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दादी की 'ज्योति' बन राह दिखा रहीं पोतियां

भूदेव मार्डी, डुमरिया : 13 साल पहले पति जीतराय मार्डी का देहांत हो गया। यह सदमा वह सहन नही कर सकी।

By JagranEdited By: Published: Wed, 12 Sep 2018 12:35 AM (IST)Updated: Wed, 12 Sep 2018 12:35 AM (IST)
दादी की 'ज्योति' बन राह दिखा रहीं पोतियां
दादी की 'ज्योति' बन राह दिखा रहीं पोतियां

भूदेव मार्डी, डुमरिया : 13 साल पहले पति जीतराय मार्डी का देहांत हो गया। यह सदमा वह सहन नहीं कर सकी। इसके बाद से उसकी आंखों से आंसू ही बहते ही रहे। पति के देहांत के चार साल बाद एक दिन उसके सिर में बहुत जोरों का दर्द हुआ। दर्द असहनीय था। आर्थिक स्थित बहुत कमजोर थी। डॉक्टर के पास जा नहीं सकी। इसका नतीजा यह हुआ कि उन्होंने अपनी आंखों की रोशनी खो दी। अब उसकी में दुनिया में अंधेरी के सिवाय कुछ भी नहीं रहा। उसकी कोई औलाद भी नहीं थी कि उसका ध्यान रखती। रिश्तेदार उसकी देखरेख करते रहे। साल बीतते गए लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। इस बीच उनकी दो पोतियां उनकी आंखों की ज्योति बन उनको राह दिखने लगी। उन्होंने ने भी अपने सारे दुखों को भूल अपनी पोतियों के साथ मन लगा लिया।

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जी हां यह कहानी है पूर्वी सिंहभूम जिले की पलाशबनी पंचायत अंतर्गत कालिमाटी गांव के खोलाढीपा टोला की 65 वर्षीया वृद्धा छीता मार्डी की। छीता आज मुस्कुरा कर कहती है, मैं चार आंखों से देखती हूं। मेरी दुनिया भी आपकी दुनिया से कम हसीन नहीं है। मैं देख नहीं सकती फिर भी कामकाज में पीछे नहीं हटती। झाड़ू, पोछा, पानी भरने का काम मैं खुद करती हूं। हां इन कामों में उसके भतीजे पिथो मार्डी की चार वर्षीया बेटी सोनामनी मार्डी एवं स्वर्गीय सुदाम मार्डी की भी चार वर्षीया बेटी सलमा मार्डी दादी को राह दिखाती रहती हैं। छीता बताती हैं कि पेंशन व राशन तो मिलता है परंतु आवास और शौचालय नहीं। उन्होंने बताया कि यदि आवास नहीं भी मिला तो कोई बात नहीं क्योंकि मैं अपने भतीजे के घर पर रहती हूं। यदि शौचालय मिल जाता तो एक झंझट से निजात मिल जाती। उन्होंने अपनी पीड़ा जिक्र करते हुए बताया कि नौ साल पहले सिर में बहुत जोरों का दर्द हुआ जिससे मेरी आंखों की रोशनी चली गई। इलाज के लाए पैसे भी नहीं थे, इसलिए अब आंखें लाइलाज ही रह गई। अपने भतीजा पिथो मुर्मू के साथ रहती हूं। भतीजा मजदूरी कर परिवार के सभी लोगों के साथ बड़ी मां की भी सेवा करता है।


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