जमशेदपुर के बड़े अल्लामा की अपील: नफली कुर्बानी के बजाए केरल के बाढ़ पीड़ितों की मदद के लिए भेज दें पैसे
जमशेदपुर शहर के बड़े अल्लामा और टेल्को ईदगाह के पेश इमाम मंजर मोहसिन ने केरल के बाढ़ प्रभावितों को मदद की अपील की है।
जागरण संवाददाता, जमशेदपुर : शहर के बड़े अल्लामा और टेल्को ईदगाह के पेश इमाम मंजर मोहसिन ने मुसलमानों से अपील की है कि वो नफली कुर्बानी कराने के बजाए उसका पैसा जमा कर केरल के बाढ़ पीड़ितों की मदद के लिए भेज दें। इस काम से अल्लाह पाक खुश होगा और उन्हें खूब सवाब मिलेगा। मौलाना ने कहा कि हैसियत मंद शख्स पर एक बकरा या दुंबा की कुर्बानी वाजिब है। अगर परिवार में पति और पत्नी दोनों हैसियत मंद हैं तो दोनों पर एक-एक बकरे की कुर्बानी वाजिब है। लेकिन, अगर वो एक से ज्यादा पांच-छह बकरों की कुर्बानी कराने के लिए पैसा जमा किए हुए हैं तो उन्हें चाहिए कि एक-एक वाजिब कुर्बानी ही कराएं और बाकी रकम केरल के बाढ़ पीड़ितों के लिए भेज दें। या फिर पास-पड़ोस के अनाथ बच्चों की मदद करें। मंजर मोहसिन टेल्को ईदगाह में सुबह 6.45 पर बकरीद की नमाज होगी। उन्होंने बताया कि टेल्को में 7.45 बजे तक तकरीर होगी और इसके बाद नमाज खड़ी हो जाएगी। ----------------------
ईद-उल-अजहा आज, आखिरी दिन बकरों का एक करोड़ का कारोबार
बकरीद के एक दिन पहले मंगलवार को दिन भर आम बगान समेत शहर की सभी मंडियों में बकरा बाजार में खरीद-फरोख्त का बाजार का गर्म रहा। आखिरी दिन बकरों का एक करोड़ रुपये तक का कारोबार हुआ। आम बगान में सोमवार को नाकोटा नस्ल का सबसे महंगा बकरा 75 हजार में बिका। यहां एक फरमान नाम का खूबसूरत बकरा 45 हजार में बिका। फरमान की खूबसूरती की सभी तारीफ कर रहे थे। फरमान को खरीदने वाले धतकीडीह निवासी रहमत ने कहा कि वह खुशनसीब हैं कि उन्हें इतना खूबसूरत बकरा मिला है।
आमबगान में मकदमपुर से चार बकरा लाए गए थे। सभी बकरे नाकोटा नस्ल के थे जिनका गोश्त लजीज होता है। देखने में भी इन बकरों की कद-काठी बढि़या होती है। ऊंची कद-काठी वाले इस बकरे की कीमत वह 85 लाख रुपये मांग रहे थे। शाम को वह बकरा 65 हजार में बिक गया। उनका एक बकरा 30 हजार में और दो बकरे 25-25 हजार के थे। इलाहाबाद के करछना से आए फरमान की कीमत ज्यादा नहीं थी। स्लिम कद-काठी वाला यह बकरा अगर खूबसूरत नहीं होता तो 10 हजार का महंगा था। लेकिन, इसकी खूबसूरती ने इसकी कीमत में चार चांद लगाया।
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साल का पहला व आखिरी महीना कुर्बानी का
इस साल मुसलमानों के बीच एक मैसेज काफी वाइरल रहा। इसमें बकरीद और मुहर्रम की तुलना की गई है। मैसेज में है कि साल का पहला महीना मुहर्रम भी कुर्बानी का जिसमें पैगंबर के लाल इमाम हुसैन अ. ने अपनी कुर्बानी पेश की और आखिरी महीना भी कुर्बानी का। बकरीद में जिसकी कुर्बानी होने वाली थी वह नबी हजरत इब्राहिम के लाल हजरत इस्माइल अ. थे। मुहर्रम महीने में जिनकी कुर्बानी हुई वह भी नबी के लाल थे। मुहर्रम में हुई कुर्बानी की भी याद मनाई जाती है। बकरीद की कुर्बानी भी याद मनाई जाती है। बकरीद की कुर्बानी को जिबह-ए-अजीम में तब्दील किया। वह जिब्हे अजीम उलेमा के मुताबिक इमाम हुसैन की कुर्बानी थी। उन्होंने ख्वाब निभाया। इमाम हुसैन ने नाना से वादा निभाया। वो सब्र की इब्तेदा। ये सब्र की इंतेहा। वो काबे का बनाने वाला। यह काबे का बचाने वाला।
------------------------ईद उल अजहा पर रखें इस बात का ख्याल
-- रास्तों और सार्वजनिक स्थलों पर कुर्बानी नहीं करें।
-- हो सके तो खुले में नहीं बल्कि बाउंड्री वाल के अंदर अहाते में कुर्बानी करें।
--कुर्बानी का खून नालियों में नहीं बहाएं इसे जमीन में दफन कर दें।
-- जानवरों के वो अंग जो खाए नहीं जाते इन्हें फौरन जमीन में दफन कर दें वरना इनके खुले में रहने से बीमारी फैलती है। डेंगू का खतरा है। इनके कीटाणु की जद में आने से लोगों के खून के प्लेटलेट्स कम होने लगते हैं।
-- प्रतिबंधित जानवरों की कुर्बानी बिल्कुल नहीं करें। बकरा और दुंबा की ही कुर्बानी करें तो बेहतर है।