Weekly News Roundup Jamshedpur : जैसी करनी, वैसी भरनी, पढ़िए चिकित्सा जगत की अंदरूनी खबर
Weekly News Roundup Jamshedpur.साहब ऐसा क्या कर गए कि हर दूसरे-तीसरे दिन एक नए मामले की जांच को टीम गठित हो रही है। इससे ना सिर्फ वे चितिंत हैं बल्कि...
जमशेदपुर, अमित तिवारी। साहब ऐसा क्या कर गए कि हर दूसरे-तीसरे दिन एक नए मामले की जांच को टीम गठित हो रही है। इससे ना सिर्फ वे चितिंत हैं, बल्कि उनके शुभचिंतकों की परेशानी भी बढ़ गई है। वह डरे हुए हैं कि कहीं मेरा नाम भी सामने न आ जाए।
खैर, यह तो जांच का विषय है लेकिन, यह तो साबित हो चुका है कि जैसी करनी, वैसी भरनी। गड़बड़ी नहीं होती तो इतने सारे आरोप नहीं लगते। पूर्व सिविल सर्जन डॉ. महेश्वर प्रसाद पर अब एक नया आरोप लगा है कि उनके पास साक्ष्य होने के बावजूद कई निजी अस्पतालों एवं पैथोलॉजी लैब के निष्पादन की अनदेखी कर पर्यावरण को नुकसान पहुंचाया। इस मामले में जांच को तीन सदस्यीय कमेटी गठित हुई है। इसके साथ ही, उन पर और भी ढेर सारे आरोप लगे हैं, जिसकी जांच अलग-अलग कमेटी कर रही है। अब आगे का भविष्य आने वाली जांच रिपोर्ट तय करेगी।
हाथ में प्रमाण फिर भी कार्रवाई नहीं
महात्मा गांधी मेमोरियल (एमजीएम) मेडिकल कॉलेज अस्पताल में पीपीपी (पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप) मोड पर मेडॉल कंपनी संचालित है। यह सभी तरह की पैथोलॉजी जांच करती है, लेकिन यह जब से आई है तब से सरकार को चूना ही लगा रही है। जांच में कई बार प्रमाणित भी हो चुका है। इसके बावजूद कोई कार्रवाई नहीं हो रही है। कंपनी की ओर से लगभग आठ लाख रुपये बिल का दावा किया जाता है, लेकिन जब उसकी जांच होती है तो वह तीन से चार लाख रुपये ही निकलता है। यानी 50 फीसद फर्जी बिल सौंपा जाता है। अस्पताल प्रबंधन ने इसे गंभीरता से लेते हुए कई बार कार्रवाई के लिए विभाग को पत्र लिखा, लेकिन वहां पर इस एजेंसी की पकड़ फेविकोल जैसी मजबूत है, तभी तो कार्रवाई की अनुशंसा कूड़ेदान की गति को प्राप्त हो जाती है। ऊपर से बिल रोकने वाले को फटकार लगती है। आगे देखना है क्या होता है।
राम भरोसे चल रहा सीएस ऑफिस
सिविल सर्जन (सीएस) डॉ. आरएन झा कोरोना में व्यस्त हैं। वह एक सप्ताह से अपने कार्यालय में नियमित तौर पर नहीं जा पा रहे हैं। इससे वहां तैनात कर्मचारियों को रामराज का अनुभव हो रहा है। उन्हें न कोई रोकने वाला है, ना टोकने वाला। जब मन करता है, आ जाते हैं। जब मन करता है, टहलते हुए निकल जाते हैं। पूरा सिस्टम रामभरोसे चल रहा है। गुरुवार को एक व्यक्ति कुछ काम से सिविल सर्जन आफिस पहुंचा तो उसे भी इसका सामना करना पड़ा। उसे कोई नहीं मिला, लिहाजा लौट गए। सीएस ऑफिस में एक कर्मचारी ऐसा भी है, जिसे फोन करने पर साकची जेल चौक स्थित जिला कुष्ठ निवारण कार्यालय में होने की बात कहता है और वहां से फोन करने पर सीएस आफिस में होने का दावा करता है। यदि आप दोनों जगह एक साथ छापेमारी करें तो वह कहीं नहीं मिलेगा। वह कहां रहता है, सबको पता है।
बुरे फंसे अधीक्षक साहब
कोरोना जैसी महामारी में महात्मा गांधी मेमोरियल (एमजीएम) मेडिकल कॉलेज-अस्पताल के अधीक्षक साहब बुरे फंस गए हैं। उनके पास न तो पर्याप्त मैनपावर है, ना संसाधन। ऐसे में उनका प्रेशर इतना अधिक बढ़ जाता है कि तबीयत खराब हो जाती है। कभी बीपी बढ़ जाता है तो कभी शुगर। अधीक्षक ठहरे सीधे-साधे, इसलिए झूठ बोलना नहीं आता। वह हर काम को दिल पर ले लेते हैं, दिल से सोचते हैं और उसे पूरा करने का दिल से प्रयास भी करते हैं। लेकिन, यहां के सिस्टम के आगे लाचार हो जाते हैं। नतीजा है कि समस्याएं जस की तस बनी हुई हैं। अभी कोरोना मरीजों के भोजन की व्यवस्था एमजीएम के डॉ. रविभूषण अग्रवाल कर रहे हैं। ऐसे में आप आगे की स्थिति का अंदाजा खुद ही लगा सकते हैं। यह भी झारखंड की एक लेबोरेटरी है, बस इतना समझ लीजिए। यहां काम करना हर किसी के बस की बात नहीं है।