ढोल, नगाड़े और बासुरी की आवाज आपको कर देगी मंत्रमुग्ध Jamshedpur News
Jharkhand culture. जब इस गांव में पहुंचेंगे तो ढोल नगाड़े और बासुरी की आवाज सबको मंत्रमुग्ध कर देगी। बच्चे युवा से लेकर वृद्ध तक इसका आनंद उठा रहे हैं।
जमशेदपुर, अमित तिवारी। पूर्वी सिंहभूम जिले के बहरागोड़ा की चिंगड़ा पंचायत इन दिनों आदिवासी लोक वाद्ययंत्रों के ताल पर थिरक रही है। अर्से बाद इस गांव में लोक संस्कृति चहक रही है। लॉकडाउन में फंसे परसदेसियों के गांव लौटने के कारण यह तस्वीर नजर आ रही है।
अर्से बाद गांव में गुरु-शिष्यों का यह मिलन हुआ है। जब इस गांव में पहुंचेंगे तो ढोल, नगाड़े और बासुरी की आवाज सबको मंत्रमुग्ध कर देगी। बच्चे, युवा से लेकर वृद्ध तक इसका आनंद उठा रहे हैं। लॉकडाउन नहीं होता तो शायद ये अपनी खोई हुई संस्कृति को बचाने के लिए एकजुट नजर नहीं आते। दरअसल, इस पंचायत में वाद्ययंत्र बजाने के लिए एक टीम हुआ करती थी। लेकिन, रोजी-रोटी की तलाश में टीम के सदस्य दूसरे प्रदेशों में चले गए। कोई मजदूरी तो कोई खेती करने में व्यस्त हो गया। नतीजा यह हुआ कि माटी से कट गए। लोक संस्कृति अपनी पहचान खोती चली गई। नई पीढ़ी ढोल, मांदर, नगाड़े आदि बजाने से अनजान है। अब गाव के गुरु सालहाई माडी, दशरथ सोरेन व मिरजाराम मागी ने फिर से युवाओं को प्रशिक्षण देकर उनकी कला निखारने की कवायद शुरू की है। शाम में जब प्रशिक्षण शुरू होता तो पूरा गाव ढोल, नगाड़े से गूंजने लगता है। इस दौरान लोग अपने-अपने घरों से निकल कर गीत-संगीत का आनंद उठाने चले आते हैं। खास बात यह है कि इस दौरान शारीरिक दूरी का पूरा ख्याल रखा जाता है।
सरकार उपलब्ध कराएं मंच
गुरु मिरजा मार्डी कहते हैं कि इस गांव के युवाओं में प्रतिभा कूट-कूटकर भरी हुई है। उसे सही मंच देने की जरूरत है। यदि इसी क्षेत्र में इन्हें रोजगार मिलने लगे तो युवाओं को दूसरे प्रदेश जाने की नौबत नहीं आएगी। इसके लिए सरकार को चाहिए कि एक कार्ययोजना तैयार करे।
शिक्षक सोमनाथ दिखा रहे रास्ता
कोलकाता इंस्टीट्यूट ऑफ मास कम्युनिकेशन फिल्म एंड टेलीविजन के शिक्षक सोमनाथ पात्रा भी लाकडाउन में अपने गांव लौट आए हैं। कहते हैं कि राज्य सरकार, स्किल इंडिया के तहत इन युवाओं को आगे बढ़ा सकती है। इसी क्षेत्र में इन्हें रोजगार दे सकती है। युवा पलायन को मजबूर नहीं होंगे।
..तो कभी लौटकर परदेस नहीं जाएंगे
गांव के युवा कुनू मुर्मू, गोंदरो मुर्मू, राजेश मुर्मू, कारू माडी, सुबोध हेम्ब्रम, बारीयाल हेम्ब्रम, यादुनाथ सोरेन कहते हैं कि कोरोना के कारण लॉकडाउन ने गांव की मिट्टी से जुड़ने का अच्छा अवसर दिया है। उनके परदेस चले जाने से गांव की संस्कृति एक तरह से लुप्त हो चली थी। जब से गांव में आए हैं, गांव गुलजार हो उठा है। सरकार यदि इसी क्षेत्र में थोड़ी पहल कर दे तो वे लौटकर कभी परदेस नहीं जाएंगे।
कुछ ऐसा है वाद्य यंत्र
चोड़चोड़ी : यह ड्रम की तरह दिखने वाला वाद्ययंत्र है। इसे कटहल की लकड़ी व चमड़े से मढ़ा जाता है।
नगाड़ा : इसका निमार्ण भैंस के चमड़े से होता है। नीचे से गोलाकार होता है, जो लोहे या लकड़ी से बना होता है। मादर : इसे लोहे या अलमुनियम से बनाया जाता है।