Weekly News Roundup Jamshedpur : आर्मरी ग्राउंड में तन गईं तलवारें, पढ़िए ऑफ द फील्ड खबर
Weekly News Roundup Jamshedpur. आर्मरी ग्राउंड। आर्मरी को हिंंदी में शस्त्रागार कह सकते हैैं। जैसा नाम वैसा ही आजकल यहां का माहौल है।
जमशेदपुर, जितेंद्र सिंह। Weekly News Roundup Jamshedpur जमशेदपुर का आर्मरी ग्राउंड। आर्मरी को हिंंदी में शस्त्रागार कह सकते हैैं। जैसा नाम, वैसा ही आजकल यहां का माहौल है। यहां दो प्रशिक्षकों के बीच तलवारें तन चुकी हैं। इसका खामियाजा नन्हें बच्चों को भुगतना पड़ रहा है।
आर्मरी फुटबॉल ट्रेनिंग सेंटर हैैं, जिसमें सैकड़ों बच्चे प्रशिक्षण लेते हैैं। लेकिन, किसी बात पर कोच अख्तर मलिक व राशिद मेहंदी के बीच ठन गई। बात बड़े अधिकारियों तक पहुंची। बीच बचाव की कोशिश हुई लेकिन, बात नहीं बनी। आनन-फानन में राशिद को टिनप्लेट फुटबॉल ट्रेनिंग सेंटर भेज दिया गया। पिछले दो साल से जो बच्चे राशिद सर से प्रशिक्षण ले रहे थे, वह अब मुंह फुलाए बैठे हैैं। माता-पिता अलग माथा नोच रहे हैैं। किस कोच के पल्ले पड़ गया हमारा लाडला। उम्र 65 साल। नौनिहालों को प्रशिक्षण देने का कोई अनुभव नहीं। अभिभावक पता लगाने में जुटे हैैं कि आखिर किसकी पैरवी है। अब खेल विभाग पर सवाल उठना लाजिमी है।
लूट का माल छूट में
आजकल जिला खेल संघों के बीच लूट का माल छूट में लेने की होड़ है। पिछले दो दशक से विभिन्न खेल संघों को जोंक की तरह जकड़े हुए पदाधिकारियों को जैसे ही पता चला कि राज्य सरकार की ओर से छह लाख चालीस हजार रुपये का फंड आया है, तुरंत हरकत में आ गए। जिला खेल पदाधिकारी के नजदीकी लोगों से पता लगाने लगे कि आखिर माल काहे आया है। पता चला, इस फंड से वैसे खिलाडिय़ों व प्रशिक्षकों को सम्मानित किया जाएगा, जिन्होंने पदक जीता है। बस क्या था, 'फर्जीफिकेशन' का दौर शुरू हो गया। कुछ पदाधिकारी खुद को कोच बताने लगे तो कुछ फर्जी खिलाडिय़ों को पदक विजेता बताने लगे। हद तो तब हो गई, जब बास्केटबॉल की दो संस्थाएं अपने खिलाडिय़ों की सूची लेकर दफ्तर पहुंच गईं। जिला खेल पदाधिकारी यह देखकर माथा नोचने लगे। बोले, अब पूर्वी सिंहभूम बास्केटबॉल में किसी को कुछ 'माल' नहीं मिलेगा।
दबाए बैठे हैं घोटाले की फाइल
झारखंड बास्केटबॉल संघ में घोटाले का जिन्न जब-जब बाहर निकलता है, तब-तब पदाधिकारियों की धड़कनें तेज हो जाती हैं। लेकिन, एक ऐसे अधिकारी हैं जिन्हें कुछ फर्क नहीं पड़ता। नाम है खेल निदेशक अनिल कुमार सिंह। वर्ष 2013-14 में साहब ने संघ को नेशनल बास्केटबॉल चैैंपियनशिप कराने के लिए 3.5 लाख रुपये का आवंटन दिया था। लेकिन, संघ ने चैैंपियनशिप ही नहीं कराया। जब विरोधी पक्ष इस मामले को लेकर खेल निदेशक के पास पहुंचा तो उन्होंने संघ को उपयोगिता प्रमाणपत्र देने को कहा। जब पहले प्रमाणपत्र से संतुष्ट नहीं हुए तो दूसरे नाम से फिर प्रमाणपत्र प्रस्तुत किया गया। फिर क्या था, साहब की भृकुटी तनी। 16 जुलाई 2019 को पत्र जारी कर हड़काया कि अब कार्रवाई करूंगा। तभी उनकी तंद्रा टूटी। सोचा, पैसा तो हमने ही आवंटित किया है। फंसने का चांस हमारा भी है। अब सात महीने होने को हैैं, साहब फाइल दबा कर बैठे हुए हैैं।
जमशेदपुर एफसी की बल्ले-बल्ले
भले ही इंडियन सुपर लीग के वर्तमान सीजन में जमशेदपुर एफसी ने अबतक का खराब प्रदर्शन किया हो लेकिन, दर्शकों के स्टेडियम में पहुंचाने के मामले में वह गत चैैंपियन बेंगलुरु एफसी से भी भारी है। जेआरडी टाटा स्पोट्र्स कांप्लेक्स में हुए कुल नौ मैच में औसतन 20 हजार से ज्यादा दर्शक मैदान पर पहुंचे। दर्शकों के मैदान पर पहुंचने के मामले में वह दूसरे स्थान पर है। एटीके औसतन 22 हजार दर्शक के साथ पहले स्थान पर है। जबकि, केरला ब्लास्टर्स औसतन 17500 दर्शक के साथ तीसरे, 14, 600 दर्शक के साथ बेंगलुरु एफसी चौथे और 13 हजार दर्शक के साथ पांचवें स्थान पर हैैं। सबसे बुरा हाल तो मुंबई एफसी का है, जिसने प्रत्येक मैच में औसतन 5800 दर्शक ही मैदान पर बुला पाए। पहली बार ओडिशा एफसी के नाम से उतरी इस टीम के पास भी दर्शकों का टोटा रहा। यहां सिर्फ 6300 दर्शक ही पहुंच पाए।