आनंद ही आनंद... बनना चाहते थे एथलीट, बन गए बिसात के बाजीगर
विश्वनाथन आनंद का शुरुआत में झुकाव एथलेटिक्स की ओर हुआ। उसके बाद टेनिस पसंद आया। एक दिन शतरंज खेलने के बाद टूर्नामेंट में भाग लिया तो बिसात को ही जिंदगी बना ली।
जमशेदपुर, जितेंद्र सिंह। Vishwanathan Anand wanted to become an athlete आनंद ही आनंद... जेआरडी टाटा स्पोर्ट्स कांप्लेक्स स्थित चेस सेंटर में जब पांच बार के विश्व चैंपियन विश्वनाथन आनंद को बच्चे अपने सामने देखे तो सहसा उन्हें विश्वास नहीं हुआ। आनंद अपनी पुस्तक 'माइंड मास्टर' का विमोचन करने जमशेदपुर पहुंचे थे।
जेआरडी में बच्चों ने उनसे खुलकर बात की। 32 साल के बाद जमशेदपुर पहुंच आनंद ने अपने अनुभवों को साझा किया। उन्होंने बताया कि कभी वे एक बक्से में शतरंज की किताब लेकर टूर्नामेंट खेलने विदेश जाया करते थे। लेकिन आज डिजिटल युग में सबकुछ एक मोबाइल में कैद है। उन्होंने बच्चों को कहा कि किसी भी खेल में प्रतिद्वंद्वी का हमेशा आदर करना चाहिए। इस दौरान कई बच्चों ने बिसात के बाजीगर के साथ हाथ भी आजमाए। उन्होंने बच्चों को शतरंज की बारीकियों के बारे में बताया।
एथलीट बनना चाहते थे आनंद, बन गए बिसात के बाजीगर
आमतौर पर शतरंज को फिजिकल गेम नहीं माना जाता, लेकिन बिसात के बादशाह ग्रैंड मास्टर विश्वनाथन आनंद की माने तो अन्य खेलों की तरह शतरंज के खिलाडिय़ों को भी फिट रहना पड़ता है। जेआरडी टाटा स्पोट्र्स कांप्लेक्स में बच्चों के बीच पहुंचे विश्वनाथन आनंद 2007 से लेकर 2013 तक विश्व चैंपियन रहे। उन्होंने कहा कि शतरंज खेलने के लिए बहुत कुछ विशेष रूप से करना पड़ता है। उन्होंने कहा कि खासतौर से टूर्नामेंट के दौरान खाने पर ध्यान रखने की सलाह दी। आनंद ने जेआरडी टाटा स्पोट्र्स कांप्लेक्स में 200 से अधिक बच्चों के साथ अपने अनुभवों को साझा किया। जेआरडी में आनंद की एक झलक पाने को बच्चों में जबरदस्त उत्साह था। ऑटोग्राफ लेने वालों की भीड़ लग गई।
पहले एथलीट बनना चाहते थे आनंद
बच्चों से बातचीत करते हुए आनंद ने बताया कि शुरुआत में उनका झुकाव सबसे पहले एथलेटिक्स की ओर हुआ। उसके बाद टेनिस पसंद आया। एक दिन शतरंज खेलने के बाद टूर्नामेंट में भाग लिया तो बिसात को ही अपनी जिंदगी बना लिया। उन्होंने कहा कि उन्हें अपने घर से काफी सपोर्ट मिला।
प्रतिद्वंद्वी खिलाड़ी का भी करें आदर
उन्होंने बच्चों को बताया कि अगर आप कोई टूर्नामेंट खेल रहे हैं तो प्रतिद्वंद्वी खिलाड़ी का भी आदर करना चाहिए। अगर उनसे कुछ सीखने को मिले तो ग्राह्य करना चाहिए। कोई भी खेल नियमों में सीमित होती है। उस लक्ष्मण रेखा को पार नहीं करना चाहिए। हमेशा रिलेक्स रहना चाहिए। ध्यान केंद्रित करने के लिए योगा कीजिए।
जेआरडी की सुविधाओं की प्रशंसा की
32 साल के बाद जमशेदपुर पहुंचे विश्वनाथन आनंद ने जेआरडी टाटा स्पोट्र्स कांप्लेक्स में मौजूद सुविधाओं की प्रशंसा की। उन्होंने कहा कि यह जमशेदपुर के लिए गर्व की बात है कि यहां इतनी अच्छी खेल सुविधाएं हैं।
बेल्डीह में किया माइंड मास्टर पुस्तक का विमोचन
बेल्डीह क्लब में खचाखच भरे हॉल में भारत के पहले ग्रैंडमास्टर विश्वनाथन आनंद ने अपने जीवन की दुर्लभ और दिलचस्प बातों के साथ दर्शकों से रुबरू हुए। अपनी पुस्तक 'माइंड मास्टर' का विमोचन करते हुए आनंद ने कहा, पुस्तक बायोग्राफिकल है और थोड़े अलग फॉर्मेट में है। मेरे कॅरियर की शुरुआत की घटनाओं से मेरी यात्रा में उन सब बातों को कवर किया जो मुझे सबसे महत्वपूर्ण लगे। इसमें उन टूर्नामेंटों को भी शामिल किया गया है, जो मेरे लिए सीखने के महान अनुभव रहे हैं।
फिलीपींस में शतरंज को गंभीरता से लिया
इस मौके पर आनंद ने बेल्डीह क्लब में समारोह को संबोधित करते हुए कहा कि पिता के साथ पहली बार फिलीपींस गए और वहीं पर शतरंज को गंभीरता से सीखा। मालूम हो कि दुनिया के पहले ग्रैंडमास्टर फिलीपींस के ही रहने वाले थे। यही कारण है कि फिलीपींस का शतरंज के क्षेत्र में बड़ा नाम था। हालांकि पहली बार शतरंज की शिक्षा आनंद को अपने मां से मिली थी।
कभी बक्से में शतरंज की किताबें भर टूर्नामेंट खेलने जाते थे
उन्होंने किताब में एक रोचक घटना का भी जिक्र किया है कि किस तरह से यूरोप में रहते हुए पांच दिनों की यात्रा के बाद हंगरी एक टूर्नामेंट में हिस्सा लेने पहुंचे थे। इस दौरान इंग्लैंड से, डेनमार्क, जर्मनी सहित कई और देश ट्रेन और प्राइवेट वैन पकड़कर पहुंचे थे। उन्होंने कहा कि उस जमाने में शतरंज की किताबों के लिए अलग से बक्सा भर भर कर जाना पड़ता था। लेकिन आज कम्प्यूटर युग में आसान हो गया है। छह सौ रुपए मूल्य की पुस्तक को लोगों ने खरीददारी की।
फिलहाल भारत में कुल 65 ग्रैंड मास्टर
भारत में आज 65 ग्रैंडमास्टर्स हैं, लेकिन 23 साल पहले ऐसा नहीं था जब आनंद दिसंबर 1987 में भारत के पहले ग्रैंडमास्टर बने थे। तब से पांच बार के विश्व चैंपियन खेल के एक प्रेरणादायक राजदूत रहे हैं।