Weekly News Roundup Jamshedpur : कहां गए मंत्री के पांच करोड़... पढ़िए चिकित्सा जगत की अंदरूनी खबर
Weekly News Roundup Jamshedpur. 23 दिन बाद भी स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता के पांच करोड़ रुपये रांची से जमशेदपुर नहीं पहुंच पाए हैं। यह रुपये वेतन मद में मिलने थे।
जमशेदपुर, अमित तिवारी। Weekly News Roundup Jamshedpur Health Line 23 दिन बाद भी स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता के पांच करोड़ रुपये रांची से जमशेदपुर नहीं पहुंच पाए हैं। 30 जनवरी को प्रभार ग्रहण करते ही मंत्रीजी ने महात्मा गांधी मेमोरियल (एमजीएम) मेडिकल कॉलेज अस्पताल को वेतन मद में यह राशि देने की घोषणा की थी। लेकिन, वह सरकारी सिस्टम में फंसकर रह गई है।
इधर, आउटसोर्स कर्मचारियों का विरोध बढऩे लगा है। मंत्री जी के प्रतिनिधि राजेश बहादुर को इसकी भनक लगी तो उन्होंने सभी कर्मचारियों को उनसे मिलवाया। बन्ना गुप्ता ने जल्द ही उनको वेतन देने का भरोसा दिया है। अब देखना है कि राशि कबतक पहुंचती है। सरकार तो बदली जरूर है, लेकिन सिस्टम पुराने ढर्रे पर काम कर रहा है। एमजीएम के 300 कर्मचारियों को बीते चार माह से पूरा वेतन नहीं मिल सका है। वहीं, 80 से 90 कर्मचारियों को एक अन्ना भी नहीं मिला है। जिसके कारण उनका पेट पालना मुश्किल हो गया है।
बंदर के हाथ में नारियल
एक चर्चित कहावत है- बंदर के हाथ में नारियल। इस समय एमजीएम मेडिकल कॉलेज अस्पताल पर चरितार्थ हो रहा है। वर्ष 2011 में राष्ट्रीय खेलकूद प्रतियोगिता से पूर्व यहां एक करोड़ रुपये से भी अधिक लागत से अत्याधुनिक कार्डियक एंबुलेंस खरीदकर दिया गया था। मकसद था बड़े-बड़े आयोजनों व मरीजों की सेवा करना था। लेकिन, इसका उद्देश्य शायद ही अधिकारी और पदाधिकारी समझ पाए। अगर, समझे होते तो यह एंबुलेंस आज जंग नहीं खा रहा होता। इस कार्डियक एंबुलेंस में सुविधाएं इतनी अधिक है कि इसे चलता-फिरता ऑपरेशन थियेटर (ओटी) भी कहा जाता है। अभी, हाल में उपराष्ट्रपति वैैंकेया नायडू जमशेदपुर आए थे तो उनके लिए उधारी पर कार्डियक एंबुलेंस मांगना पड़ा। अगर, यह सही रहता तो न सिर्फ मरीजों की जान बचाता, बल्कि एमजीएम अस्पताल के लिए उपलब्धि भी मानी जाती। जानकार कहते हैं कि ऐसा एंबुलेंस कोल्हान क्षेत्र में नहीं है। सिर्फ राजधानी रांची रिम्स में मौजूद है।
पैसा वसूल रहे ड्रग इंस्पेक्टर
मंत्री बन्ना गुप्ता का बयान- दवा दुकानों से पैसा वसूल रहे ड्रग इंस्पेक्टर। दुकानदार मापदंडों का पालन कर बेझिझक चलाएं दुकान। इन दिनों सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रहा है। इसके तह में जाने से पता चलता है कि मंत्रीजी ठीक ही कह रहे हैैं। चोरी एक तरफ से नहीं, बल्कि दोनों तरफ से हो रही है। दुकानदार यदि सही हैैं तो किसी ड्रग इंस्पेक्टर को पैसा क्यों दे रहे हैं? और ड्रग इंस्पेक्टर ईमानदार हैं तो पैसा क्यों ले रहे हैं? अब समझने वाली बात है कि पूर्वी सिंहभूम जिले में करीब 350 फार्मासिस्ट हैैं और दुकानों की संख्या करीब 800 है। बाकि 450 दुकानें कैसे चल रही हैं। किसके शह पर चल रही हैं। जांच का विषय है। लेकिन, जब दोनों की मिलीभगत होगी तो यह जांच कभी भी संभव नहीं हो सकती है। अब, मंत्री जी खुद ही समझदार हैं, कार्रवाई का इंतजार सभी को है।
कठघरे में हैं फूड इंस्पेक्टर
चाईबासा में कस्तूरबा विद्यालय की 243 छात्राएं फूड प्वाइजनिंग से बीमार पड़ गईं। इससे पूर्व घाटशिला सहित अन्य स्कूलों में भी इस तरह की घटनाएं हो चुकी हैं लेकिन इसकी गहराई में शायद ही कोई जाता है। जिस भोजन को खाने के बाद छात्राओं की तबीयत बिगड़ी उसकी क्वालिटी की जांच कभी नहीं हुई। जबकि स्कूल, अस्पताल, कैंटीन सहित अन्य स्थानों पर बनने वाले भोजन की जांच करने की जिम्मेवारी जिले के फूड इंस्पेक्टर की होती है। लेकिन, उनके द्वारा जांच नहीं की जाती। अब कोल्हान के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल एमजीएम को ही लीजिए। यहां पर आहार विभाग का किचन बिना लाइसेंस के ही चल रहा है। उसकी साफ-सफाई व मरीजों को दिए जाने वाले भोजन की क्वालिटी की तो बात ही छोड़ दीजिए। जबकि फूड इंस्पेक्टर को नियमित रूप से इसकी जांच करनी है। यह उनका दायित्व है। हमारा सिस्टम कितना सक्रिय है, अंदाजा लगाया जा सकता है।