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Samvad : 151 नगाड़ों की थाप संग जनजातीय सम्मेलन का आगाज, 13 देश और 23 राज्‍यों की भागीदारी

झारखंड के जमशेदपुर में 151 नगाड़ों की थाप के साथ जनजातीय सम्मेलन संवाद शुरू हुआ। पांच दिवसीय इस जनजातीय सम्मेलन में 13 देश व 23 राज्यों के 2000 से ज्यादा कलाकार हैं।

By Rakesh RanjanEdited By: Published: Sat, 16 Nov 2019 09:25 AM (IST)Updated: Sat, 16 Nov 2019 09:25 AM (IST)
Samvad : 151 नगाड़ों की थाप संग जनजातीय सम्मेलन का आगाज, 13 देश और 23 राज्‍यों की भागीदारी
Samvad : 151 नगाड़ों की थाप संग जनजातीय सम्मेलन का आगाज, 13 देश और 23 राज्‍यों की भागीदारी

जमशेदपुर, जासं। भगवान बिरसा मुंडा की धरती आबा की संस्कृति को नमन करते हुए टाटा स्टील की ओर से बिष्टुपुर स्थित गोपाल मैदान में पांच दिवसीय जनजातीय सम्मेलन संवाद का छठवां संस्करण शुरू हुआ। यहां झारखंड के विभिन्न जिलों से आए 151 कलाकारों ने मांदर, ढोल व नगाड़ों की थाप पर सम्मेलन का शुभारंभ किया।

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एक साथ जब 151 नगाड़ों की थाप, भेर (एक तरह का वाद्य यंत्र), ढोल की धुन शुरू हुई तो पूरा गोपाल मैदान गूंज उठा। थाप पर मेहमान झूमने से नहीं रोक पाए। इस दौरान टाटा स्टील के सीईओ सह एमडी टीवी नरेंद्रन की पत्नी रूचि नरेंद्रन, टाटा स्टील के वाइस प्रेसिडेंट अवनीश गुप्ता, सुरेश दत्त त्रिपाठी, जुस्को एमडी तरूण डागा सहित सभी ने तीन ताल की थाप पर कदमताल भी किया। इसके बाद कलर्स ऑफ ट्राइब्स के 30 कलाकारों व चाईबासा से आए हो जनजाति के लोगों ने अपना नृत्य प्रस्तुत कर सभी को झूमाया।

आदिवासी परंपरा के साथ शुरू हुआ आगाज

आदिवासियत आज थीम पर आयोजित इस वर्ष समारोह की शुरूआत भी आदिवासी परंपराओं के अनुसार हुआ। सबसे पहले अतिथियों ने भगवान बिरसा की प्रतिमा पर फूल चढ़ाकर उन्हें नमन किया। इसके बाद सोनवा से आए बिरसयात धर्म (भगवान बिरसा के अनुयायी) की अनुयायियों ने भगवान बिरसा की वंदना की। उनसे कामना की, कि यह जल, जंगल, पहाड़ सभी आपने ही दिया है इसकी रक्षा करने और इसे बनाए रखने में हमारी मदद करें। इसके बाद देश भर के आए अतिथियों को साफा और मिट्टी की हांड़ी में जवा (खुशहाली का प्रतीक) भेट कर उन्हें सम्मानित किया। सभी ने एक साथ पत्तों से बने ढक्कन को जवा के ऊपर से उठाकर संवाद का विविधत शुभारंभ किया।

आदिवासी रंग में रंगा गोपाल मैदान

जनजातीय सम्मेलन संवाद को पूरी तरह से आदिवासी रंग में रंगा गया है। यहां बैठने के लिए मचान, पत्तों से बने झोपड़ी, खेती करते किसान, रस्सी से पुल पार करते छवि आदिवासी जीवन के विभिन्न पहलुओं का दर्शन कराते हैं। इसके अलावे यहां सूत काटने की पारंपरिक औजार भी लोगों को लुभा रहा है। इसके अलावे सभी स्टॉलों को भी बोरे के रंग में रंगा गया है।

इन अतिथियों को किया गया सम्मानित

कैमरून से डॉ. नगु एडवर्ड फाई फोमियान, ब्राजील से डेनियल, आस्ट्रेलिया से जॉन हिक्की, शेड रिपब्लिक से नी केसिस गारबा, राजस्थान से सबसे कम उम्र की सरपंच नवेली, केरला की सबसे युवा सरपंच गिरिजा सीसी, छत्तीसगढ़ से युवा सरपंच रितू पेड्राराम, लद्दाख से तेसवांग नुरबो, मेक्सिको से मार्था मोरालेस गोनजेला।

मंच का टूटा लाइट फ्रेम

जनजातीय सम्मेलन संवाद के लिए विशेष रूप से आदिवासी समुदाय की तर्ज पर अखड़ा (गोलाकार मंच) तैयार किया गया था। इसके चारो ओर रंग-बिरंगे रोशनी के लिए लोहे का फ्रेम लगाया गया था। ऊंचाई पर लगे बीम लाइट कलाकारों पर फोकस करते। लेकिन उद्घाटन से मात्र 45 मिनट पहले एक छोर का लोहे का फ्रेम का जोड़ बीच से टूट गया। इसके बाद गोलाकार मंच पर कार्यक्रम को स्थगित कर उसे बीच मैदान में करना पड़ा। इसके बाद कार्यक्रम शाम सवा छह बजे के बजाए 45 मिनट देर से सात बजे के लगभग शुरू हो पाया।

हर समुदाय अपने अलग पहनावे में दिखा

जनजातीय सम्मेलन में लेह लद्दाख से लेकर केरल, तमिलनाडु, असम, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, राजस्थान, गुजरात से जनजातीय कलाकार आए थे। शुभारंभ के दौरान हर समुदाय के सदस्य अपने पारंपरिक परिधान में दिखे। इस दौरान झारखंड के हो, मुंडारी, मुंडा, संथाल, बिरसायत समुदाय के लोग अपने पारंपरिक वेश-भूषा में लोगों को आकर्षित किया।

हस्तशिल्प व कलाकृतियों को देखने उमड़ी भीड़

गोपाल मैदान में महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, लद्दाख, महाराष्ट्र, केरल, बिहार सहित अन्य राज्यों के कलाकारों द्वारा हस्तशिल्प, ड़्रेस मटेरियल्स के स्टॉल लगाए गए हैं। इसे देखने के लिए काफी भीड़ उमड़ी और बड़ी संख्या में शहरवासियों ने खरीदारी भी की।

आदिवासी व्यंजन की भी रही धूम

गोपाल मैदान में कई तरह के आदिवासी व्यंजन भी परोसे जा रहे हैं। यहां चावल से बने अरसा, पेठा सहित कई तरह के व्यंजन लोगों को खूब लुभा रहे हैं।

क्या कहते हैं विभिन्न समुदायों से आए अतिथि

जनजातीय संवाद में पहली बार आया हूं। छत्तीसगढ़ में भी ऐसे आयोजन होते हैं लेकिन इतने वृहद रूप में नहीं। सच में अलग-अलग राज्यों के आदिम जनजातियों को देखना अच्छा लगता है।

-संतोष यादव, छत्तीसगढ़

जनजातीय सम्मेलन में दूसरी बार आया हूं। देश में कहीं भी ऐसा कार्यक्रम नहीं होता। टाटा स्टील को बधाई जो हम सभी को एकसूत्र में जोड़ रहा है।

-जिला डोंगसना, ओडिसा

जमशेदपुर में जनजातीय सम्मेलन में शामिल होने के लिए पहली बार आया हूं। अदभुत समारोह है। गुजरात में भी ऐसे आयोजन होते हैं लेकिन इतने बड़े पैमाने पर नहीं।

-विनेष रूप सिंह बारिहा, गुजरात

देश की आदिवासी संस्कृति को बचाने के लिए इस तरह के आयोजन बेहद जरूरी है। इससे अलग-अलग राज्यों से आदिवासी समुदायों का एक-दूसरे से जुड़ाव होता है।

-किशोर चंद्र, त्रिपुरा

राजस्थान में ऐसे कार्यक्रम होते हैं लेकिन उसमें केवल चार या पांच राज्य के लोग ही शामिल होते हैं। इतने वृहद पैमाने में पहली बार यहां आकर देखने को मिला है।

-हेम सिंह, राजस्थान

टाटा स्टील की ओर से यह बहुत अच्छा समारोह है। इससे हर आदिवासी एक दूसरे से अपनी कला, संस्कृति सहित जड़ी बूटी से आपस में साझा कर सकते हैं।

कांचोक थिसलेम, लद्दाख

मैं पिछले चार वर्षो से जनजातीय सम्मेलन में आ रहा है। यह अदभुत समारोह है जहां हम वैद्यों को भी अलग-अलग राज्यों की जड़ी बूटियों के बारे में पता चलता है।

-वैद्य शुक्ला प्रसाद धुर्वे, छत्तीसगढ़ 


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