मिशनरी अपने धर्म के लिए बच्चे बड़े करते, मैं देश के लिए : ताई
जागरण संवाददाता, जमशेदपुर : दुख ने दुख को पुकारा और हजारों अनाथ बच्चों को उनकी मां ि
जागरण संवाददाता, जमशेदपुर : दुख ने दुख को पुकारा और हजारों अनाथ बच्चों को उनकी मां मिल गई। ये हैं सिंधु ताई सप्तकाल। 70 साल की उम्र में 50 साल से अनाथ बच्चों की देखभाल पूरे समर्पण और सेवा भाव से कर रही हैं। यही इनका जीवन और जीने का मकसद बन चुका है। आज 1400 बच्चों की मां बनकर उनकी देखभाल कर रही हैं। कारवां आगे बढ़ता जा रहा है। झारखंड में मिशनरीज ऑफ चैरिटी संस्था से अनाथ बच्चों को बेचे जाने के सवाल पर इतना ही कहा- मिशनरी अनाथ बच्चों को अपने धर्म के लिए बड़े करते हैं जबकि मैं अपने देश के लिए। गौरतलब हो कि सिंधु ताई रोटरी क्लब के कार्यक्रम में भाग लेने के लिए जमशेदपुर पहुंची हैं।
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दुखों के पहाड़ से निकली ममता की छांव
मूल रूप से महाराष्ट्र के विदर्भ की रहनेवाली सिंधुताई से सिंधु माई बनने की कहानी रोंगटे खड़े कर देनेवाली है। बिना किसी हिचकिचाहट के जिंदगी के उन पन्नों को खोलते हुए बताया- 10 साल की थी जब शादी हो गई। पति की उम्र 35 साल थी। ससुराल में प्रताड़ना के बीच तीन बच्चे जने। चौथा पेट में पल रहा था। गर्भ के नौंवे महीने में पति व ससुराल वालों ने घर से निकाल दिया। न कोई ठौर न ठिकाना। पेट पालना था सो भीख मांगने लगी। गोशाला में अकेले बच्चे को जन्म दिया। किसी तरह हिम्मत जुटाकर पत्थर से कूचकर नवजात की नाल को अलग किया। बस, रेलवे स्टेशन पर भीख मांगकर गुजारा किया। अकेली महिला का दंश ऐसा की हर समय खतरा बना रहता था। पुरुष प्रधान समाज में खतरे से बचने के लिए रात श्मशान में गुजारने लगी। अपने जैसे भीख मांगनेवाली अकेली महिला की मौत के बाद उनके बच्चों की मां बनकर सहारा दिया और इसी तरह अनाथ बच्चे जुड़ते चले गए। ऐसे बच्चों की देखभाल ठीक से कर सकें इसलिए अपनी बच्ची को पुणे में श्रीमंत डगडू सेठ हलवाई ट्रस्ट के अनाथालय को दे दिया।
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सिंधुताई के पाले हुए बच्चे ने उन्हीं पर कर डाला रिसर्च
सिंधु ताई सप्तकाल पर शोध भी हो चुका है। यह शोध करनेवाला भी वह अनाथ था जिसे सिंधु ताई ने अपने अनाथालय लाकर पाल-पोसकर बड़ा किया। ऐसे कई बच्चे जो अब बड़े हो चुके हैं, उनके साथ जमशेदपुर आए हैं। अपनी ताई से लगाव का आलम यह कि सभी ने अपने नाम के साथ सिंधुताई सप्तकाल जोड़ रखा है। इनमें से एक विनय सिंधुताई सप्तकाल का परिचय कराते हुए सिंधु ताई ने बताया कि स्टेशन पर भीख मांगते-मांगते उसकी मां मर गई। उस मरी मां के शरीर पर सवा महीने का अबोध विनय खेल रहा था। कोई देखनेवाला नहीं था। मैं उसकी गोद से उठाकर ले आई। आज वह एलएलबी कर चुका है। साथ आए संजय सिंधुताई सप्तकाल एलएलबी की पढ़ाई कर रहा है। साथ ही कार वाशिंग का अपना कारोबार चला रहा है। आज बड़े हो चुके कई बच्चे डॉक्टर, शिक्षक, नर्स बनकर समाज की सेवा कर रहे हैं।
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250 की कराई शादी
सिंधु ताई ने पाल-पोसकर बड़ा करने के बाद ढाई सौ बच्चों की शादी भी कराई है। अपने आश्रम के लड़कों की शादी कर 50 बहुएं भी ला चुकी हैं। साथ ही 175 गायों की देखभाल भी वहां होती है। महाराष्ट्र में अनाथ बच्चों की देखभाल के लिए फिलहाल 8 अनाथालय चल रहे हैं।
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मिल चुके 750 पुरस्कार, नहीं मिलती आर्थिक सहायता
आज पहचान की मोहताज नहीं हैं। साढ़े सात सौ पुरस्कार मिल चुके हैं। अनाथालय को सरकार ने इस शर्त पर मान्यता दी है कि आर्थिक सहायता की मांग नहीं करेंगी। इसलिए घूम-घूमकर मांगने का सिलसिला जारी है। साफतौर पर कहा- पुरस्कार से पेट नहीं भरता लेकिन जहां जाते हैं लोग हाथ खोलकर मदद करते हैं। घूम-घूमकर पहले भाषण देती हैं उसके बाद राशन की मांग करती हैं। कर्नाटक सरकार ने कर्नाटक भूषण पुरस्कार से भी नवाजा है। पुरस्कार के साथ मुख्यमंत्री ने 10 लाख का चेक भी दिया था।