भगवान विष्णु की आराधना ने राजिम को बना दी माता, ये रही पूरी कहानी Jamshedpur News
Spiritual. छत्तीसगढ़ राज्य के गरियाबंद जिले में एक नगर पंचायत है राजिम। महानदी के तट पर स्थित यह राज्य का प्रसिद्ध तीर्थ स्थल है जिसे छत्तीसगढ़ का प्रयाग भी कहा जाता है।
जमशेदपुर,निर्मल। झारखंड के जमशेदपुर में प्रतिवर्ष राजिम मेला का आयोजन होता है। शहर के सिदगोड़ा टाउन हाल मैदान में रविवार को राजिम मेला लगेगा। इसमें छत्तीसगढ़ के लोग बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं। छत्तीसगढ़ तेली साहू समाज के सदस्यों द्वारा राजिम मेला के आयोजन की कहानी काफी रोचक है।
छत्तीसगढ़ राज्य के गरियाबंद जिले में एक नगर पंचायत है राजिम। महानदी के तट पर स्थित यह राज्य का प्रसिद्ध तीर्थ स्थल है, जिसे छत्तीसगढ़ का प्रयाग भी कहा जाता है। यहां प्रतिवर्ष माघ पूर्णिमा से लेकर शिवरात्रि तक महानदी, पैरी नदी और सोढुर नदी के संगम पर मेला लगता है। इसे क्षेत्र को छत्तीसगढ़ की त्रिवेणी या प्रयाग भी कहा जाता है। राजिम की इस तीर्थ स्थल पर राजिम मेला भी लगता है लेकिन राजिम कैसे भगवान विष्णु की अराधना कर राजिम माता बनी, इसकी एक पौराणिक कथा है।
...और तेल से भर गया खाली पात्र
प्राचीन समय में महानदी के तट पर पार्वती पुरी (राजिम का पौराणिक नाम) में राजिम नाम की एक गरीब लेकिन धार्मिक व कर्मठ स्वभाव वाली तेलीन रहती थी। जो घानी द्वारा तेल निकालकर गांव-गांव घूमकर अपने परिवार का पेट पालती थी। एक दिन राजिम जब तेल बेचने निकली तो उसका पैर एक पत्थर से टकराया। इससे सिर में रखा पूरा तेल गिर गया। यह देखकर राजिम रोने लगी कि तेल गिरने से आज वह अपने परिवार का पेट कैसे भरेगी। माता राजिम इस चिंता से भगवान से अराधना करते हुए कहती है कि अब वह घर पर क्या जवाब देगी। लेकिन जैसे ही उसने खाली पात्र देखा, वह तेल से भरा मिला।
निकला भगवान विष्णु का विग्रह
विराजिम घर पहुंचकर इसकी सूचना अपने परिवार को दी। परिवारवालों को जब विश्वास नहीं हुआ तो वे फिर से उस स्थान पर पहुंचे। राजिम ने एक बार फिर खाली पात्र उस पत्थर के शिला पर रख दिया। कुछ देर बाद पात्र फिर से तेल से भरा मिला। राजिम ने उस चमत्कारी पत्थर को खोदकर घर ले जाने की सोची। जब खुदाई पूरी हुई तो छोटी सी चमत्कारी पत्थर भगवान विष्णु का चतुर्भुजी विग्रह अवतार के रूप में बाहर निकली। राजिम मूर्ति को घर लेकर उसकी खूब सेवा की।
राजा के समक्ष रखी ये शर्त
तब उस समय छत्तीसगढ़ के राजा जगतपाल को इसकी जानकारी मिली तो उन्होंने स्वर्ण मुद्राएं लेकर मूर्ति उन्हें देने की मांग की ताकि उसे मंदिर में स्थापित कर सके। तब राजिम ने राजा से मांग की, कि उन्हें स्वर्ण मुद्राएं नहीं चाहिए। वह चाहती है कि मेरे आराध्य का नाम मेरे नाम से जुड़ जाए। राजा खुशी-खुशी इसके लिए तैयार हुए और नगर का नाम राजिम के नाम से विख्यात हुआ। यहां राजिम लोचन मंदिर स्थापित हुआ। मंदिर में स्थापित प्रतिमा को देखते हुए माता राजिम ने समाधि ले ली।