Weekly News Roundup Jamshedpur : बस इशारा करो, सबकुछ हाजिर; पढ़िए पुलिस महकमे की अंदरूनी खबर
Weekly News Roundup Jamshedpur. यहां कानून नहीं पैसा बोलता है। बस इशारा करो सबकुछ हाजिर। शराब भी मिल जाएगी लेकिन बोतल में नहीं बल्कि डाभ में।
जमशेदपुर, अन्वेष अम्बष्ट। Weekly News Roundup Jamshedpur जेल एक ऐसी जगह है जहां जुगाड़ तंत्र हावी है। जितना बड़ा दबंग, उतना रसूख, उसे उतनी सुविधा। पैसा फेंको तमाशा देखो के तर्ज पर यहां हर वो सुविधा मिल जाएगी जो प्रतिबंधित है। राजनेता, रसूखदार या अधिकारी को जेल पहुंचते ही अस्पताल की सुविधा मिल जाएगी। सामान्य बैरक में नहीं रहना पड़ता।
खाने के किसी सामान से लेकर नशे की सामग्री तक। चाहे घर से मंगा कर खाना खाओ या होटल से या बैरक में ही मनपसंद खाना पका लो। यहां कानून नहीं, पैसा बोलता है। बस इशारा करो, सबकुछ हाजिर। शराब भी मिल जाएगी, लेकिन बोतल में नहीं बल्कि डाभ में। इसमें सिरींज के सहारे उतनी शराब डाल दी जाएगी जितना कि उसमें से पानी निकलेगा। बस कीमत दोगुनी अदा करनी होगी। पांच रुपये की सिगरेट के लिए 10 और 10 रुपये की सिगरेट को 20 रुपये देने होंगे। गांजा भी। यहां सबकुछ मैनेज सिस्टम से चलता है।
हथियार बरामद, सौदागर गायब
शहर के बदमाशों तक अवैध हथियार बड़ी आसानी से पहुंच रहे हैं। देशी तमंचा, कारतूस से अत्याधुनिक हथियार तक आराम से उपलब्ध हो रहे हैैं। बेखौफ बदमाश इनका उपयोग आपराधिक वारदातों में कर रहे हैं। यूं तो यदा-कदा कार्रवाई के नाम पर एकाध हथियार के साथ बदमाश पकड़े जाते हैं। पुलिस पीठ थपथपाती है, लेकिन बदमाशों से यह उगलवाने की कोशिश नहीं होती कि कितने में हथियार की खरीद-बिक्री हुई? इसका सौदागर कौन है? कहां से आता? नतीजतन, हथियार का धंधा बदस्तूर जारी है। बीते वर्ष पुलिस ने आठ अपराधियों को हथियारों के जखीरे के साथ पकड़ा। सौदागर का नाम बताया गया हबीब और दानिश। कट्टा पांच से 10 हजार, पिस्टल 20 से 30 हजार और कारतूस 200 से 300 रुपये में मिलने की जानकारी मिली। और भी कई सौदागरों का पता चला। दरअसल, तस्करों पर नकेल कसने में पुलिस की असफलता का कारण मुखबिर तंत्र का फेल होना है।
कौन रोकेगा इनकी मनमानी
ऑटो चालकों की मनमानी से लोगों को सबसे अधिक दिक्कत हो रही है। जहां-तहां चौक-चौराहे पर अचानक ऑटो खड़ी कर देते है। आड़े तिरछे करते हुए इतनी तेज चलाते हैं कि सवारी हांफने लगता है। मन ही मन सोचते गुनाह कर दिया सवार होकर। दाहिने या बाएं कब किधर से निर्धारित क्षमता से अधिक यात्रियों को बैठा आपके वाहन के सामने आ जाएंगे, टक्कर मार देंगे, कहा नहीं जा सकता। विरोध किया तो खैर नहीं। कान फोडू म्यूजिक उगलते और तेज हार्न बजाते सरपट मस्ती में ऐसे निकलते हैं जैसे सड़क केवल इन्हीं के उपयोग के लिए आरक्षित है। परमिट-फिटनेस नहीं, लाइसेंस नहीं। सबके लिए नियम कानून इनके लिए कोई मानक तय नहीं। कार्रवाई की जहमत किसी ने उठाई तो शुरू कर देंगे धरना-प्रदर्शन। वोट बैंक के कारण नेता समर्थन में खड़े हो जाएंगे। आंदोलन की रणनीति तैयार होने लगेगी। इन्हीं सब कारणों से सख्ती दिखाने में पुलिस-प्रशासन नतमस्तक है।
मुंशी मैनेजर से कम हैं क्या
थानों में मुंशी मौज काटते हैं। थाने के ये मैनेजर जो ठहरे। बड़े से छोटे बाबू तक इन्हीं पर निर्भर रहते हैं। थानेदार के बाद मुंशी ही कर्ता-धर्ता होते हैं। चूंकि ये गली-कूचों से वाकिफ होते हैं। भला-बुरा समझते हैं। बड़े बाबू का हर काम इनकी सलाह पर होता है। सलाह नहीं ली तो बेड़ा गर्क तय समझिए। हर थाने में इनकी कलम से ही थानेदार के कार्यकाल की पटकथा लिखी जाती। थाने की व्यवस्था से लेकर अर्थव्यवस्था तक का पूरा बही-खाता यही संभालते हैं। इलाके में मधुमक्खी के किस छत्ते पर हाथ डालना है, कहां मलाई और कहां डेंजर जोन, सबका हिसाब रखते हैं। जवानों को ड्यूटी बांटने से लेकर छुïट्टी की सिफारिश करने तक का लेखा-जोखा इन्हीं के पास रहता है। थानेदार भी मुंशी जी को कभी ओवरटेक करने की गलती नहीं करते हैं। आखिर थाना चलाना है तो मुंशी जी को भला नाराज कैसे कर सकते हैं।