यहां एक आना में मिलता था भरपेट खाना, आज भी चल रहा यह होटल
यहां एक आना में भरपेट भोजन मिलता था। पैसे नहीं हैं तब भी कोई बात नहीं। इत्मीनान से खा लें। यह होटल आज भी चल रहा है।
जमशेदपुर [वीरेंद्र ओझा]। यहां एक आना में भरपेट भोजन मिलता था। पैसे नहीं हैं तब भी कोई बात नहीं। इत्मीनान से खा लें। यह होटल आज भी चल रहा है। यह होटल है जमशेदपुर से सटे आदित्यपुर में।
तब आदित्यपुर सिंहभूम जिले का हिस्सा था। सरायकेला-खरसावां जिले का गठन भी नहीं हुआ था। यह इलाका बेजान था। आबादी बस नाममात्र की थी। आज की तरह गुलजार नहीं था। शहर जैसा तो बिल्कुल नहीं दिखता था। अब यह नगर निगम क्षेत्र बन गया है। पूरे झारखंड में इसकी पहचान औद्योगिक शहर के रूप में है।
थाना रोड में है सत्पथी होटल
आदित्यपुर शहर के थाना रोड में सत्पथी होटल है। पहले इसके आगे कोई आबादी नहीं थी। सिर्फ जंगल और झाड़ थे। शाम के बाद कोई उधर जाता भी नहीं था। आज का शेर-ए-पंजाब चौक तब ब्राह्मण टोला के नाम से चर्चित था। सरकारी दस्तावेजों में अभी भी ब्राह्मण टोला का ही उल्लेख मिलता है। इस टोले के लिए सरायकेला के राजा आदित्य प्रताप सिंहदेव ने जमीन दी थी। इस टोले में सत्पथी और आचार्या परिवार रहते थे। इन्हीं में से एक चक्रधर सत्पथी ने थाना मोड़ पर होटल खोला था। नाम था- सत्पथी होटल। यह आज भी है। एक जमाने मे यहां एक आना में भरपेट भोजन मिलता था। बाद में यह रेट बढ़कर दो, चार और छह आना भी हुआ।
अब पोते चलाते होटल
होटल संचालक रंजीत सत्पथी (चक्रधर सत्पथी के पोते) बताते हैं कि 1980 में जब उन्होंने होटल में बैठना शुरू किया तो 75 पैसे में लोग यहां भरपेट खाना खाया करते थे। तब खरकई नदी पर पुल भी नहीं बना था। सैकड़ों मजदूर साइकिल से टाटा कंपनी में काम करने जाते थे। अधिकतर यहीं भोजन करते थे। दादाजी इतने उदार थे कि जो पैसा नहीं दे पाते, उन्हें भी मन से खिलाते थे। वह रेलवे में नौकरी भी करते थे। पक्के गांधीवादी थे। खुद चरखा से सूत कातकर चादर, गमछा, धोती आदि तैयार करते थे। उनके बाद पिता सुदर्शन सत्पथी होटल की कमान संभाल रहे हैं। उनके दादा सरायकेला के पास टेंटोपोसी से यहां आए थे। आज भले ही उनका होटल कम चलता है, लेकिन इस इलाके में सत्पथी होटल आज भी मशहूर है।