यूजीसी के फरमान के विरोध में विश्वविद़यालय शिक्षकों ने किया ऑनलाइन प्रोटेस्ट Jamshedpur News
शिक्षकों का मानना है कि वर्तमान समय में कोविड के अत्याधिक संक्रमण को देखते हुए यूजीसी का निर्णय अव्यावहारिक एवं अवैज्ञानिक है।
जमशेदपुर (जागरण संवाददाता)। अखिल भारतीय विश्वविद्यालय एवं महाविद्यालय शिक्षक संघ (एआईफुक्टो) के आह्वान पर झारखंड के तमाम विश्वविद्यालय के शिक्षकों ने बुधवार को ऑनलाइन विरोध प्रदर्शित किया। विरोध प्रदर्शित करनेवाले वाले शिक्षक अपने अपने घरों में तख्तियां ले यूजीसी द्वारा सितंबर में फाइनल सेमेस्टर की परीक्षा आयोजित करने का विरोध कर रहे थे।
एआईफुक्टो के राष्ट्रीय सचिव डॉ विजय कुमार पीयूष ने कहा कि यूजीसी के द्वारा विगत छह जुलाई को निर्गत पत्र में विश्वविद्यालयों एवं महाविद्यालयों में स्नातक व स्नातकोत्तर एवं विभिन्न पाठ्यक्रमों के अंतिम सत्र के परीक्षार्थियों को सितंबर में परीक्षा देना अनिवार्य किया गया है। इसके विरोध में देशभर में सभी विश्वविद्यालयों, महाविद्यालयों एवं शिक्षण संस्थानों के शिक्षक बुधवार को ऑनलाइन विरोध प्रकट किया। इससे संबंधित स्मार पत्र संबंधित कुलपति, कुलाधिपति एवं यूजीसी को प्रेषित किया गया।
शिक्षकों का मानना है कि वर्तमान समय में कोविड के अत्याधिक संक्रमण को देखते हुए यूजीसी का निर्णय अव्यावहारिक एवं अवैज्ञानिक है। कोल्हान विश्वविद्यालय के शिक्षकों ने की अपने अपने घरों में यूजीसी के निर्णय के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया है तथा इससे संबंधित ज्ञापन विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर गंगाधर पंडा को ईमेल के माध्यम से भेजा है। ज्ञापन में कोल्हान विश्वविद्यालय शिक्षक संघ के महासचिव राजेंद्र भारती की ओर से बताया गया है कि छात्रों के अनुपात में संस्थानों में आधारभूत संरचना की कमी है। विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों के महाविद्यालय बहुत से संम्बदध् एवं निजी महाविद्यालयों के पास भवन एवं बेंच तथा डेस्को की नितांत कमी है। इस कारण शारीरिक दूरी बनाकर परीक्षा आयोजित करना संभव नहीं है।
साथ ही यह भी स्मरण रखना चाहिए कि सभी छात्रों के पास स्मार्टफोन नहीं है तथा दूरस्थ इलाकों में और बारिश के मौसम में टावर संबंधी या नेट ना मिलने की बाधाएं आती रहती हैं। यह भी ध्यातव्य है कि जब तक छात्रों को पृथक् पृथक कंप्यूटर पर बैठा कर परीक्षा ना लिया जाए परीक्षा में कदाचार की आशंका एवं संभावना बनी रहेगी क्योंकि स्मार्टफोन के माध्यम से होने वाली परीक्षा में कोई भी छात्र दूसरे किसी अन्य स्रोत से जानकारी प्राप्त कर परीक्षा में लिख सकता है ।इसके अतिरिक्त विभिन्न विश्वविद्यालयों महाविद्यालयों में दूरस्थ नगरों एवं ग्रामीण क्षेत्रों के छात्र आकर पढ़ाई करते हैं तथा छात्रावासों में या किराए पर आवास लेकर रहते हैं। महाविद्यालय तथा छात्रावास बंद है इसलिए वे सभी अपने अपने गांव घर चले गए हैं।
अभी उन सबको अपने-अपने घरों सेअपने-अपने महाविद्यालय ,विश्वविद्यालय केंद्रों पर जाकर परीक्षा देने में परिवहन ,यात्रा एवं आवासन संबंधी बहुत दिक्कतें आएंगी। निजी आवास के मालिक तथा निजी लॉज वाले उन्हें रहने की इजाजत नहीं देंगे। इसके अतिरिक्त हॉस्टलों में ,लॉज में, किराए के आवासों में क्षमता से अधिक छात्रों का रहना होता है जहां शारीरिक दूरी का पालन संभव नहीं है। इन स्थितियों को देखते हुए यूजीसी का यह निर्णय की --'सभी संस्थान अंतिम वर्ष के छात्रों का अनिवार्य रूप से सितंबर में परीक्षा ले लें' अव्यवहारिक, अवैज्ञानिक तथा कोविड-19 को कम्युनिटी ट्रांसफर में बदलने में सहायक सिद्ध होगा और न सिर्फ छात्र ,शिक्षक ,कर्मचारी बल्कि उनके परिवार के लोगों पर भी संक्रमण का खतरा मंडराने लगेगा ।शिक्षकों की यह अपील है कि यूजीसी अपने इस अधिसूचना को वापस ले और छात्रों को डिग्री देने का कोई अन्य वैकल्पिक तरीका अपनाने की पहल करें।
पूर्णत: सफल रहा 'ऑल इंडिया प्रोटेस्ट डे' : डॉ पीयूष
एआईफुक्टो के राष्ट्रीय सचिव डॉ विजय कुमार पीयूष ने राष्ट्रीय स्तर पर 'आयोजित ऑल इंडिया प्रोटेस्ट डे' को पूर्णता सफल बताया ।उन्होंने बताया कि देश के प्राया सभी विश्वविद्यालयों एवं महाविद्यालयों के शिक्षकों ने इसमें भागीदारी निभाई । व्यक्तिगत स्तर पर वह न सिर्फ घर में धरने पर बैठे, बल्कि जहां संभव हुआ सोशल डिस्टेंस का पालन करते हुए महाविद्यालय कार्यालय या गेट के समक्ष उन्होंने विरोध का कार्यक्रम किया। डॉ पीयूष ने यह भी बताया के शिक्षक संघ के अतिरिक्त विभिन्न छात्र संगठनों, अभिभावक संगठनों तथा अन्य शैक्षणिक क्षेत्र के संगठनों ने भी इस कार्यक्रम का समर्थन किया एवं विरोध में भागीदारी निभाई । डॉ पीयूष ने यह भी सूचना दी है की रांची में डॉ राजकुमार, डॉ हरिओम पांडे, डॉक्टर एलके कुंदन, डॉक्टर संजीव लोचन, सिद्धू कानू विश्वविद्यालय में डॉक्टर नवीन कुमार सिंह, डॉ कौशलेंद्र कुमार, विश्वविद्यालय में डॉक्टर डॉक्टर राजेंद्र कुमार भारती के अलावे प्राय: सभी विश्वविद्यालयों में शिक्षकों ने इसका विरोध किया डॉ पीयूष ने यूजीसी से मांग की है कि वह अवलिंब अपने 6 जुलाई के आदेश को वापस ले। यह छात्रों , शिक्षकों, शैक्षणिक संस्थानों के कर्मियों से जुड़ा हुआ ही मसला नहीं बल्कि हिंदुस्तान के प्रायः उच्च शिक्षा में पढ़ने वाले करोड़ों छात्रों के जीवन से जुड़ा हुआ मसला है।