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Weekly News Roundup Jamshedpur : कौन होगा अगला सिविल सर्जन, पढ़‍िए च‍िक‍ित्‍सा जगत की अंदरूनी खबर

Weekly News Roundup Jamshedpur. हर कोई अपना-अपना दावा मजबूत करने में जुटा हुआ है। इधर तत्कालीन सिविल सर्जन (सीएस) को एक्सटेंशन मिलने की चर्चा भी खूब हो रही है।

By Rakesh RanjanEdited By: Published: Sat, 20 Jun 2020 08:54 AM (IST)Updated: Sat, 20 Jun 2020 08:54 AM (IST)
Weekly News Roundup Jamshedpur :  कौन होगा अगला सिविल सर्जन, पढ़‍िए च‍िक‍ित्‍सा जगत की अंदरूनी खबर
Weekly News Roundup Jamshedpur : कौन होगा अगला सिविल सर्जन, पढ़‍िए च‍िक‍ित्‍सा जगत की अंदरूनी खबर

जमशेदपुर, अमित तिवारी।  पूर्वी सिंहभूम जिले के स्वास्थ्य विभाग का बॉस कौन होगा, यह तो जून के अंतिम सप्ताह में तय होगा। लेकिन कुर्सी को लेकर दावेदारों की कमी नहीं है। हर कोई अपना-अपना दावा मजबूत करने में जुटा हुआ है। इधर, तत्कालीन सिविल सर्जन (सीएस) को एक्सटेंशन मिलने की चर्चा भी खूब हो रही है।

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कोई स्वास्थ्य मंत्री के यहां से फाइल बढ़ने की बात कर रहा है तो कोई विभाग में उनकी गहरी पैठ होना बता रहा है। हालांकि, मंत्रीजी जो भी निर्णय लेंगे वह पूर्वी सिंहभूम जिले को तेजी से आगे बढ़ाने के क्षेत्र में संकल्पित होगा। बन्ना गुप्ता पहली बार स्वास्थ्य मंत्री बने हैं। उनकी कोशिश होगी कि इस जिले को एक मॉडल के रूप में विकसित किया जाए। इसके लिए उनको एक समर्पित योद्धा की जरूरत होगी, जो उनका सपना साकार कर सके। सिविल सर्जन डॉ. महेश्वर प्रसाद इसी माह 30 जून 2020 को रिटायर्ड हो रहे हैं।

हमारे साथ ही भेदभाव क्‍यों

कोरोना को हराने के लिए हर कोई जी-जान से जुटा है। दिन-रात मेहनत कर रहा है। लेकिन, बीते दिनों जिला प्रशासन की ओर से महात्मा गांधी मेमोरियल मेडिकल कॉलेज के वायरोलॉजी लैब में तैनात टेक्नीशियनों को सम्मानित किया गया तो जिले में नमूना संग्रह करने वाले टेक्नीशियनों ने भेदभाव का आरोप लगाया। नाराजगी इतनी बढ़ी कि मामला स्वास्थ्य विभाग के आला अधिकारियों तक जा पहुंची। जिले भर में नमूना संग्रह करने वाले टेक्नीशियनों का कहना है कि दिन भर पीपीई किट पहन कर कड़ी धूप में नमूना संग्रह करते हैं लेकिन आजतक किसी ने हौसला नहीं बढ़ाया। यहां तक की फटकार ही मिली। 24 घंटे ड्यूटी करने के बाद पर्याप्त सुविधाएं नहीं मिल रही हैं। टेक्नीशियनों को नमूना संग्रह व लैब में जांच के लिए विशेष तौर पर लगाया गया है। तीन माह से परिवार को समय नहीं दे पाए हैं। घर जाते भी हैं तो बच्चे से दूर रहते हैं।

मैदान में डटे एमजीएम के डॉक्‍टर

जंग जितने के लिए पर्याप्त बल और संसधान दोनों जरूरी है। लेकिन महात्मा गांधी मेमोरियल (एमजीएम) मेडिकल कॉलेज अस्पताल में इन दोनों चीजों की ही भारी कमी है। इसके बावजूद भी यहां के चिकित्सकों को दाद देनी होगी कि जो कोरोना को हराने के लिए पूरी ईमानदारी से मैदान में डटे हुए हैं। एक चिकित्सक ऐसे भी हैं जिनके पैसा से कोरोना मरीजों का भोजन बनता है। चाय बिस्कुट का भी प्रबंध किया गया है। जो सामान्य मरीजों को नहीं मिलता है। दरअसल, सरकार द्वारा प्रति मरीज को भोजन के लिए सिर्फ 50 रुपये ही तय किया गया है जो नाकाफी है। इधर, चिकित्सक, वार्ड ब्यॉय, सफाई कर्मी की भी भारी कमी है। चिकित्सकों का कहना है कि 100 बेड का कोविड वार्ड बना दिया गया, अच्छी बात है। लेकिन, क्या इसके लिए मैन पावर की जरूरत नहीं है। अस्पताल में पहले से ही मैन पावर का घोर किल्लत है।

लौट गया सेंटर

पूर्वी सिंहभूम जिले में तीन माह से जंग खा रहा कोविड कलेक्शन सेंटर आखिरकार वापस लौट गया। जब यह बनकर आया था तो कर्मचारियों में काफी उत्साह का माहौल था। लेकिन उसका उपयोग एक दिन भी नहीं हो सका। दक्षिण कोरिया की तर्ज पर पश्चिमी सिंहभूम जिले में कोविड कलेक्शन सेंटर बनाया गया था। इसकी सराहना पूरे देश भर में हुई। इसके बाद पूर्वी सिंहभूम जिले में भी एक सेंटर बना कर भेजा गया था। सेंटर की खासियत यह थी कि उसे कहीं भी ले जाकर कोरोना संदिग्ध मरीजों का नमूना लिया जा सकता था। इसके लिए इसमें चार पहिए लगाए गए थे ताकि एक जगह से दूसरे जगहों पर ले जाया जा सके। महामारी में नमूना संग्रह करने का यह बेहतर तरीका बताया गया था। इससे चिकित्सक व तकनीशियन को संक्रमित होने का खतरा बिल्कुल नहीं था। यह करीब 35 हजार रुपये की लागत से बना सेंटर था।


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