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हुनरमंद अल्पसंख्यकों में चरखा के बूते बढ़ेगी आत्मनिर्भरता

मुरलीपहाड़ी (जामताड़ा) नारायणपुर प्रखंड के पोखरिया गांव के ग्रामीणों के हाथों बने गमछे व चादर बहुत जल्द ही जामताड़ा जिले के ग्रामीण हाटों व बाजार में मिलेगी। इस गांव में बापू के सपने का चरखा इसी माह से घर-घर चलेगा। इसके लिए गांव के 40 महिला-पुरुषों ने धागा काटने से लेकर बुनने तक की प्रक्रिया को 45 दिन के प्रशिक्षण में सीखा है। 18 महिला व 22 पुरुषों की टोली ने अपने हुनर का लोहा गमछा व चादर बुनकर मनवाया है। यह गांव नारायणपुर प्रखंड के कोरीडीह वन पंचायत के अंतर्गत आता है।

By JagranEdited By: Published: Tue, 07 Jan 2020 05:26 PM (IST)Updated: Tue, 07 Jan 2020 05:26 PM (IST)
हुनरमंद अल्पसंख्यकों में चरखा के बूते बढ़ेगी आत्मनिर्भरता
हुनरमंद अल्पसंख्यकों में चरखा के बूते बढ़ेगी आत्मनिर्भरता

मुरलीपहाड़ी (जामताड़ा) : नारायणपुर प्रखंड के पोखरिया गांव के ग्रामीणों के हाथों बने गमछे व चादर बहुत जल्द ही जामताड़ा जिले के ग्रामीण हाटों व बाजार में मिलेगी। इस गांव में बापू के सपने का चरखा इसी माह से घर-घर चलेगा। इसके लिए गांव के 40 महिला-पुरुषों ने धागा काटने से लेकर बुनने तक की प्रक्रिया को 45 दिन के प्रशिक्षण में सीखा है। 18 महिला व 22 पुरुषों की टोली ने अपने हुनर का लोहा गमछा व चादर बुनकर मनवाया है। यह गांव नारायणपुर प्रखंड के कोरीडीह वन पंचायत के अंतर्गत आता है। अल्पसंख्यक समुदाय बहुल गांव के दर्जनों परिवार के महिला-पुरुष अब अपने हाथ के हुनर को लूम में प्रदर्शित करेंगे।

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भारत सरकार के कपड़ा मंत्रालय के सहयोग से झारखंड सिल्क टेक्सटाइल हैंडलूम हैंडीक्राफ्ट डेवलपमेंट कॉरपोरेशन रांची ने यहां के लोगों को कपड़ा के क्षेत्र में व्यवसाय करने का हुनर सिखाया है। यहां के महिला-पुरुष गमछा व चादर ग्रामीण हाट से लेकर बाजार में बेच कर खुद में आत्मनिर्भरता लाएंगे। झारक्राप्ट उन्हें 90 फीसदी अनुदानित दर से हैंडलूम आदि सामग्री उपलब्ध कराएगी। लोगों को जनवरी महीने में ही हैंडलूम मिलने वाला है। बुनकरों के पास चरखा है। बतौर चरखा महात्मा गांधी का सपना अब इस गांव में साकार होते दिखेगा। यह क्षेत्र आदिवासी बहुल है। आदिवासी पांच व छह हाथ के कपड़े का परिधान पहनते हैं। पुरुष व महिला का अलग-अलग परिधान होता है। यहां के लोग अब दोनों प्रकार के परिधानों की बुनाई करेंगे।

--आधा घंटा में तैयार होगा गमछा : बुनकर हस्तकरघा से महज आधे घंटे में एक गमछा तैयार कर लेंगे। एक गमछा को यदि थोक भाव में बेचा जाएगा तो 15- 20 रुपये बुनकर को लाभ होंगे। झारक्रॉप्ट बुनकरों के लिए कॉमन फेसिलिटी सेंटर खोलेगा ताकि उन्हें किसी प्रकार की असुविधा न हो। इस केंद्र से बुनकरों को मोटा से लेकर पतला सूत सस्ते दामों में मिल जाएगा। केंद्रीय वस्त्र मंत्रालय के विकास आयुक्त की देखरेख में बुनकरों को हमेशा सरकार प्रोत्साहित करेगी।

---क्या कहते हैं बुनकर : बुनकर अब्दुल सतार, सनाउल्लाह, शाहनाज बीबी, फातमा बीबी, गुलाफ बेगम, आशमा खातून ने बताया कि हमलोगों को कपड़े बुनने का अवसर मिला है। अब हमें रोजगार के लिए पलायन नहीं करना पड़ेगा। गरीबी मिटेगी। गांव से लेकर शहर तक में उनके हाथों से बने गमछा व अन्य परिधान लोगों तक पहुंचेंगे। हमें जैसे ही हैंडलूम मिल जाएगा, कपड़ा बुनने का कार्य आरंभ कर दिया जाएगा।

---बुनकरों को मिलेगा आवास : जो बुनकर कपड़ा उद्योग से जुड़कर इस व्यवसाय को मूर्त रूप देंगे और उनकी रुचि इस कार्य में दिखेगी उन्हें सरकार बुनकर आवास भी देगी। ऐसा पक्का आवास मिलेगा जो उनके रहने लायक होगा। इस लाभ के लिए बुनकरों को कपड़ा बुनाई का कार्य जारी रखना होगा।

---क्या कहते हैं तकनीकी अधिकारी : देवघर कार्यालय के तकनीकी पदाधिकारी शामंता भोई ने बताया कि पोखरिया के 40 लोगों को कुछेक माह पूर्व कपड़ा बुनने का प्रशिक्षण दिया गया है। यहां के करीब बीस लोग कपड़ा बुनने में दक्ष हो गए हैं। अब उन्हें लूम व सूत उपलब्ध कराया जाएगा। जल्द ही यहां के बुनकरों के हाथों निर्मित कपड़े बाजार में सजे दिखेंगे।


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