Tata Steel : टाटा स्टील को छह महीने में 12,548 करोड़ का मुनाफा, तीसरी तिमाही में भी होगी छप्पर फाड़ कमाई
Tata Steel कोरोना संक्रमण सुस्त पड़ने के साथ ही टाटा स्टील कुलांचे भरने लगा है। पिछले छह महीने में कंपनी ने 12 548 करोड़ का शुद्ध मुनाफा दर्ज किया है। टाटा स्टील के एमडी टीवी नरेंद्रन की माने तो तीसरी तिमाही में भी बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद है...
जमशेदपुर : टाटा स्टील ने बीते दिनों ही वित्तीय वर्ष 2021-22 की दूसरी तिमाही के वित्तीय आंकड़े जारी किए। जिसमें कंपनी को दो तिमाही में समेकित रूप से 12,548 करोड़ रुपये का शुद्ध मुनाफा हुआ है। टाटा स्टील के सीईओ सह एमडी टीवी नरेंद्रन ने इस दौरान टेली कांफ्रेंस के माध्यम से पत्रकारों से बातचीत कर कंपनी के प्रदर्शन की जानकारी दी।
बकौल टीवी नरेंद्रन, दूसरी तिामही में मानसून के कारण बाजार में मांग थोड़ी कमजोर रही। साथ ही सेमी कंडक्टर की कमी के कारण ऑटो सेक्टर में भी थोड़ी नरमी रही। इसके बावजूद हमने बेहतर प्रदर्शन करते हुए ऑपरेशन और डिलीवरी में जबदस्त प्रदर्शन किया है। टीवी नरेंद्रन ने उम्मीद जताई है कि दूसरी तिमाही की तुलना में कंपनी के लिए तीसरी तिमाही शानदार होगी।
दिख रही है मजबूत मांग
टाटा स्टील के सीईओ सह एमडी टीवी नरेंद्रन का कहना है कि भारतीय ऑप्रेशन में जबदस्त डिमांड दिख रही है। जिसके तहत प्रति टन 2500 रुपये का सुधार होने का अनुमान है। इसके अलावा यूरोप में भी 30 से 40 टन प्रति यूरो का सुधार होने की उम्मीद है। टीवी नरेंद्रन का कहना है कि कोविड 19 के लिए केंद्र सरकार बहुत अच्छा काम कर रही है।
100 करोड़ की आबादी को कोविड का वैक्सीन लग चुका है। ऐसे में भारतीय बाजार में जबदस्त तेजी आई है। हम उम्मीद कर रहे हैं कि मानसून के बाद कंस्ट्रक्शन क्षेत्र में गतिविधि बढ़ेगी। सेमी कंडक्टर की कमी के बावजूद ऑटो सेक्टर में अच्छी रिकवरी हासिल की है। इसलिए मुझे लगता है कि तीसरी तिमाही कई मायनों में हमारे लिए बेहतर होने जा रहा है।
कोल की बढ़ी कीमत से रहा दबाव
टीवी नरेंद्रन का कहना है कि कोल की बढ़ी कीमतों के कारण कुछ दबाव जरूर है जिसका असर हमारे मार्जिन पर पड़ा है क्योंकि इससे हमारा ऑपरेशन कास्ट ज्यादा हो जाता है। हालांकि कुछ लागत कम होने से दबाव जरूर कम हुआ है क्योंकि हम आयरन ओर के बाजार मूल्य के आधार पर रॉयल्टी का भुगतान करते हैं। इसके बावजूद कंपनी का एबिटा काफी बेहतर रहा है।
इंडियन ऑपरेशन में एबिटा प्रति टन है कम
टीवी नरेंद्रन का कहना है कि बाजार में अब भी थोड़ी निराशा है। जब हम भारत के कारोबार के समेकित मार्जिन को देखते हैं तो रॉयल्टी के बहिर्वाह के कारण हमें 1100 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ था। यह हमारे बजट से अधिक था क्योंकि एमएमडीआर का अधिनियम बदल गया है। यहां तक की कानूनी रूप से जो सहायक इकाई, जिनके पास 100 प्रतिशत स्वामित्व है उन्हें भी हमारे बजट से अधिक रॉयल्टी का भुगतान करना पड़ा।
निर्देशित मूल्य 3000 रुपये था जबकि हमें 3500 रुपये की प्राप्ति हुई है। हालांकि भूषण स्टील से प्राप्ति थोड़ी कम है क्योंकि हमारे पास भूषण स्टील से टाटा स्टील कलिंगनगर को अतिरिक्त स्लैब बेचे गए थे।
कम हो जाएगी 70 प्रतिशत समस्या
टीवी नरेंद्रन का मानना है कि आगामी तीसरे व चौथी तिमाही में रॉयल्टी व्यय की समस्या 70 प्रतिशत तक कम हो जाएगी। क्योंकि रॉयल्टी का एक बड़ा हिस्सा टाटा स्टील बीएसएल के कारण है जिसका टाटा स्टील में विलय हो रहा है। शेष 30 प्रतिशत की समस्या टाटा मेटालिक्स के साथ है जो टाटा स्टील और टाटा स्टील लांग प्रोडक्ट्स से आयरन ओर लेती है। अब टाटा स्टील लांग प्रोडक्ट्स के पास अपनी खदानें है। इसके कारण रॉयल्टी में कोई अंतर नहीं आएगा।
स्टील की कीमतें 2500 टन से अधिक होगी
टीवी नरेंद्रन का मानना है कि भारत सहित दुनिया भर के देशों में बुनियादी ढांचे में काफी खर्च हो रहा है। इंफ्रास्ट्रक्चर का खर्च 49 प्रतिशत की दर से बढ़ रहा है। इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट की तुलना भारत से अमेरिका जैसे देशों से हो रही है। यहां तक की यूरोप में भी पिछले साल की तुलना में 14 से 15 प्रतिशत अधिक है। इसलिए मुझे लगता है कि विकसित देश या चीन के अलावा अन्य विकासशील देश का भारत नेतृत्व करने जा रहा है। दूसरे, लागत संरचना भी बदल गई है।
कुकिंग कोल की कीमतें अभी भी स्टील की कीमतों की तुलना में तीन साल पहले की तुलना में अधिक है। इसके अलावा चीन भी अब आक्रामक तरीके से स्टील का निर्यात नहीं कर रहा है, जितना वह पहले करता था। ऐसे में कुल मिलाकर मुझे लगता है कि वैश्विक बाजार में स्टील मार्केट अधिक अनुशासित रहेगा, परेशानियां कम होगी। हालांकि अस्थिरता बनी रहेगी, जैसा इस सेक्टर के मार्केट की प्रकृति है। फिर भी मेरा मानना है कि भारतीय बाजार में स्टील की कीमत 25,00 रुपये प्रति टन से अधिक होगी। यूरोप में यह 30-40 पाउंड प्रति टन से अधिक रहने की उम्मीद है।
ग्रीन स्टील से होगा बदलाव
टीवी नरेंद्रन का कहना है कि यूरोप में पहले से ही कार्बन उत्सर्जन कम है। कार्बन उत्सर्जन पर लगने वाली लागत 10 से 15 पाउंड प्रति टन से बढ़कर 65 पाउंड प्रति पाउंड हो गई है। आगामी दशक में यह 100 पाउंड तक होने की उम्मीद है। इसलिए हम ग्रीन स्टील के निर्माण की ओर कदम बढ़ा रहे हैं नहीं तो उच्च लागत का भुगतान करेंगे। इसलिए हमारा नीदरलैंड प्लांट दुनिया के सबसे अधिक कार्बन कुशल संयंत्र में से एक है। इसलिए हम ग्रीन स्टील तैयार करने के लिए कोकिंग कोल के बजाए हाइड्रोजन या प्राकृतिक गैस को विकल्प के रूप में इस्तेमाल करने की योजना बना रहे हैं।
हाइड्रोजन इंफ्रास्ट्रक्चर का हो रहा निर्माण
इसके लिए पूरी प्रक्रिया का मूल्यांकन किया जा रहा है। इसके लिए हम हाइड्रोजन इंफ्रास्ट्रक्चर का निर्माण कर रहे हैं। जो कोयले की जगह इस्तेमाल में लाया जाएगा। इसके लिए सरकार के पास निर्मित बुनियादी ढ़ांचा है। उचित मूल्य पर गैस और हाइड्रोजन की आपूर्ति होगी। यूके और नीदरलैंड में दोनो सरकार ने ग्रीन फ्यूचर के लिए योजना बना रहे हैं। इसके लिए हम अधिक कीमत चुकाने के लिए भी तैयार हैं। इसमें लागत 100 से 150 डॉलर प्रति टन हो जाएगी।
बढ़ेगी उत्पादन लागत
टीवी नरेंद्रन का मानना है कि यूरोप में जब उत्पादन लागत बढ़ेगी तो इसका असर सरकार और कस्टमर, दोनो पर पड़ेगा। लेकिन टेक्नोलॉजी भी विकसित होगी और समय के साथ 100 से 150 डॉलर की लागत में भी कमी आएगी। वर्ष 2030 के लिए निर्धारित लक्ष्यों के साथ हम इस दिशा में पहल कर रहे हैं।
भारत में होनी चाहिए इस तरह की पहल
टीवी नरेंद्रन का मानना है कि फिलहाल भारत में ऐसी नीति नहीं बन रही है लेकिन इसके लिए सरकार को प्रोत्साहन देना चाहिए। मुझे उम्मीद है कि सरकार ने 2030 के बाद 2070 के लक्ष्यों की घोषणा कर नई नीतियां विकसित कर रही है। लेकिन हमें यह समझना होगा कि हमने यूरोप से क्या सीखा है। हमें अब अपने उद्योग को कार्बन मुक्त बनाना होगा।
टाटा स्टील ने रोहतक में स्थापित की है रीसाइक्लिंग यूनिट
कार्बन फुटप्रिंट को कम करने का एकमात्र उपाय स्क्रैप का अधिक इस्तेमाल करना है। आपके पास हाइड्रोजन नहीं है, आपके पास पर्याप्त गैस नहीं है, इसलिए आपको कोयले का उपयोग करना होगा। यदि आप अपने इस्पात उत्पादन में स्क्रैप का उपयोग करते हैं, तो आपके कार्बन फुटप्रिंट के आंकड़े नीचे जा सकते हैं। इसीलिए टाटा स्टील ने रोहतक में एक री-साइक्लिंग यूनिट स्थापित की है। हम उत्तर-पश्चिम और दक्षिणी भारत में और अधिक रीसाइक्लिंग यूनिट स्थापित करेंगे। जो आने वाले कुछ वर्षों में होने वाले बदलाव के संदर्भ में हमारा सहीं रणनीतिक कदम है।
भारत में हमें यह देखना है कि क्या हमारे पास पूर्वी भारत में गैस उपलब्ध हो सकती है, जहां हमारी अधिकांश सुविधाएं हैं। यदि यह किफायती कीमत पर और सुनिश्चित आपूर्ति के साथ उपलब्ध है, तो हम गैस का उपयोग करके भविष्य की क्षमताओं को विकसित करने पर विचार कर सकते हैं। और अंत में, जब हाइड्रोजन उपलब्ध हो, तो आप गैस को हाइड्रोजन से बदल सकते हैं, लेकिन हम वहां से कई साल दूर हैं। इसलिए, हम उस नीति के साथ तालमेल बिठाते हुए भारत में अपने परिवर्तन का प्रयास करेंगे जो इस परिवर्तन का समर्थन कर सकती है।