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आस्था की भेंट चढ़ी कोरोना बचाव की सावधानियां

करमाटांड़ शुक्रवार को प्रखंड क्षेत्र के विभिन्न स्थानों पर वट सावित्री पूजा को लेकर महिल

By JagranEdited By: Published: Fri, 22 May 2020 06:43 PM (IST)Updated: Fri, 22 May 2020 06:43 PM (IST)
आस्था की भेंट चढ़ी कोरोना बचाव की सावधानियां

करमाटांड़ : शुक्रवार को प्रखंड क्षेत्र के विभिन्न स्थानों पर वट सावित्री पूजा को लेकर महिलाओं की काफी भीड़ उमड़ी। हाईस्कूल मैदान पीडब्ल्यूआइ समेत कई स्थान पर पूजा अर्चना कर महिलाओं ने पति की दीर्घायु की कामना की। वट सावित्री पूरे प्रखंड में श्रद्धा-भक्ति के साथ मनाई जा रही है। महिलाएं वट वृक्ष के नीचे पूजा-अर्चना के बाद पेड़ में रक्षा सूत्र बांधी। बालों में वट वृक्ष के पत्ते लगाकर पति के दीर्घायु की कामना कीं। लेकिन श्रद्धा एवं भक्ति के इस व्रत में कोरोना संक्रमण को लेकर शारीरिक फासले का ख्याल नहीं रखा गया। अधिकतर जगहों पर शारीरिक दूरी का पालन नहीं किया गया।

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महिलाएं एक दूसरे से बिल्कुल सटकर पूजा-अर्चना में जुटी रहीं। कहीं भी किसी के चेहरे पर मास्क या फेस कवर भी नहीं दिखा। आमतौर पर कोरोना संक्रमण को लेकर ज्यादा सचेत रहनेवाली महिलाएं इस दौरान संक्रमण के भय से पूरी तरह मुक्त होकर पूजा-अर्चना में लीन दिखीं। इस दौरान कई जगह पर पंडितों ने पूजा करवाई। महिलाओं को सावित्री सत्यवान की कथा सुनाई। वटवृक्ष के पास महिलाओं की उमड़ी भीड़ के आगे कोरोना का भय भी फीका पड़ गया। विवाहित महिलाएं इस दिन अपने सुहाग की दीर्घायु होने के लिए व्रत-उपासना करती हैं। यह व्रत हर साल ज्येष्ठ माह में अमावस्या के दिन किया जाता है। मान्यताओं के अनुसार जो स्त्री उस व्रत को सच्ची निष्ठा से रखती हैं, उसे न सिर्फ पुण्य की प्राप्ति होती है, बल्कि उसके पति पर आई सभी परेशानियां भी दूर हो जाती हैं।

क्या कहती हैं महिलाएं : वट सावित्री व्रत में बरगद के पेड़ का महत्व बहुत अधिक होता है। सनातन संस्कृति में माना जाता है कि बरगद के पेड़ पर ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों देवताओं का वास होता है। इस दिन विवाहित महिलाएं वट वृक्ष की जड़ मे जल चढ़ाकर उसमें कुमकुम अक्षत लगाती हैं। पेड़ में मौली लपेटी जाती है। विधि-विधान के साथ वट वृक्ष की पूजा की जाती है। ऐसा करने से महिलाओं को अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है। वट सावित्री व्रत त्रयोदशी तिथि से ही प्रारंभ हो जाता है। हालांकि कुछ महिलाएं केवल अमावस्या के दिन ही यह व्रत करती हैं।

गायत्री देवी

वट सावित्री पूजा सुहागिनों के अखंड सौभाग्य प्राप्त करने का प्रमाणिक और प्राचीन व्रत है। धर्म ग्रंथों में इस बात का उल्लेख है कि व्रत करने से अल्पायु पति भी दीर्घायु हो जाते हैं। जब सत्यवान की आत्मा को यमराज लेने पहुंचे थे, तब उनकी पत्नी सावित्री भी उनके पीछे-पीछे चल पड़ी। यमराज के काफी समझाने के बाद भी जब वह वापस नहीं लौटी, तब विवश होकर यमराज ने सत्यवान की आत्मा का प्रवेश उसके मृत शरीर में करवा दिया। उसी समय से सावित्री वट वृक्ष की पूजा की जा रही है।

कविता देवी

शादी के बाद से वट सावित्री व्रत कर रही हूं। लॉकडाउन की वजह से पहली बार घर पर पूजा की गई। अपनी सामाजिक जिम्मेदारी समझते हुए सभी को यही करना चाहिए। वर्तमान स्थिति में पूरा देश महामारी से जूझ रहा है। ऐसे में महिलाओं को शारीरिक दूरी बनाकर पूजा-अर्चना करनी चाहिए परंतु कुछ लोग इसे हल्के में ले रहे हैं। इससे संक्रमण का खतरा बढ़ सकता है।

रोना मंडल


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