शरद पूर्णिमा व लक्खी पूजा कल, तैयारी शुरू
शरद पूर्णिमा की तिथि 30 अक्टूबर शुक्रवार को शाम 5.20 मिनट से शनिवार की शाम 7.2
जासं, जमशेदपुर : अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा और रास पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन चंद्रमा अपनी समस्त कलाओं में पूर्ण होता है। इतना ही नहीं देवी और देवताओं को सबसे ज्यादा प्रिय पुष्प ब्रह्म कमल भी शरद पूर्णिमा की रात को ही खिलता है। शास्त्रों के अनुसार इस दिन किए गए धार्मिक अनुष्ठान कई गुना फल देते हैं। शास्त्रों के अनुसार इस दिन चंद्रमा की किरणों में रोगों को दूर करने की क्षमता होती है। इस वर्ष शुक्रवार 30 अक्टूबर की रात शरद पूर्णिमा की रात है। शरद पूर्णिमा के दिन चंद्रमा धरती के बेहद पास होता है। जिसकी वजह से चंद्रमा से जो रासायनिक तत्व धरती पर गिरते हैं वह काफी सकारात्मक होते हैं और जो भी इसे ग्रहण करता है उसके अंदर सकारात्मकता बढ़ जाती है। इस पूर्णिमा के बाद से ही हेमंत ऋतु का आरंभ हो जाता है और धीरे- धीरे सर्दी का मौसम शुरू हो जाता है। बारिश के बाद पहली पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा के पर्व के रूप में मनाया जाता है। बारिश का दौर खत्म होने के कारण हवा साफ होती है यही सबसे बड़ा कारण है। इसके बाद से मौसम में ठंडक आती है और ओस के साथ कोहरा पड़ना शुरू हो जाता है।
पंडित बापी मुखर्जी के अनुसार शरद पूर्णिमा की तिथि 30 अक्टूबर शुक्रवार को शाम 5.20 मिनट से शनिवार की शाम 7.28 मिनट तक है। उन्होंने कहा कि शुक्रवार की रात को कोजागरी लक्खी पूजा करना श्रेयकर रहेगा, क्योंकि शुक्रवार की पूरी रात पूर्णिमा रहेगा। इसी दिन से कार्तिक मास के यम नियम, व्रत और दीपदान का क्रम भी आरंभ हो जाएगा। शरद पूर्णिमा से लेकर कार्तिक पूर्णिमा तक नित्य आकाशदीप जलाने और दीपदान करने से दुख दारिद्रता का नाश होता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार शरद पूर्णिमा के दिन मां लखी का जन्म हुआ था। इसे रास पूर्णिमा भी कहा जाता है।
मान्यता के अनुसार इस दिन मां लक्ष्मी पृथ्वी लोक में विचरण करती हैं। इसी कारण से इस दिन कई धार्मिक अनुष्ठान भी किए जाते हैं। ऐसी मान्यता है कि इस रात चंद्रमा कि किरणों से अमृत बरसता है। ऐसे में लोग इसका लाभ लेने के लिए छत पर या खुले में खीर रखकर अगले दिन सुबह उसका सेवन करते हैं। कुछ लोग चूरा और दूध भी भिगोकर रखते हैं। रातभर इसे चांदनी में रखने से इसकी तासीर बदलती है और रोगों से लड़ने की क्षमता बढ़ती है। इस दिन खीर का महत्व इसलिए भी है कि यह दूध से बनी होती है और दूध को चंद्रमा का प्रतीक माना गया है। चंद्रमा मन का प्रतिनिधित्व करता है। इस पूर्णिमा की रात चांदनी सबसे ज्यादा तेज प्रकाश वाली होती है। इस तिथि को देश के अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग नामों से पुकारा जाता है। इसे कौमुदी उत्सव, कुमार उत्सव, शरदोत्सव, रास पूर्णिमा, कोजागरी पूर्णिमा और कमला पूर्णिमा भी कहते हैं। इस तिथि पर भगवती श्रीलक्ष्मी के पूजन का विधान है। खासतौर से जिन स्थानों पर देवी दुर्गा की प्रतिमा स्थापित की जाती है उन पूजा पंडालों में लक्ष्मी पूजन का विशेष आयोजन किया जाता है।
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कोजागरी लखी व कोजागरा पूजा का महत्व
बंगाली समुदाय में कोजागरी लक्खी पूजा का भी विशेष आयोजन किया जाता है। पश्चिम बंगाल में कोजागरी लक्खी पूजा का विशेष महत्व होता है। शहर का बंगाली समाज यह पूजा को 30 अक्टूबर को करेगा। बंगाली समुदाय में कोजागरी लक्खी पूजा के दिन दुर्गापूजा वाले स्थान पर मां लक्ष्मी की विशेष रूप से प्रतिमा स्थापित की जाती है। नारियल और गुड़ का लड्डू बना कर भोग लगाया जाता है तथा खिचड़ी भी बनाई जाती है। वहीं कोजागरा पूजा 31 अक्टूबर को मनाई जाएगी। मिथिलांचल में इस दिन कोजागरा पूजा की जाती है। ये पूजा नवविवाहितों के लिए एक अहम पूजा होती है। नवविवाहितों के जीवन में धन-धान्य और सुख समृद्धि बनी रही इसलिए कोजागरा पूजा की जाती है। इस दिन घर के बड़े नवविवाहितों को चावल देकर उन्हें आशीष देते हैं।
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प्रतिमा निर्माण अंतिम चरण में, फल बाजार तैयार
जमशेदपुर : मां लखी की प्रतिमा निर्माण अंतिम चरण में हैं। गुरुवार की सुबह तक सारी प्रतिमाएं तैयार हो जाएगी। इसके बाद पूजा आयोजनकर्ता इसे ले जाएंगे। फल बाजार भी तैयार हो गया है। बाजार में सेब 80-120, केला 50-60, अनार 80-90, नासपति 80-120 रुपया प्रति किलो बिक रहा है। इसके अलावा पूजन सामग्री से बाजार गुलजार हो गया है।