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हैरान कर देगी लोधी समुदाय के जमशेदपुर आने और बस जाने की कहानी, जानिए पूरा सफरनामा

जमशेदपुर में लोधी समुदाय का 1500 परिवार रहता है। इनकी आबादी दस हजार से ज्यादा है।1910 में मध्यप्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों से पलायन कर पुरखे यहां आए थे।

By Rakesh RanjanEdited By: Published: Sat, 17 Aug 2019 02:39 PM (IST)Updated: Sat, 17 Aug 2019 02:39 PM (IST)
हैरान कर देगी लोधी समुदाय के जमशेदपुर आने और बस जाने की कहानी, जानिए पूरा सफरनामा
हैरान कर देगी लोधी समुदाय के जमशेदपुर आने और बस जाने की कहानी, जानिए पूरा सफरनामा

जमशेदपुर [जागरण स्पेशल] । कालीमाटी से जमशेदपुर तक का शानदार सफर तय करने वाले इस शहर ने दामन में बहुतेरे इतिहास सहेज रखे हैं। यहां का हर कण कुछ रोचक किस्से सुनाता नजर आता है। इन्हीं में से एक है यहां लोधी समुदाय के आने और बस जाने की कहानी।

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कहानी वर्ष 1910 की है। तब मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ एक हुआ करता था। राज्य में अकाल पड़ गया। चारों तरफ हाहाकार मचने के बाद गांव-गांव से रोजी-रोटी की तलाश में पलायन शुरू हो गया। इसी बीच लोधी समुदाय के लोगों को पता चला कि कालीमाटी नामक जगह में कोई नई कंपनी खुली है। वहां आसानी से लोगों को काम मिल जाता है। छत्तीसगढ़ से नजदीक होने के कारण लोधी समुदाय के लोग पलायन कर कालीमाटी आ गए। यहां टाटा कंपनी में काम भी मिल गया। जब बात फैली तो कई और लोग भी जीवनयापन के लिए आ पहुंचे। धीरे-धीरे जीवन की गाड़ी पटरी पर दौडऩे लगी। जंगल का इलाका भी मन को भाने लगा। आलम यह है कि इस शहर में अब लोधी समुदाय की चौथी पीढ़ी रहती है। इस समुदाय ने अब अपना संगठन भी बना लिया है।
अभी रहते 15 सौ परिवार

अखिल भारतीय लोधी क्षत्रिय महासभा के अध्यक्ष किशन लाल वर्मा कहते हैं कि इस शहर में करीब 1500 परिवार रहते हैं। इनकी आबादी 10 हजार से ज्यादा है। वे बताते हैं कि उनके पुरखे जबलपुर शहर के मंडला, छत्तीसगढ़ के खैरागढ़, छुई खदान, राजनांदगांव, डोंगरगढ़ सहित कवर्धा बेल्ट से आए थे। सबसे बड़ी बात यह कि इस समुदाय ने यहां अपनी संस्कृति और कला को भी सहेज रखा है।

भोजली और हरेली की खुशबू भी मिलेगी यहां


किशनलाल कहते हैं कि एकजुट रहने के लिए समुदाय मिलकर एकसाथ पर्व त्योहार मनाता है। चाहे भाई की रक्षा वास्ते मनाया जाने वाला भोजली हो या पति की लंबी उम्र के लिए किया जाने वाला सकट। यहां रहने वाले भले ही खेती-बाड़ी नहीं करते हैं, लेकिन नई फसल के शुभारंभ के लिए होनेवाली औजारों की पूजा यानी हरेली भी मनाते हैं। आने वाले 15 अगस्त को यह समुदाय भोजली पर्व मनाएगा।
खुद को मानते हैं वीरांगना रानी अवंती बाई के वंशज
लोधी समुदाय के लोग खुद को वीरांगना रानी अवंती बाई के वंशज बताते हैं। प्रथम स्वतंत्रता संग्राम 1857 की इस नायिका की शहादत पर गर्व महसूस करते हैं। शहर में हर साल 16 अगस्त को रानी अवंती बाई की जयंती मनाना नहीं भूलते। इन्हें दुख है कि इस शहर में रानी अवंती बाई की कोई प्रतिमा नहीं है। 


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