Chhath 2019: फिजाओं में छठी मईया के गीत की गूंज, नहाय-खाय के साथ आस्था का महापर्व छठ शुरू
नहाय-खाय के साथ लोक आस्था का महापर्व छठ शुरू हो गया है। फिजाओं में छठी मईया के गीत की गूंज है। आइए जानिए पूजन का विध-विधान और शुभ मुहूर्त।
जमशेदपुर, जासं। नहाय-खाय के साथ लोक आस्था के महापर्व छठ की शुरुआत गुरुवार को हो गई। नहाय-खाय शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को होता है। नहाय-खाय अनुष्ठान में व्रती मन और तन दोनों से ही शुद्ध और सात्विक होते हैं। इस दिन व्रती शुद्ध-सात्विक भोजन करते हैं। कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि से ही देवी छठ माता की पूजा-अर्चना शुरू हो जाती है और सप्तमी तिथि की सुबह तक चलती है।
शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि शुक्रवार को खरना का विधान होगा। व्रती सारा दिन निराहार रहती हैं और शाम के समय गुड़ वाली खीर का विशेष प्रसाद बनाकर छठ माता और सूर्य देव की पूजा करके खातीी हैं। षष्ठी तिथि के पूरे दिन निर्जल रहकर शाम के समय अस्ताचलगामी सूर्य को नदी या तालाब में खड़े होकर अर्घ्य देते हैं और अपने मन की कामना सूर्यदेव से कहते हैं। सप्तमी तिथि के दिन भी सुबह के समय उगते सूर्य को नदी या तालाब में खड़े होकर अर्घ्य दिया जाएगा और अपनी मनोकामनाओं के लिए प्रार्थना की जाएगी।
छठ पूजा का कैलेंडर
- छठ पूजा नहाय-खाय 31 अक्टूबर
- खरना एक नवंबर
- अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य दो नवंबर
- उदीयमान सूर्य को अर्घ्य तीन नवंबर
पूजा के लिए शुभ मुहूर्त
- शाम को अर्घ्य का दिन दो नवंबर, शनिवार को सूर्योदय का शुभ मुहूर्त 6.33 बजे, छठ पूजा के दिन सूर्यास्त का शुभ मुहूर्त 17.35 बजे
- षष्ठी तिथि आरंभ 00.51 बजे दो नवंबर
- षष्ठी तिथि समाप्त 01.31 बजे तीन नवंबर
छठमय हुआ वातावरण, जोर-शोर से तैयारियों में जुटे श्रद्धालु
दीपावली और भैया दूज का त्योहार बीतने के साथ ही वातावरण छठमय दिखने लगा है। लोक आस्था के महान पर्व छठ की तैयारी में श्रद्धालु जोर-शोर से जुटे हुए हैं। जगह-जगह छठ घाटों की सफाई चल रही है। बाजारों में फलों की दुकानें सजनें से काफी चहल-पहल है। गुरुवार को नहाय-खाय के साथ शुरू होने वाला चार दिवसीय सूर्योपासना में शुक्रवार को खरना होगा। शनिवार को तीसरे दिन निर्जला व्रत रहने के बाद छठ व्रती पूजा सामग्री के साथ छठ घाटों पर जाएंगे और अस्ताचलगामी भगवान सूर्य को अर्घ्य देंगे। वहीं, रात में कोसी भरने का अनुष्ठान होगा। श्रद्धालु अपने घरों और छठ घाटों पर रात में कोसी भरेंगे और चौथे दिन अहले सुबह पुन: छठ घाटों पर पहुंचकर पूजा कर उदीयमान सूर्य को अर्घ्य देंगे। इसके बाद घर में अन्य देवी-देवताओं की पूजा करने के बाद पारण कर छठ व्रत का समापन करेंगे। अपने स्वजनों, मित्रों को प्रसाद ग्रहण कराएंगे।
गोदी के बालकवा के दीह छठ मइया दुलार
छठ व्रतियों व उनके स्वजनों द्वारा गाए जाने वाले छठ गीतों से वातावरण भक्तिमय बना हुआ है। विभिन्न मोहल्लों और बाजारों में भी छठ के गीत सुनाई पड़ रहे हैं। व्रती घरों में शारदा सिन्हा के छठ गीत पहिले-पहिले हम कइनी छठ मइया व्रत तोहार.. से जहां भक्ति रस की अविरल धारा प्रवाहित हो रही है। वहीं 'गोदी के बालकवा के दीह छठी मइया ममता दुलार..' और 'पिया के सनेहिया बनइह मइया दीह सुखसार..' जैसे गीत चारों ओर गूंज रहे हैं।
सूर्य को नमस्कार करना पौराणिक प्रथा
अस्ताचलगामी सूर्य को आस्था के साथ नमस्कार करने की पौराणिक प्रथा है। सूर्य उपासना का पर्व सूर्य षष्ठी व्रत के अवसर पर कार्तिक मास की षष्टी तिथि को प्रथम अर्घ्य के दिन व्रतधारी अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य अर्पित कर मंगल कामना करते हैं। इस लोक आस्था के पर्व पर इस प्रथा से वह कहावत मिथ्या साबित होती है। जिसमें कहा गया है कि सभी उगते सूर्य को ही नमस्कार करते हैं। ऐसा माना जाता है कि षष्ठी देवी को ही स्थानीय भाषा में छठी मइया कहा गया है। षष्ठी देवी को 'ब्रह्मा की मानसपुत्री' भी कहा गया है, जो निस्संतानों को संतान देती हैं और सभी बालकों की रक्षा करती हैं। इसीलिए इसे लोक आस्था का पर्व कहा जाता है।
रूनकी-झुनकी बेटी मांगिले, पढ़ल पंडितवा दामाद
छठ व्रत के बारे में कहा जाता है कि यह पर्व पुत्र प्राप्ति के लिए किया जाता है। लेकिन, छठ का गीत बेटियों को भी ईश्वर से मांगता है 'रूनकी-झुनकी बेटी मांगिले, पढ़ल पंडितवा दामाद ए छठी मइया..।' यदि हम इसे आत्मसात करें तो यकीनन कन्या भ्रूण हत्या रोकने के लिए हमें किसी अभियान की आवश्यकता नहीं है। व्रती महिलाएं बहुत पहले से छठ मइया से सुंदर और सलोनी पुत्री की मांग करती हैं।