क्रमांक संख्या और नाम आदि का उल्लेख रहता है। लेकिन पहले के समय में इतनी तकनीकी सुविधाएं नहीं थीं। पहले मतदान केंद्र के पास बैठे पार्टी के एजेंट से नाम और मतदाता क्रमांक खोजने में ही काफी समय लग जाता था। लेकिन उस समय चुनाव का एक अलग ही जुनून होता था। लोग साइकिल से चुनाव प्रचार करते थे। जो कुछ मिल गया खा लेते थे फिर प्रचार कार्य में लग जाते थे। दैनिक जागरण आपके लंबी उम्र की कामना करता है।