World Music Day: विश्व संगीत दिवस पर विशेष...जनजातीय संगीत का आधार हैं ये पारंपरिक वाद्य यंत्र
World Music Day जनजातीय जीवन में विभिन्न त्यौहारों का काफी महत्व है। त्योहारों के अनुसार इनके नृत्य शैली में भी विविधता है। इनके नृत्य व गीत-संगीत में विविध वाद्य यंत्र का भी विशेष रूप से उपयोग किया जाता है।
चाईबासा, (सुधीर पांडेय)। 21 मई को विश्व संगीत दिवस है। इस विशेष दिवस पर आइये आज हम आपको जनजातीय संगीत से जुड़े वाद्य यंत्रों के बारे में बताते हैं। ऐसे वाद्य यंत्र जिनके बिना जनजातीय संगीत की परिकल्पना नहीं की जा सकती। दरअसल, जनजातीय जीवन में आनंद और उल्लास का मुख्य स्थान है। ये प्रायः एक विशेष स्थान में एक ही क्षेत्र में निवास करते हैं। इसलिए इनके बीच विशेष आदत, संस्कृति, रिवाज, गीत-संगीत आदि सदा अक्षुण्ण रहता है। जनजातीय जीवन में विभिन्न त्यौहारों का काफी महत्व है। त्योहारों के अनुसार इनके नृत्य शैली में भी विविधता है। इनके नृत्य व गीत-संगीत में विविध वाद्य यंत्र का भी विशेष रूप से उपयोग किया जाता है। इसमें नगाड़ा, मांदल, बांसुरी, बनम (देसी सारंगी) आदि मुख्य रूप से उपयोग होता है।
नगाड़ा (दामा): बड़े शंकु आकार का यह वाद्य यंत्र ढोल की आवाज देता है। इसे बजाने के लिए दो डंडे का उपयोग किया जाता है।झारखंड के हो जनजातीय समुदाय इसे अपने मुख्य त्योहार मागे पर्व,बाह पर्व,हेरो पर्व,जोमनामा और शादी समारोह में उपयोग करते हैं। नगाड़ा के नृत्य करना संभव नहीं है।पुराने काल में नगाड़ा का उपयोग जनजातीय समुदाय में लोगों सूचना देने के लिए भी किया जाता था। हो जनजाति में नगाड़ा का दामा कहते हैं।
बेलन आकार का इस वाद्य यंत्र की आवाज बहुत मधुर होता है। यह नगाड़ा का विशेष जोड़ी है।इसी से नृत्य का ताल निकलता है। इसके बिना नृत्य संभव नहीं है। अगर मृदंग के बिना नृत्य कर भी लिया जाए तो इसमें रास की कमी साफ झलकेगा।इसे दोनों हाथों से उंगलियों और पंजों की कलाकारी से बजाया जाता है।इससे निकलने वाली विशेष ताल के अनुसार युवा व महिला-पुरुष एक लय में नृत्य करते हैं।हो समुदाय में धारणा है कि पर्व में नगाड़ा-मृदंग बजने से ही इष्ट देवता प्रसन्न होते हैं।मृदंग को हो जनजाति दुमंग कहते हैं।
बांसुरी- बांस से बनी वाद्य यंत्र है।यह हो जनजाति विशेष कर सबसे बड़ा त्योहार मागे पर्व में उपयोग लाते हैं।युवा व महिला-पुरुष जब गीत सुनाते हैं तो गीत के सुर बांसुरी की धुन से संगत किया जाता है। हो जनजाति में बांसुरी को रुतु कहते हैं।
बनम (देसी सारंगी) : यह वाद्य यंत्र वर्तमान में लुप्तप्राय स्थिति में है।इसे बजाने के लिए विशेष कला की जरूरत होती है।इसका आकार हेलीकॉप्टर की तरह है।इसे बजाने के घोड़े की पूंछ का बाल प्रयोग किया जाता है। इससे भी एक मधुर आवाज निकालती है।यह विशेष कर मागे पर्व में उपयोग किया जाता है।इसे गीत के साथ संगत करने में ही उपयोग किया जाता है जिससे वातावरण संगीतमय हो जाता है।
माउथ ओर्गन:-इस वाद्य यंत्र का मागे पर्व में विशेष उपयोगी होता है।इसे बजाने के लिए विशेष कला की जरूरत होती है।इसे हर कोई बजा नहीं सकता।हो जनजाति समुदाय में इसका भी बड़ा महत्व है। इसके बजने से मागे पर्व में मनमोहक वातावरण तैयार हो जाता है।
करतल : इस वाद्य यंत्र का उपयोग आधुनिकता का दौर में जनजातीय समुदाय कर रही है। इससे ताल में निश्चित गति को बनाए रखने हेतु उपयोग किया जाता है। इसके अलावा एक अन्य वाद्य यंत्र घंटा है। इसका उपयोग हो जनजाति समुदाय में नृत्य के दौरान उल्लास भरने व ताल में तीव्रता और धीमा गति को समन्वय बनाए रखने के लिए बजाया जाता है।
पारंपरिक वाद्य यंत्रों को संरक्षित करने में लगे हो समाज के संस्कृति विशेष
वर्तमान की नई पीढ़ी पारंपरिक वाद्य यंत्र बजाने का अवसर खोते जा रहे हैं। इससे पारंपरिक गीत संगीत अगली पीढ़ी को हस्तांतरित करने में चुनौती आ रही है। नई पीढ़ी की पारंपरिक वाद्य यंत्रों के प्रति उदासीनता को देखते हुए हो समाज के संस्कृति विशेषज्ञ बुधराम गागराई उर्फ बोयो गागराई और सामु देवगम सदर प्रखंड के मतकमहातु और कमारहातु में मंझारी प्रखंड के जलधर गांव में अशोक गोप एवं हरिश बिरुवा,तांतनगर प्रखंड के मुरतोडंग में सुनिया बिरुली, हाटगम्हरिया प्रखंड के कुलाबुरु गांव में चंद्रमोहन गागराई, जगन्नाथपुर प्रखंड के जलडीहा गांव में संतोष कुंकल , मझगांव प्रखंड के सोनापोस में शिवनाथ पिंगुवा नव युवक युवतियों को वाद्य यंत्र और नृत्य कला प्रशिक्षण विभिन्न स्थानों पर दे रहे हैं।