स्ट्रीट एनिमल रेस्क्यू कमेटी ने 4000 श्वान को दिलाया उनका नया आशियाना
पिछले 10 वर्षों में स्ट्रीट एनिमल रेस्क्यू कमेटी (सार्क) ने हमारे द्वारा छोड़े गए लगभग 4000 श्वानों का न सिर्फ ख्याल रखा बल्कि उनके लिए नया आशियाना भी तलाशा। स्ट्रीट एनिमल रेस्क्यू कमेटी (सार्क) पूर्वी सिंहभूम जिले में पिछले 10 वर्षों से काम कर रही है।
निर्मल प्रसाद, जमशेदपुर। श्वान (कुत्ते) हमारे सबसे अच्छे दोस्त होते हैं। हम अपने स्टेट्स सिम्बॉल यानि प्रतिष्ठा के लिए इन्हें पालते हैं। साथ ही इनसे उम्मीद करते हैं कि ये हमारी घर की रखवाली भी करें। बदले में श्वान को हमसे केवल प्यार चाहिए होता है। लेकिन जब इन श्वानों को किसी तरह की परेशानी आती है तो सबसे पहले हम इन्हें अपने से दूर कर देते हैं। पिछले 10 वर्षों में स्ट्रीट एनिमल रेस्क्यू कमेटी (सार्क) ने हमारे द्वारा छोड़े गए लगभग 4000 श्वानों का न सिर्फ ख्याल रखा बल्कि उनके लिए नया आशियाना भी तलाशा।
स्ट्रीट एनिमल रेस्क्यू कमेटी (सार्क) पूर्वी सिंहभूम जिले में पिछले 10 वर्षों से काम कर रही है। इनके सदस्य विनीत सहाय बताते हैं कि अक्सर हमें मालूम चलता है कि अच्छे नस्ल वाले श्वान को राष्ट्रीय राजमार्ग या किसी सुनसान जगहों पर केवल इसलिए छोड़ दिया क्योंकि उसे किसी तरह की बीमारी है। सूचना मिलने पर हम ऐसे श्वान को न सिर्फ रेस्क्यू करते हैं बल्कि उनका इलाज कर उसके लिए नए घर की भी तलाश करते हैं। साथ ही नए जन्मे बच्चों को वैक्सीन दिलाकर कानूनी रूप से गोद लेने पूरी प्रक्रिया कराते है। बीच-बीच में हम उन श्वानों का भी हालचाल लेते हैं कि वे अपने मालिक के साथ ठीक से हैं या नहीं या उनकी सहीं तरीके से देखभाल हो रही है या नहीं।
घर से दूर करने पर श्वान की हो जाती है मौत
विनीत बताते हैं कि विदेशी नस्ल और स्थानीय श्वानों में काफी अंतर होता है। विदेशी श्वान अपने बचपन से एक पारिवारिक माहौल में पला-बढ़ा रहता है। उसे पता है कि उसका मालिक आकर उसे खाना देगा। साथ ही शौच के लिए बाहर भी लेकर जाएगा। विदेशी नस्ल व स्थानीय श्वान के रख-रखाव में भी काफी फर्क होता है। स्थानीय नस्ल वाले श्वान अपने परिवेश के हिसाब से पले-बढ़े रहते हैं। जबकि स्थानीय श्वानों को मालूम रहता है कि उसे अपने दूसरे साथी के साथ झगड़ कर या छिनकर अपना पेट भरना है। जब हाइब्रिड श्वान को दूसरी जगहों पर छोड़ दिया जाता है तो उस क्षेत्र में पहले से मौजूद श्वान वर्चस्व की लड़ाई में उन्हें मार देते हैं या ऐसे श्वान बिना भोजन के खुद ही मर जाते हैं।
सार्क को चाहिए स्थायी आशियाना
विनीत बताते हैं कि जो भी परितक्त श्वान हमें मिलते हैं उनका इलाज कराकर हम नेशनल हाइवे 33 के समीप स्थित भिलाई पहाड़ी में अपने संस्था के एक साथी के पास रखते हैं। वर्तमान में यहां सात श्वान इलाजरत हैं। एक श्वान तो यहां ऐसा भी इलाजरत है जिसे संस्था ने चार जुलाई को रेस्क्यू किया। इस पर किसी ने गर्म तेल फेंक दिया था जिसके कारण उसका शरीर जल गया। विनीत बताते हैं कि हमें ऐसे श्वानों को बचाने के लिए एक स्थायी आशियाना चाहिए जहां उनके इलाज के बाद आसानी से रखा जा सके। इसे अलावा सार्क संस्था शहर में घूमने वाले आवारा बीमार पशुओं का भी इलाज कराते हैं। इसके लिए सभी सदस्य आपस में सहयोग राशि एकत्र कर डाक्टर व इलाज का खर्च वहन करते हैं।