टीएसएएफ ने ट्रिपल पास चैलेंज को सफलतापूर्वक किया पूरा Jamshedpur News
टाटा स्टील एडवेंचर फाउंडेशन (टीएसएएफ) ने ट्रिपल पास चैलेंज सफलतापूर्वक पूरा किया है। भारत के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है। यह अभियान 09 अक्टूबर 2020 से शुरू हुआ था। यह अभियान तीन चोटियों और तीन सप्ताह तक चला। आम तौर पर ट्रेकर्स सिंगल पास पूरा करते हैं...
जमशेदपुर (जासं) । टाटा स्टील एडवेंचर फाउंडेशन (टीएसएएफ) ने ट्रिपल पास चैलेंज सफलतापूर्वक पूरा किया है। भारत के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है। यह अभियान 09 अक्टूबर 2020 से शुरू हुआ था। यह अभियान तीन चोटियों और तीन सप्ताह तक चला। आम तौर पर, ट्रेकर्स सिंगल पास पूरा करते हैं, लेकिन एक ही बार में तीन सबसे ऊंचे मार्गों के लिए अभियान का आयोजन पहली बार किया गया। टीएसएएफ की टीम के अलावा कुल 11 प्रतिभागी इस अभियान का हिस्सा थे। इस टीम ने दरवा पास (13,500 फीट), बाली पास (16,200 फीट), बोरसु पास (17,300 फीट) को सफलतापूर्वक पार किया।
यह अभियान उत्तराखंड से शुरू हुआ और हिमाचल प्रदेश में समाप्त हुआ। अभियान जब अक्टूबर में शुरू हुआ तो माह के मध्य तक ऊंचाई वाले क्षेत्रें में हिमपात शुरू हो जाता है। टीम के सदस्यों ने ट्रेकिंग के दौरान न्यूनतम –12 डिग्री सेल्सियस तक के तापमान का सामना किया। इस दौरान टीम ने चट्टानें, खुले खंड, नदी, नाले, ग्लेशियर और दर्रो को भी पास किया। पूरी ट्रैकिंग के दौरान टीम खुद पर निर्भर थी। उनकी मदद के लिए टीएसएएफ टीम से 4 पर्वतारोही शामिल थे। इनमें बछेंद्री पाल, हेमंत गुप्ता, आरएस पाल और पूनम सहित अनुभवी इंस्ट्रक्टर्स के रूप में मोहन रावत, धर्मेंद्र और रणदेव साथ थे।
जाने कैसी थी अभियान से जुड़े सदस्यों की चढ़ाई
दरवा पास– उत्तरकाशी में संगमचट्टी से अभियान शुरू हुआ। पाइन और रोडोडेंड्रोन के घने जंगल के बीच से होकर गुजरता है। डोडीताल रास्ते में रहस्यमयी झील। (14 अक्टूबर) दरवा पास को पार करने के बाद ‘सीमा’ तक ट्रेक हरा भरा मैदान है। हनुमान चट्टी तक सीधी खड़ी चढ़ाई।
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(17 अक्टूबर – 22 अक्टूबर) बाली पास या दर्रा – दरवा पास को पार करने के बाद टीम खुश थी, लेकिन थकी हुई थी और आराम करने का समय नहीं था। तैयारी शुरू और अगले चुनौतीपूर्ण बाली पास पर चढ़ने के लिए तैयारी शुरु। बाली पास के लिए ट्रेक जानकी चट्टी से शुरू होता है । यह रास्ता यमुनोत्री (प्रसिद्ध तीर्थस्थल) की ओर भी जाता है। जानकी चट्टी से लोअर दामानी के लिए खड़ी चढ़ाई। अगले दिन रास्ते में कुछ खुले खंड के साथ बाली पास बेस (14,400 फीट) के लिए ट्रेक वास्तव में चुनौतीपूर्ण था।
टीएसएएफ टीम ने प्रत्येक सदस्य को सफलतापूर्वक सेक्शन पार करने में मदद की। बाली पास को पार करने के लिए टीम उत्साह के साथ अगले दिन जल्दी उठ गई। हिमोढ़ और खड़ी चट्टानी खंडों को पार करने के बाद टीम 20 अक्टूबर को सुबह 11:30 बजे के करीब बाली पास पहुंची। दूसरे पास तक पहुंचने पर हर कोई बहुत खुश था। बाली पास से उतरते समय, टीम ने ग्लेशियर और ओडारी (14,000 फीट) तक एकदम खुले रिज को पार किया। अगली सुबह ओडारी अभियान की सबसे ठंडी रात थी। ‘सीमा’ के रास्ते में टीम ने रुइंसियारा ताल का दौरा किया।
(23 अक्टूबर –28) अक्टूबर) बोरसु पास – दो पास पार किया गया। ओसला के पास टीम का विश्राम दिवस था। लेकिन अभियान अभी खत्म नहीं हुआ था। टीम को पता नहीं था कि अंतिम पास ‘बोरसु पास’ के रूप में अभी सबसे बड़ी चुनौती आने वाली है, जो शायद ही किसी ने कभी पार किया हो। इसके बारे में पहले से बहुत कम जानकारी उपलब्ध है। रास्ते का पहला पड़ाव था ‘हर की दुन’– शिव की घाटी। अगले दिन नदी के किनारे धीरे–धीरे आगे बढ़ा गया और टीम ने नदी के पास डेरा डाला। बोरसु पास का बेस 14,000 फीट पर था।
आखिरकार सबसे मुश्किल दिन आ गया। सुबह 6 बजे नाश्ता करने के बाद, टीम ने बोरसु पास को पार करने के लिए अभियान शुरू किया। रास्ते में खुले चट्टानी रिज और इसके बाद क्रेवास मैदान थे। क्रेवास क्षेत्र को नेविगेट करने में समय लगता था। धीरे–धीरे लक्ष्य के करीब पहुंचते हुए, आखिरी बाधा बर्ग्सच्रुंड और पास की ओर अंतिम फिसलन भरी चढ़ाई थी। अंत में, दोपहर लगभग 2:30 बजे, 27 अक्टूबर को टीम बोरसु पास पर थी। सभी भावा-विभोर थे। यह सभी के लिए भावुक पल था। आपस में गले मिलने, मिठाइयाँ खाने–खिलाने तथा फोटो खींचने के बाद टीम ने शानदार डाउनहिल यात्र की शुरुआत की। लेकिन मुभिकलें अभी खत्म नहीं हुई थी।
12 घंटे की थकावट भरे दिन के बाद टीम को हिमोढ़ यानी मोराइन की चट्टानों पर हड्डियों को जमा देने वाली ठंडी रात बितानी पड़ी। अंतिम दिन नीचे की यात्रा, विशेषकर अंतहीन मोराइन क्षेत्र को पार करना भी मुश्किल भरा साबित हुआ। सूरज ढलने के बाद भी टीम चल रही थी। अंत में, उन्होंने चितकुल के पास एक परित्यक्त आईटीबीपी शिविर में डेरा डाला। अगले दिन सब कुछ पैक करने के बाद टीम गंतव्य स्थल – चितकुल पहुँची।
इस उपलब्धि को हासिल करने के बाद टीम बहुत खुश थी, जैसे वो चाँद पर हों। लगभग तीन सप्ताह वे घर की आरामदेह विलासिता से दूर रहे। अंत में, उन्हें मोबाइल नेटवर्क भी मिल गया और उन्होंने अपनी तस्वीरों को अपलोड करना शुरू किया तथा परिवार व दोस्तों के साथ अभियान की मीठी यादें साझा किया।