Tata Group : सेमीकंडक्टर का घनचक्कर, टाटा समूह को ताइवान की इस कंपनी का मिलेगा साथ
Tata Group पिद्दी सा ही तो चिप है यह सेमीकंडक्टर। पर यह आज दुनिया भर के कंपनियों के लिए घनचक्कर बन गया है। इस छोटी सी चिप ने टाटा मोटर्स को अरबों का घाटा में डाल दिया है। अब टाटा समूह ताइवान की कंपनी के साथ मिलकर सेमीकंडक्टर बनाएगी...
जमशेदपुर : कोविड 19 के बाद से ही सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में सेमी कंडक्टर की कमी हो गई है। इसमें चीन का अधिपत्य है क्योंकि अधिकतर कंपनियां चीन द्वारा संचालित है। सेमी कंडक्टर की कमी के कारण मोबाइल फोन, डिजिटल उपकरण, कार सहित सभी सामानों की बिक्री पर इसका सीधा असर पड़ा है।
बाजार में खरीदार है लेकिन कंपनियां समय पर वाहन हो या अन्य सामानों की डिलीवरी नहीं दे पा रही है। इलेक्ट्रिक व्हीकल की बात करें तो यहां भी वेटिंग 24 माह तक है। ऐसे में स्वदेशी सेमी कंडक्टर बनाने के लिए टाटा समूह पहल कर रहा है।
इन अंतरराष्ट्रीय कंपनियों से चल रही है बातचीत
टाटा समूह ने भविष्य में स्वदेशी सेमी कंडक्टर बनाने का निर्णय लिया है। ऐसे में टाटा समूह की ओर से ताइवान की कंपनियों से बातचीत चल रही है जिनकी टेक्नोलॉजी की मदद से सेमी कंडक्टर का निर्माण किया जा सके। इसमें ताइवान सेमी कंडक्टर मैन्युफैक्चरिंग कंपनी (टीएसएमसी) व यूनाइटेड माइक्रो इलेक्ट्रॉनिक कॉरपोरेशन (यूएमसी) से बातचीत चल रही है। टाटा समूह इन दोनों कंपनियों को साथ लेकर भारत में ही स्वदेशी सेमी कंडक्टर के निर्माण की योजना बना रहा है।
भारत करता है सेमी कंडक्टर का आयात
आपको बता दें कि ऑटोमोबाइल, सोलर एनर्जी, मोबाइल फोन, टेलीविजन, कार सहित अन्य इलेक्ट्रिक उपकरणों के निर्माण के लिए भारत विदेशों से ही सेमी कंडक्टर चिप का आयात करता है। टाटा संस के प्रवक्ता का कहना है कि ऑटोमोबाइल मैन्युफैक्चरिंग और अक्षय ऊर्जा में मौजूदगी के साथ टाटा ग्रुप को चिप्स की कैप्टिव जरूरत है।
इसके लिए हम अंतराष्ट्रीय कंपनियों से बात कर रहे हैं लेकिन अभी तक हमें कोई सकारात्मक जवाब नहीं मिला है। हालांकि टाटा समूह की कंपनी, टाटा एलेक्सी पहले ही सेमी कंडक्टर के व्यवसाय में है जिसमें आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस टूल और फ्रेमवर्क, डिज़ाइन सॉल्यूशन एंड डेवलपमेंट के क्षेत्र में काम करता है। टाटा समूह समूह ने तमिलनाडु में एक ग्रीनफील्ड इलेक्ट्रॉनिक्स मैन्युफैक्चरिंग यूनिट स्थापित करना भी शुरू कर दिया है।
ताइवान की दोनों कंपनियां थी इच्छुक
आपको बता दें कि भारत सरकार और ताइवान की कंपनी टीएसएमसी और बाद में यूएमसी के साथ भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के साथ सेमी-कंडक्टर लेबोरेटरी (एससीएल) के सहयोग से एक मैन्युफैक्चरिंग सेंटर स्थापित करने की इच्छुक थी लेकिन बात में इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया क्योंकि भारत की ओर से कंपनियों को जो पेशकश की थी उसे कंपनियां ने नहीं माना।
वर्तमान में भारत सरकार अपने लड़ाकू विमानों के लिए आवश्यक चिप्स मोहाली स्थित एससीएल में बना रही है जो रिसर्च एंड डेवलपमेंट द्वारा डिजाइन, डेवलपमेंट, निर्माण और एकीकृत सर्किट के संयोजन और माइक्रो इलेक्ट्रो मैकेनिकल सिस्टम उपकरण के लिए सेमी कंडक्टर का निर्माण करती है। अब स्वदेशी जरूरतों को देखते हुए एमसीएल ने भी अपनी क्षमता विस्तार की योजना बना रहा है।
भारत सरकार दे रही है प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेटिव
आपको बता दें कि भारत सरकार प्रोडक्शन-लिंक्ड इंसेंटिव (पीएलआई) स्कीम के द्वारा भी सेमीकंडक्टर मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा देने की योजना बना रही है। उम्मीद है कि केंद्रीय मंत्रिमंडल जल्द ही इस योजना के तहत इकाइयां लगाने के लिए कंपनियों के लिए जिन कंपनियां ने आवेदन दिया है उसे मंजूरी मिल सकती है।
इस साल सितंबर में केंद्र सरकार द्वारा की गई घोषणा के तहत प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेटिव द्वारा 31 मार्च, 2027 को समाप्त छह साल की अवधि में 38,601 करोड़ रुपये के प्रोत्साहन की पेशकश की गई है जिसमें सेमीकंडक्टर उद्योग भी शामिल है। हालाँकि सरकार सेमीकंडक्टर चिप्स के लिए एक अलग फंडिंग चैनल के माध्यम से इस योजना को केंद्र सरकार टॉप-अप कर सकती है।
इन कंपनियों ने की है क्षमता विकास की तैयारी
एससीएल के अलावा, हैदराबाद स्थित गैलियम आर्सेनाइड इनेबलिंग टेक्नोलॉजी सेंटर और बेंगलुरु स्थित सोसाइटी फॉर इंटीग्रेटेड सर्किट टेक्नोलॉजी एंड एप्लाइड रिसर्च ने भी नई टेक्नोलॉजी के साथ भारत में सेमीकंडक्टर वेफर फैब्रिकेशन सुविधाएं वर्तमान में उपलब्ध हैं।
सेमी कंडक्टर्स के लिए सरकार द्वारा घोषित परियोजनाओं में से एक गैलियम नाइट्राइड ने सोसाइटी फॉर इनोवेशन एंड डेवलपमेंट की मदद से एनएएनडी फ्लैश मेमोरी की असेंबली, परीक्षण और पैकेजिंग के लिए पहल कर रहा है।